लोकतंत्र शायद कहते ही उसे हैं‚ जहां ‘लोक’ यानी ‘जन’ अपने हित में काम करने वाला शासक चुनने को स्वतंत्र हो। पांच राज्यों के चुनाव में लोकतंत्र की यही खूबसूरती सामने आई‚ जब इन राज्यों की जनता ने जातिवाद और धार्मिक ध्रुवीकरण से ऊपर उठकर विकास को देखते हुए और विकास के लिए वोट किया। पहले से भाजपा–शासित राज्यों की जनता ने इन राज्यों में डबल इंजन की सरकार के फायदों का अनुभव करते हुए पुनः उन्हीं सरकारों को मौका दिया। निश्चित रूप से इस सफलता का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है‚ जिन्होंने केंद्र की योजनाओं को सफलतापूर्वक जन–जन तक पहुंचाने का तंत्र तैयार किया‚ और उसे पहुंचाने में सफल भी रहे।
२०१४ में पहली बार प्रधानमंत्री बनते ही जब नरेन्द्र मोदी ने गरीब जनता के जन धन खाते खुलवाने शुरू किए तो उनका जमकर मजाक उड़ाया गया। कहा गया कि बिना पैसे के ये खाते खुलवा कर क्या होगाॽ एक चुनावी जुमले को गलत तरीके से पेश कर १५ लाख के मुद्दे पर भी मोदी एवं इन जनधन खातों का मजाक उड़ाया गया। लेकिन यह एक दूरदशतापूर्ण कदम था। बाद के दिनों में आम लोगों के इन्हीं जन धन खातों में जब प्रधानमंत्री आवास योजना से लेकर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि एवं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) की सभी योजनाओं के पैसे बिना कमीशनखोरी के पहुंचने लगे तो लोगों को इन जन धन खातों की ताकत का अहसास होने लगा। ग्राम प्रधान से लेकर ब्लॉक और तहसील तक के चक्कर काटने वाले सामान्य ग्रामीणों को जब घर बैठे सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगा तो यह उनके लिए नया अनुभव था। इसका पहला असर २०१७ के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दिखाई दिया जब विरोधी दलों के नेता जातिवाद की खुमारी में ही रहे‚ और शौचालय‚ सिलेंडर‚ आवास एवं मुद्रा योजना ने प्रदेश में जातिवादी दलों का सूपड़ा ही साफ कर दिया। कामकाज की इसी राजनीति का असर था कि २०१९ के लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जातिवाद की राजनीति करने वाले दो बड़े दलों समाजवादी पार्टी (सपा) एवं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को नकार कर मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनाने में इन दलों के समर्थकों ने भी बड़ी भूमिका निभाई। जातिवाद और मजहबवाद की राजनीति करने वाले दलों के लिए यह बड़ा झटका था। लेकिन इस बार हुए विधानसभा चुनावों में भी इन दलों के नेताओं ने एक बार फिर पुराना ढर्रा ही अपनाया।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पुनः यादव–मुस्लिम गठजोड़ के सहारे आगे बढ़ने का विकल्प चुना। उन्हें लगा कि इस गठजोड़ की आक्रामक ताकत पिछड़ा वर्ग की अन्य जातियों को भी उनके साथ ले आएगी। लेकिन हुआ इसका उलटा। उनके गठजोड़ की आक्रामकता ने कमजोर वर्गों को आकर्षित करने से ज्यादा उन्हें भयभीत किया। पिछले पांच वर्षों से चैन की नींद सो रहा यह वर्ग पुनः कोई मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता था। पश्चिम से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक उसने एक स्वर से सुधरी कानून–व्यवस्था की प्रशंसा की। महिलाएं इससे विशेष प्रभावित दिखाई दीं। मुस्लिम महिलाएं भी। क्योंकि कानून–व्यवस्था बिगड़ने का खमियाजा तो उनके परिवारों को भी भुगतना पड़ता था। कोरोना काल में शुरू हुए मुफ्त राशन वितरण के साथ–साथ राज्य एवं केंद्र की अन्य सरकारी योजनाओं के बिना भेदभाव वितरण ने भी सभी को प्रभावित किया। देश में जिन तीन करोड़ २२ लाख लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है‚ उनमें ३१ फीसद लाभार्थी अल्पसंख्यक वर्ग के हैं। वे कैसे इससे इंकार कर सकते थेॽ जैसे–जैसे चुनाव नजदीक आते गए धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण की भरपूर कोशिश की गई। लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ इस कोशिश पर भारी पड़ा। माना जा रहा है कि बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं ने खुद को इस ध्रुवीकरण से दूर रखते हुए मतदान किया।
आवारा पशुओं का मामला भी जोर–शोर से उठाया गया। किसानों को अहसास था कि आवारा पशु हमारे ही छोड़े हुए हैं। इस संबंध में भी किसानों ने प्रधानमंत्री मोदी के उस आश्वासन पर भरोसा जताया कि १० मार्च के बाद हम इस समस्या का हल दे देंगे। यह वही किसान वर्ग था‚ जिसे किसान आंदोलन के नाम पर भड़काने की पूरी कोशिश की गई। एक हवा चलाई गई कि पूरे प्रदेश का किसान भाजपा से नाराज है। लेकिन यह हवा पूरे प्रदेश में तो क्या‚ उस पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी नहीं चल पाई‚ जहां से तथाकथित किसान नेता आते हैं। यही कारण रहा कि आज करीब चार दशक बाद उत्तर प्रदेश में किसी सरकार ने सकारात्मक वोटों के जरिए फिर से सत्ता में वापसी की है। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बहुत बड़ा योगदान है‚ जिन्होंने कई मिथकों को तोड़ते हुए सिर्फ काम करने में भरोसा जताया। पहले के मुख्यमंत्री न जाने किस डर से नोएडा जाने से कतराते थे‚ महामार्गों का निर्माण करवाने से डरते थे। योगी नोएडा भी अनगिनत बार गए‚ और महामार्ग भी अनगिनत बनाए। जनता उनके नेतृत्व में भाजपा को शानदार तरीके से फिर वापस ले आई है।
यही स्थिति गोवा‚ मणिपुर और उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों में भी रही। इन राज्यों में एक–एक विधायक महत्वपूर्ण होता है। यहां आम तौर पर सरकारों का दोहराव देखने को नहीं मिलता। लेकिन इन तीनों राज्यों में भी भाजपा सिर्फ और सिर्फ अपने काम के भरोसे वापस आती दिख रही है। गोवा के चुनाव प्रभारी रहे देवेंद्र फडणवीस की रणनीति का ही कमाल है कि कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी‚ तृणमूल कांग्रेस‚ महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी‚ शिवसेना और राकांपा की भीड़ में भी भाजपा बहुमत के साथ सरकार बना रही है‚ और अब तक सारे रिकॉर्ड तोड़कर उसने यह सफलता पाई है। देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सवागीण विकास पर मुहर लगाकर जाति–पाति एवं सांप्रदायिक राजनीति करनेे वालों को उनकी जगह बता दी। उत्तर प्रदेश में जनता ने अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण में सहयोग करने वालों को मत दिया‚ काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिड़ोर को मत दिया।