पश्चिम बंगाल के बीरभूम में हुए नरसंहार मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को आपना आदेश सुरक्षित रखा। हाईकोर्ट में दाखिल कई याचिकाओं में कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच कराने की मांग की गई थी। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश के दो घंटे के अन्दर पुलिस ने नरसंहार के मुख्य आरोपी और तृणमूल कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष अनारुल हुसैन को गिरफ्तार कर लिया। वह तारापीठ में छिपा हुआ था। मुख्यमंत्री ने डीजीपी मनोज मालवीय को आदेश दिया था कि या तो हुसैन ‘सरेंडर करें या फिर उसे किसी भी तरह पकड़ा जाए।’
नरसंहार के तीन दिन बाद मुख्यमंत्री बोगटुई गांव पहुंची जहां 21 मार्च को हथियारों से लैस भीड़ ने आठ लोगों को जिंदा जला दिया था। ममता बनर्जी के इस दौरे से दो बड़े असर दिखाई दिए। पहला यह कि मुख्य आरोपी अनारुल हुसैन को पुलिस ने कुछ ही घंटों में पकड़ लिया। अनारुल के सेल नेटवर्क को ट्रेस कर उसे आनन फानन में गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरा असर यह रहा कि पीड़ितों के परिजनों को मुख्यमंत्री से खुलकर बात करने का मौका मिला। वरना पिछले तीन दिनों से स्थानीय पुलिस पीड़ितों परिवारों की बात सुन ही नहीं रही थी।
जिन लोगों के घर जलाए गए हैं उनके रिश्तेदारों ने ममता बनर्जी को बताया कि अनारुल हुसैन उस भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जिसने बस्ती में आग लगाई। इसके बाद ममता बनर्जी ने वहीं DGP को निर्देश दिया कि मुख्य आरोपी अनारुल हुसैन को तुरंत पकड़ा जाए और फिर दो घंटे के भीतर वह पकड़ा गया। अनारुल की गिरफ्तारी तारापीठ से हुई जो घटनास्थल से करीब 9 किलोमीटर दूर है।
पीड़ितों से मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने माना कि पुलिस की लापरवाही से इतनी बड़ी वारदात हुई। ममता बनर्जी ने अधिकारियों को फटकार लगाई और यह भी कहा कि अगर समय पर एक्शन लिया गया होता तो आठ लोगों की जान बचाई जा सकती थी। उन्होंने ड्यूटी में लापरवाही बरतने के चलते थाना प्रभारी और सब-डिविजनल पुलिस अधिकारी को हटाने का आदेश दिया। पीड़ित परिवारों ने ममता बनर्जी को बताया कि पहले भी उन्होंने पुलिस से कई बार शिकायत की थी और बताया था कि तृणमूल का ही एक नेता गुंडागर्दी कर रहा है तथा उन्हें डराया, धमकाया जा रहा है लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की जिसके चलते यह नरसंहार हुआ।
ममता बनर्जी के आदेश देने के दो घंटे के अन्दर मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया, इस बात के क्या मायने निकाले जाएं। जो शख्स तीन दिन से पुलिस की गिरफ्त से दूर था वह दो घंटे में पकड़ में आ गया? आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा कैसे हो गया? क्या पुलिस को ममता बनर्जी के आदेश का इंतजार था? मैं आपको बता दूं कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को पकड़ना इतना आसान नहीं है। आरोपी अनारुल हुसैन रामपुरहाट ब्लॉक में तृणमूल कांग्रेस का अध्यक्ष है, यानि उस इलाके का इंचार्ज। ऐसे में पुलिस के लिए अनारुल हुसैन पर हाथ डालना आसान नहीं था। पिछले दो दिनों में पुलिस ने 11 आरोपियों को पकड़ लिया लेकिन जिस पर आग लगाने वाली भीड़ की अगुआई करने का आरोप था वह खुलेआम घूम रहा था। पुलिस उस शख्स तक तब तक नहीं पहुंची जब तक खुद ममता बनर्जी ने गिरफ्तारी का आदेश नहीं दिया।
यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि जब पीड़ित परिवार ममता बनर्जी के सामने अनारुल हुसैन को नरसंहार का सरगना बता रहे थे, उस समय भी ममता बार-बार यही कह रही थीं कि उन्हें खबर मिली है कि कुछ बाहरी लोगों का भी इसमें हाथ हो सकता है। ममता बनर्जी ने कहा, ‘ कुछ लोग कह रहे हैं कि बाहर से गुंडे आए थे। नहीं आए होते तो घटना नहीं होती। यहां बाहरी लोगों की साज़िश चल रही है। यहां पर लगातार पुलिस की पिकेटिंग की व्यवस्था की जाए। हर वक़्त अगर निगरानी रखी जाएगी तो ऐसी समस्या नहीं होगी। लगातार निगरानी करिए। जो लोग अस्पताल में हैं उनके इलाज की पूरी ज़िम्मेदारी उठाई जाएगी। हम यहां पूरी व्यवस्था करने को कहते हैं और ज़रूरत पड़ने पर कोलकाता भी ले जाया जाए। चूंकि लोग जल गए हैं और यहां के डॉक्टर इजाज़त नहीं दे रहे हैं, तो हम यहां एक्सपर्ट की टीम भेज रहे हैं, जिससे अच्छा इलाज हो।’
ममता बनर्जी ने स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिया कि वह प्रभावित परिवार के सदस्यों को तुरंत एक लाख रुपए की अनुग्रह राशि दें और फिर से घर बनाने में मदद करे। उन्होंने कहा, ‘मैं पहले ही कह चुकी हूं कि ऐसी सज़ा मिलेगी जो नज़ीर बने। ज़िंदगी का कोई मुआवज़ा नहीं हो सकता है। कोई नौकरी किसी की ज़िंदगी का विकल्प नहीं बन सकती। मुझे ये पता है। पीड़ितों को पांच लाख रुपए हाथ में मिलेंगे। इसके अलावा नौकरी भी मिलेगी। इसलिए मैं अपने कोटे से 10 लोगों को नौकरी दिलाऊंगी।’
अच्छी बात है कि ममता बनर्जी घटनास्थल पर गईं और पीड़ितों से मिलीं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह माना कि पुलिस की ओर से बड़ी लापरवाही हुई है। लेकिन ममता बनर्जी के दौरे से पहले बोगटुई गांव की जो तस्वीरें मैंने देखी उससे हैरानी हुई। ममता बनर्जी आठ लोगों की वीभत्स और दर्दनाक मौत पर शोक जताने गई थी। जिंदा जल चुके इंसानों की राख पूरे गांव में बिखरी थी और गांव में मौत का सन्नाटा था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने ममता के स्वागत की तैयारी ऐसे की जैसे ममता किसी रैली या किसी जलसे में आ रही हों। ममता के स्वागत के लिए पोस्टर लगाए गए थे। बड़े-बड़े गेट बनाए गए थे। बोगटुई गांव तक पहुंचने के पूरे रास्ते पर पोस्टर-बैनर लगाए गए थे। इन पोस्टरों में उनके अभिनंदन की बातें लिखी गई थीं।
बीरभूम के मामले में ममता के सामने 2 गंभीर चुनौतियां हैं। एक तो यह कि हमला करने वाले और मरने वाले दोनों मुस्लिम समुदाय से हैं। दूसरा, पश्चिम बंगाल में उनके सामने एक प्रोएक्टिव गवर्नर हैं जो उन्हें चैन से नहीं बैठने देते और फिर बीजेपी ने इस मामले को हर स्तर पर बड़े पैमाने पर उठाया है। ममता यह कहकर नहीं बच सकती कि ऐसी घटनाएं दूसरे राज्यों में भी होती हैं। उन्हें इस मामले की तह तक जाना होगा।
मुझे अपने सूत्रों से जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक यह पूरा झगड़ा इस इलाके में न सियासी था और न मजहब की वजह से था। यह झगड़ा लूट का माल बांटने वालों के बीच में था लेकिन इसकी आड़ में जो अपराध हुआ, वो बहुत ही जघन्य था। पश्चिम बंगाल ने पहले न ऐसा देखा, ना सुना। इस नरसंहार की विचलित करने वाली तस्वीरों को लोग लंबे वक्त तक भूल नहीं पाएंगे।