जलवायु पर स्टाकहोम के ग्लासगो में चल रहा संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन शुक्रवार को खत्म होगा। लेकिन इसी साल दुनिया के विभिन्न भागों में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जो बताती हैं कि मौसम रह रहकर इशारे दे रहा है कि जितना जल्दी हो सके इस बारे में सचेत हो जाना चाहिए वरना संभलने का वक्त नहीं मिलेगा। हमारा देश भी ऐसी घटनाओं से अछूता नहीं है। दक्षिण भारत का प्रमुख शहर चेन्नई पिछले पांच दिन से भारी बारिश से बेहाल है। बारिश ने स्कूल‚ कॉलेज और दफ्तरों समेत जनजीवन को अस्त–व्यस्त किया हुआ है। भारत की उत्पादन राजधानी कहे जाने वाले चेन्नई में शनिवार रात से ही भारी बारिश थमने का नाम नहीं ले रही। सड़कें पानी से लबालब हैं। उनमें कारें तक डूबी हुई हैं। राहत कार्य के लिए रबर की नावों का इस्तेमाल किया जा रहा है। नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स राहत और बचाव कार्य में जुटी है। यह चेन्नई में २०१५ के बाद की सबसे भारी बारिश है। २०१५ में नवम्बर–दिसम्बर में उत्तर पूर्वी मॉनसून के कारण दक्षिण भारत में भारी बारिश हुई थी तब चेन्नई में भीषण बाढ़ आ गई थी। उस बाढ़ में लगभग ३०० लोग मारे गए थे और १८ लाख से ज्यादा प्रभावित हुए थे। बीस हजार करोड़ रु पये से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान हुआ था। इस बारिश ने भी चेन्नई के लोगों की छह साल पुरानी यादें ताजा कर दी हैं। बंगाल की खाड़ी के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बना हुआ है‚ जो पश्चिम–उत्तर–पश्चिम की ओर बढ रहा है। स्थानीय पुलिस‚ सशस्त्र रिजर्व बल‚ तमिलनाडु विशेष पुलिस और होम गार्ड के कुल ७५‚००० जवानों को तैयार रखा गया है। तटीय सुरक्षा समूह के ३५० कर्मियों के साथ बचाव नौकाओं समेत पुलिस की २५० विशेष टीमों को भी तैनात किया गया है। पूरे दक्षिण चेन्नई में केबल की खराबी और फीडर ट्रिपिंग के कारण बिजली गुल है। कई इलाकों में बाढ़ के कारण एहतियात के तौर पर बिजली बंद कर दी गई है। पिछले एक महीने में यह तीसरा ऐसा वाकया है जब एकाएक हुई बारिश के कारण आई बाढ़ ने लोगों को प्रभावित किया है। अक्टूबर में ही केरल के कई जिलों में बारिश के बाद बाढ़ से २६ से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। उसके फौरन बाद उत्तराखंड में भी भारी बारिश ने तबाही मचाई और ४० से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी। सिर्फ नैनीताल में २५ लोगों की जान गई थी।
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