ओपिनियन पोल‚ चुनाव के दौरान सर्वे‚ एग्जिट पोल सभी यह इशारा कर रहे थे कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार वापसी कर रही है लेकिन मीडि़या से लेकर बुद्धिजीवियों‚ कारपोरेट सेक्टर‚ कथित सट्टा बाजार से जुड़़ा एक वर्ग यूपी से योगी सरकार की विदाई को लेकर आश्वस्त था। आखिर में आया १० मार्च २०२२‚ टूट गये सारे मिथक और बनने जा रही है फिर से बीजेपी सरकार। सिलसिलेवार जिक्र करना जरूरी होगा कि चुनाव से पहले पार्टी के भीतर बहुत सारी बातें मीडि़या में आइ। मसलन बड़़ी संख्या में पार्टी विधायक सीएम योगी की कार्यशैली से नाराज हैं। माहौल को देखते हुए पार्टी संगठन ने लखनऊ से दिल्ली तक लम्बी कवायद दी। इस कवायद के दौरान योगी का पक्ष भारी पड़़ा और केन्द्रीय नेतृत्व में अपने अंदाज में साफ संदेश दे दिया कि यूपी में योगी जी ही रहेंगे। गुजरात और उत्तराखंड़ में नेतृत्व में हुए बड़े़ परिवर्तन के बाद यूपी में इसे खासी हवा मिली थी‚ लेकिन योगी आदित्यनाथ की जुदा कार्यशैली ने इस हवा का रुख विरोधियों की तरफ ही मोड़़ दिया। दूसरा सवाल उठाया गया कि सीएम योगी की कार्यशैली से बड़़ी संख्या में विधायक और सहयोगी दल नाराज़ हैं। मजेदार बात तो यह रही कि चुनाव नजदीक आते–आते जमीनी हकीकत उभरकर इस रूप में सामने आयी कि जनता कुछ पार्टी विधायकों की कार्यशैली से नाराज है। उसे मोदी–योगी से कोई नाराजगी नहीं है। इसका प्रमाण यह है कि चुनाव के शुरुआत में मीडि़या की सुर्खियों में आया कि १०० से १५० बीजेपी विधायकों के टिकट काटकर नये चेहरों पर पार्टी दांव लगायेगी। यह बात दीगर है कि स्वामी प्रसाद मौर्य‚ दारा सिंह चौहान व कुछ विधायकों द्वारा बीजेपी छोड़े़ जाने को ‘भगदड़़’ का नाम दिया गया। शायद‚ यह बड़़ी वजह बनी कि पार्टी ने सीमित संख्या में ही विधायकों के टिकट काटे। १० मार्च को तीसरे सवाल का उत्तर मिला कि न तो जनता ने इस बात को स्वीकारा कि योगी एक खास जाति को बढ़ावा देते हैं और न ही चुनाव परिणामों ने इस बात की गुंजाइश छोड़़ी कि ब्राह्मण वर्ग योगी जी से नाराज है। यदि ऐसा होता तो बीजेपी के पक्ष में यह परिणाम नहीं आता। योगी ने अफसरशाही को निरंकुश कर दिया। यह बात योगी विरोधियों ने प्रमुखता से फैलायी। मगर‚ यह भी उल्टी ही पड़़ी। उसी अफसरशाही के बल पर योगी ने यूपी की कानून–व्यवस्था को दुरुस्त किया और यह धारणा बनायी कि यूपी में मां–बेटियां २४ घंटे सुरक्षित हैं। मतदान की तिथि आते–आते तो यह मुद्दा सब पर हावी रहा। ‘बुलड़ोजर’ शब्द का जन्म इसी मुददे पर हुआ। इसने योगी को एक ब्रांड़ बना दिया। बाद में यह ब्रांड़ यूपी की हर दिशा में पूरे जोर–शोर से चला। फिर बात आयी कि चुनाव बाद बीजेपी के सहयोगी दल सीएम के रूप में योगी को समर्थन नहीं देंगे। अब नतीजे बता रहे हैं कि सहयोगी दलों के पास इस तरह के हालात ही नहीं हैं कि वह इस बारे में सोच भी सकें बल्कि हकीकत यह है कि सभी योगी आदित्यनाथ के कसीदे पढ़ रहे हैं।
अब आते हैं इस बात पर कि चुनाव बाद सीएम कौन बनेगाॽ एक साक्षात्कार के दौरान मैंने योगीजी से यह सवाल सीधे पूछा था कि चुनाव बाद बीजेपी जीती तो मुख्यमंत्री कौन बनेगाॽ॥ इस प्रश्न का उत्तर योगी जी ने बड़़ी ही शालीनता के साथ दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव बाद भारतीय जनता पार्टी का ही कोई कार्यकर्ता मुख्यमंत्री बनेगा। विपक्ष के लिए कोई स्थान नहीं है। इस सहज उत्तर के पीछे उनका आत्मविश्वास इस बात की ओर इंगित कर रहा था कि मोदी जी और पूरे संगठन का उन्हें भरपूर समर्थन हासिल है। इसके कारण साफ थे। मेरठ की रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कह दिया कि यूपी (योगी) उपयोगी. मतलब कि यूपी के लिए योगी ही उपयोगी हैं।
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