भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी २५ दिसम्बर‚ १९२५ को पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी एवं माता कृष्णा वाजपेयी के परिवार में ग्वालियर में जन्मे थे। ९३ वर्ष की अपनी लंबी जीवन यात्रा पूर्ण कर १६ अगस्त‚ २०१८ को स्वर्ग गमन कर गए। वे भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागिता‚ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक‚ संवेदनशील कवि‚ यशस्वी राजनेता‚ मुखर सांसद‚ प्रखर वक्ता‚ लोकप्रिय प्रधानमंत्री जैसे अनेक गुणों से युक्त विराट व्यक्तित्व के धनी थे। इन्हीं सब आदर्श गुण एवं व्यवहार के कारण अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था‚ ‘उत्कृष्ट वक्ता‚ प्रभावशाली कवि‚ असाधारण लोकसेवक‚ उत्कृष्ट सांसद और महान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आधुनिक भारत के सबसे उचे नेताओं में से थे‚ जिन्होंने पूरा जीवन हमारे महान देश की सेवा में लगाया। लंबे समय तक हमारा देश उनकी सेवाओं को याद रखेगा।’
स्वयंसेवक–पत्रकार–विद्यार्थी काल में अटल जी १९४० में स्व. नारायण राव तर्टे जी के संपर्क में आकर संघ के संपर्क में आए। संघ विचार से प्रभावित होकर आजीवन प्रचारक रहने का संकल्प किया। राष्ट्रधर्म‚ पांचजन्य एवं वीर अर्जुन जैसे पत्रों का संपादन उन्होंने किया। इन पत्रों का लेखन‚ संपादन‚ कंपोजिंग एवं छपने के बाद पीठ पर लाद कर यथा स्थान पहुंचाने की व्यवस्था भी वही करते थे। ये सब करते हुए कार्य मग्न‚ रात्रि को भूखे–प्यासे ईट का तकिया बनाकर जमीन पर सो जाने की घटनाओं ने कितने ही युवकों को देश सेवा के मार्ग पर चलने के लिए लिए प्रेरित किया।
१९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में २३ दिन के कारावास से उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा प्रारंभ की। भारतीय चिंतन के आधार पर राजनीति में विकल्प प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ड़ॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ के नाम से दल की स्थापना हुई जो आज भारतीय जनता पार्टी के नाम से विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। १९५२ में प्रथम लोक सभा चुनाव में वे पराजित हुए। १९५७ के लोक सभा चुनाव में बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से विजय प्राप्त कर उन्होंने अपनी संसदीय यात्रा प्रारंभ की। अटल जी १० बार लोक सभा एवं २ बार राज्य सभा सदस्य रहे। विपक्ष के नेता‚ विदेश मंत्री एवं प्रधानमंत्री जैसे पदों को उन्होंने गरिमा प्रदान की। अस्वस्थता के कारण २००४ में उन्होंने अपने को राजनीति से अलग कर लिया।
अटल जी हिंदी भाषा के अनन्य पुजारी थे। १९११ में संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्री रहते उन्होंने हिंदी में भाषण दिया। इस प्रसंग को अपनी कविता में ‘हिंद हिंदी में बोला’ कह कर उन्होंने महिमामंडित भी किया। उनके लिए भारत भूमि जमीन का टुकड़ा नहीं‚ जीता जागता राष्ट्रपुरुष थी। देश के अंदर निवास करने वाले सभी लोग अपने थे। यहां की नदियां‚ पेड़–पौधे‚ परंपराएं सभी उनके लिए पूजनीय थीं। आसेतू हिमाचल इस देश का कण–कण उनके लिए पवित्र था। ‘दूध में दरार पड़ गई’ कविता के माध्यम से पंजाब में आतंकवाद से उपजी पीड़ा को अटल जी ने व्यक्त किया था। मातृभूमि की पवित्रता का वर्णन करते हुए उन्होंने अपने भाषण में कहा‚ ‘यह वंदन की भूमि है‚ अभिनंदन की भूमि है‚ यह तर्पण की भूमि है‚ यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकड़़–कंकड़ शंकर‚ इसका बिंदु–बिंदु गंगाजल है। हम जिएंगे तो इसके लिए‚ मरेंगे तो इसके लिए।’
