नशामुक्त पंजाब‚महात्मा गांधी चाहते थे‚ शहीद–ए–आजम भगत सिंह और डॉ. भीमराव आम्बेडकर भी नशामुक्त समाज को बेहतर जीवन जरूरत बताते रहे। विचारों के साथ कार्यों और जागरूकता की दृष्टि से नशामुक्ति के खिलाफ देश का अबसे बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है‚ जिन्होंने लोगों की व्यापक जागरूकता के लिए देशव्यापी अभियान चलाया था और इसे सामाजिक न्याय की स्थापना की लिए एक जरूरत भी बताया था। गांधी जयंती पर पूरे देश में नशा मुक्ति की शपथ दिलवाई जाती है। आम आदमी पार्टी अब पंजाब में सत्तारूढ़ है‚ वह राज्य को नशामुक्त बनाना चाहती है और यह उसके घोषणापत्र का प्रमुख भाग भी है।
ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाब में नशामुक्त के खिलाफ सरकारी अभियान में भी भगत सिंह और डॉ. आम्बेडकर के पोस्टर का उपयोग होता रहेगा और बापू को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल न करने की आम आदमी पार्टी की हालिया नीति यहां पर भी नजर आ सकती है। इन सबके बीच बापू को बिसराने की कोशिश महज संयोग तो नहीं हो सकती क्योंकि अरविंद केजरीवाल राजनीतिक प्रयोगधमता के पर्याय माने जाते हैं। गौरतलब है कि अन्ना हजारे के जन आंदोलन में अहम भागीदार रहे और बाद में आम आदमी पार्टी से राजनीति के मैदान में विकल्प बने केजरीवाल महात्मा गांधी को अपना आदर्श बताते रहे हैं। केजरीवाल भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से उभरे एक ऐसे राजनेता हैं‚ जिन्होंने नई पार्टी के गठन के बाद पहचान की राजनीति के लंबे संघर्ष और इंतजार की स्थापित धारणाओं को बदलते हुए अपनी बहुआयामी रणनीति से सफलतापूर्वक चुनौती पेश की है।
दिल्ली की सत्ता में एक दशक से ज्यादा बने रहने का उनका करिश्मा लोक कल्याण के उस मॉडल से ही संभव हुआ‚ जिसकी बापू कल्पना किया करते थे‚ लेकिन दिल्ली से पंजाब आते–आते केजरीवाल ने बापू को बिसरा दिया और पंजाब की सत्ता को भी प्राप्त करने में अविश्वसनीय सफलता अर्जित कर ली। अरविंद केजरीवाल पंजाब में भगत सिंह और डॉ. आम्बेडकर को प्रतीक की तरह इस्तेमाल कर सुशासन की स्थापना का दावा कर रहे हैं। यहां पर बापू को भुलाने की कोशिश साफ नजर आती है। इन सबके बीच यह देखा गया है कि आजादी के नायकों का यह इस्तेमाल देश में नया नहीं है। भारत एक विशाल लोकतंत्र है और इसकी विविधता भी कमाल की है। यहां अलग–अलग राजनीतिक टोपियां और राजनीतिक चश्में अपनी सुविधा के अनुसार चित्र तय करते हैं‚ उसे दिखाते हैं‚ उस पर हक जताते हैं और फिर उस आधार पर वोट भी भुनाते हैं। इस हक की लड़ाई में गांधी अब तक सबके साथ नजर आते रहे हैं क्योंकि गांधी किसी से अलग कभी रहे ही नहीं। जहां तक आम आदमी पार्टी के प्रतीक बना दिए गए भगत सिंह और डॉ. आम्बेडकर का सवाल है तो बापू के लिए यह दोनों व्यक्तित्व सम्मान और सहयोग का प्रतीक रहे।
महात्मा गांधी और भगत सिंह के रास्ते अलग थे‚ लेकिन दोनों का अंतिम उद्देश्य स्वराज प्राप्ति ही थी। बापू भगत सिंह की लोकप्रियता के कायल थे और वे उन्हें देश के युवाओं का नायक समझते थे। भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा दिए जाने से गांधी बहुत दुखी थे। यहां तक की उन्होंने अंग्रेजी सरकार को चेताया भी कि देश में इसका बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जब अंग्रेजी सरकार पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो गांधी ने फांसी टालने के लिए इस सजा को आजीवन कारावास में बदलने की मांग भी रखी‚ लेकिन लार्ड इरविन और विलिंग्टन टस–से–मस नहीं हुए। भगत सिंह की जेल डायरी के पन्ने यह बखूबी बयान करते हैं कि उनका महात्मा गांधी के प्रति कितना गहरा सम्मान था और वे गांधी के योगदान के कितने बड़े प्रशंसक थे। जाहिर है आजादी के इन मतवालों के आपसी संबंध भी मूल्यों और आदर्शं की शुचिता से परिपूर्ण रहे।
दूसरी और सामाजिक न्याय की स्थापना को लेकर गांधी और डॉ. आम्बेडकर के सामूहिक प्रयास भारत के संविधान में प्रतिबिंबित होते हैं। डॉ. आम्बेडकर के भारत की संविधान समिति के अहम किरदार बनने के पीछे महात्मा गांधी की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है‚ जिन्होंने राजनीतिक मतभेदों को पीछे छोड़ते हुए डॉ. आम्बेडकर के ज्ञान को ज्यादा तरजीह दी। पूना पैक्ट‚ देश में दलित पिछड़ों को आरक्षण‚ सामाजिक व्यवस्था‚ असमानता‚ भेदभाव को लेकर गांधी आम्बेडकर के सतत सामूहिक प्रयासों का प्रभाव देश और लोकतंत्र को मजबूत करने वाले रहे। इतिहास की इस विवेचना से यह तो साफ हो ही जाता है कि भगत सिंह और डॉ. आम्बेडकर के साथ गांधी का होना अव्यावहारिक या असंगत नहीं हो सकता। अब सवाल यह उठता है कि लोक कल्याण की वैकल्पिक राजनीति के खेवनहार बनने का दावा करने वाले केजरीवाल भी राजनीतिक संकीर्णता को उभार देकर भारत की राजनीति में आगे बढना चाहता है।
भारत का लोकतंत्र बदलावों को पसंद करता है‚ लेकिन इन बदलावों में उसने सदैव सामाजिक कल्याण को ही ढूंढा है। इस सामाजिक कल्याण की सम्पूर्ण मार्गदर्शिका तो बापू ही है। केजरीवाल भी जनता को मुफ्त देने की घोषणाओं के उस जाल में जनता को अक्सर उलझाते नजर आते हैं‚ जिसको वोट पाने के हथियार की तरह सभी दल आजमाते हैं। गांधी के विचार इससे उलट थे। गांधी ने रोटी के लिए शारीरिक श्रम का सिद्धांत दिया था‚ बापू मानते थे कि बगैर श्रम के भोजन लेना पाप है। संकट यही है कि महात्मा गांधी के चित्र के साथ केजरीवाल यदि उनके विचारों को भी भुलाने लगे तो न तो पंजाब आत्मनिर्भर होगा और न ही लोगों को रोजगार मिलेंगे। यकीनन केजरीवाल को संकीर्ण राजनीति के भंवरजाल में उलझने से ज्यादा बापू के कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर ही आगे बढ़ना चाहिए। बहरहाल यह सभी को समझना होगा कि बापू को भुलाकर लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना और सत्ता में दीर्घकालीन समय तक बने रहना न तो आम आदमी पार्टी के लिए संभव है और न ही अन्य राजनीतिक दलों के लिए।