प्रधानमंत्री के कार्यकाल में अटल जी ने भारत के विकास में नई गाथा जोड़ी। गांवों को सड़कों से जोड़ने के लिए ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’‚ ‘स्वर्णिम चतुर्भुज योजना’‚ ढांचागत विकास के लिए समुद्री एवं वायु पत्तनों का विकास आदि अनेक कार्य उनके कार्यकाल की देन हैं। भारतीय सीमाओं की सुरक्षा के संबंध में अटल जी ने संसद एवं देश को सदैव सावधान किया। प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की तिब्बत के विषय पर विमुखता की उन्होंने आलोचना की। चीन के भारत पर आक्रमण के समय उन्होंने सड़क से संसद तक भारत सरकार एवं जनता को सावधान किया था कि चीन का व्यवहार धोखेबाजी का है‚ उसने तिब्बत पर धोखा दिया है। उन्होंने आगाह किया था कि पंचशील के चक्कर में आकर केंद्र की सरकार दुर्बल कदम न उठाए। अटल जी का स्पष्ट मानना था कि पड़ोसियों के साथ सदैव हमारा मित्रतापूर्ण संबंध रहे। उन्होंने कहा था‚ ‘मित्र बदले जा सकते हैं‚ पड़ोसी नहीं।’ इसी विश्वास के आधार पर प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने आगरा शिखर वार्ता एवं अमृतसर से लाहौर की बस यात्रा प्रारंभ की। लेकिन अपने स्वभाव के अनुसार पाकिस्तान शांति की ओर न जाकर युद्ध की ओर गया। देश को करगिल युद्ध करना पड़ा। अटल जी के जीवन का वैशिष्ट्य था कि जिस विश्वास के साथ शांति की ओर बढ़े थे‚ उसी विश्वास से युद्ध का भी वरण किया‚ जिसमें हमारी सेनाओं ने विजय प्राप्त की। परमाणु बम का विस्फोट करके उन्होंने भारत को विश्व की महाशक्तियों के साथ लाकर खड़ा किया।
देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनसंघ ने अपने दल का विलय जनता पार्टी में किया था। जनता पार्टी के इस प्रयोग की असफलता से उनको घोर निराशा हुई थी। इस निराशा को कवि ह्रदय अटल जी ने अपनी कविता में यह कहकर व्यक्त किया‚ ‘राह कौन सी जाऊं मैं’‚ लेकिन पुनः उन्होंने अपनी सामर्थ्य को संकलित किया और लिखा‚ ‘गीत नया गाता हूं’। इसी विश्वास से १९८० में भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ।
भाजपा के मुंबई अधिवेशन के अपने समापन भाषण में उन्होंने कहा‚ ‘अंधेरा छटेगा‚ सूरज निकलेगा‚ कमल खिलेगा।’ आगामी चुनाव में भाजपा को सफलता नहीं मिली। अटल जी स्वयं भी हार गए। ‘न दैन्यं न पलायनम’ को चरितार्थ करते हुए उन्होंने सहयोगियों एवं देश भर में फैले कार्यकर्ताओं का अचूक मार्गदर्शन किया‚ जिसका परिणाम आज भाजपा देश का नेतृत्व करने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। दिल्ली की अनुसूचित वर्ग की सभा में बोलते हुए अटल जी ने कहा था‚ ‘न हम मनुवादी हैं‚ न ब्राह्मणवादी हैं‚ हम संविधानवादी हैं‚ इसलिए हम अंबेडकरवादी हैं।’ लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अटल जी सदैव लड़े‚ आपातकालीन कारावास भी काटा। दार्शनिक दृष्टि लेकर उन्होंने राजनीति में कार्य किया। समाज की शक्ति पर उनको अगाध विश्वास था। देश के विषय पर पक्ष–विपक्ष से ऊपर उठकर उन्होंने अपने को सदैव प्रस्तुत किया। अपनी बात सदैव निर्भीकता के साथ रखी। उनका शब्द प्रयोग अतुलनीय था। भारतीय संस्कृति के प्रतीक पुरुष थे। उनके जन्म दिवस पर हम भारत को आत्मनिर्भर‚ समरस एवं सुरक्षित भारत बनाने का संकल्प लें।