तारापुर उपचुनाव को लेकर बिहार की राजनीति परवान पर है। लालू प्रसाद यादव भी बीमारी की परवाह छोड़ चुनाव प्रचार में हैं। यहां से मेवालाल चौधरी विधायक थे। उनकी मौत कोरोना से हो गई। माना जाता है कि कोरोना के समय उनका इलाज समय पर नहीं हो पाया, इस कारण उनकी मौत हो गई। इसलिए इस चुनाव में विपक्ष के लिए हेल्थ सिस्टम का मुद्दा भी है।
तारापुर में सड़कें अच्छी हैं। बिजली ठीक रहती है, लेकिन लोगों की शिकायत है कि बिजली बिल अनाप-शनाप आता है। तारापुर मुख्य बाजार में अतिक्रमण की वजह से सड़क पतली हो गई है और जाम का नजारा आम है। मुख्य बाजार में आम लोगों के लिए एक शौचालय भी सही स्थिति में नहीं है।
तारापुर और उसके आसपास का क्षेत्र असरगंज, टेटिया बम्बर, संग्रामपुर, हवेली खड़गपुर आदि का इलाका पूर्णतया खेतिहार का इलाका है। धान, गेहूं, ईख, दलहन की अच्छी खेती यहां होती है, लेकिन इंडस्ट्री के नाम पर कुछ नहीं है।
विकास मुद्दा नहीं, जातियों में बंटे हैं वोटर
यहां विकास मुद्दा नहीं है। जाति मुद्दा है। वोटर जातियों में बंटे हैं। विकास की बात होती भी है तो वह सिर्फ ऊपर से दिखाने के लिए। वोट तो जाति देख कर ही लोग करेंगे। यादव, कोयरी-कुर्मी, राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार मुखर जातियां हैं। ये अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट करने की बात खुल कर करते हैं, लेकिन बड़ा वर्ग यहां वैश्यों का है।
वैश्य खुल कर नहीं बोलते। यह बिजनेस करने वाली जाति है। इन्हें शांति चाहिए कारोबार चलाने के लिए। इनका वोट NDA को जाता रहा है। माना जाता है कि इनका रुझान खास तौर पर BJP की तरफ रहा है। NDA में यह सीट JDU के पास गई है, लेकिन इस बार RJD ने खेल कर दिया है। सूढ़ी जाति के अरुण साह को टिकट दे दिया है। ऐसा काफी दिनों बाद हुआ है कि किसी मजबूत पार्टी ने वैश्य को टिकट दिया है।
JDU ने यहां से कोयरी जाति के राजीव कुमार सिंह को, कांग्रेस ने ब्राह्मण जाति के राजीव मिश्रा को और चिराग पासवान की पार्टी ने राजपूत जाति के चंदन सिंह को टिकट दिया है। यह विधानसभा जमुई लोकसभा में पड़ता है, जिसके वर्तमान सांसद चिराग पासवान हैं।
यहां के पढ़े-लिखे वोटर दो तरह से बात करते हैं। वे कहते हैं, ‘मेरे नाम से छापिएगा तो हम यही कहेंगे कि JDU को वोट देंगे और नाम से नहीं छापना है तो, हम कहते हैं अपनी जाति वाले को ही वोट देंगे।’ बस इसी दो लाइन पर तारापुर का चुनाव हो रहा है।
स्थानीय लोगों ने बातचीत में क्या-क्या कहा
मोहनगंज में चंदा देवी सूप बनाती हुई दिखीं। वह कहती हैं, ‘हम अपने मन से वोट करेंगे।’ वोट देने का मुद्दा क्या होगा? इस सवाल पर कहती हैं, ‘हम हर साल वोट देते हैं। हम चाहते हैं कि हमको इंदिरा आवास मिले, लेकिन जमीन का पर्चा नहीं है। इसके लिए 10-15 हजार रुपए मांगता है बाबू लोग, हम कहां से लाएंगे?’
तारापुर बाजार में मिथुन झालमूढ़ी की दुकान चलाते हैं। यह अंग प्रदेश का खास नाश्ता है। इसकी यहां अच्छी बिक्री है। वे कहते हैं, ‘हमारी दुकान में सभी तरह के लोग आते हैं, लेकिन हल्ला लालटेन का है।’ पान दुकानदार गणेश कहते हैं, ‘यहां कोई मुद्दा नहीं है। समय आने पर लोग अपना-अपना फैसला ले लेंगे।’
दुकानदार राजीव वर्मा कहते हैं, ‘जिस पार्टी में माहौल देखेंगे, उसमें वोट देंगे। विकास तो हुआ ही है।’ निरंजन कुमार भगत कहते हैं, ‘सड़क बन गई, नहीं तो सड़क पर बड़ा-बड़ा गड्ढा रहता था, चलना दुश्वार था।’ प्रवीण कुमार उर्फ पिंकू कहते हैं कि वैश्यों का वोट वैश्य जाति को जाएगा।
जाति की राजनीति कर बन रही रणनीति
तारापुर में वोटरों की जाति पर गौर करें तो अनुमानतः यहां यादव 55-60 हजार, कोयरी-कुर्मी 50-52 हजार, भूमिहार 10-12 हजार, राजपूत 21-22 हजार, ब्राह्मण 10-11 हजार, बनिया या वैश्य 20-22 हजार, बिंद 7-8 हजार की संख्या में हैं। मुस्लिम 10 हजार और महादलित 15 हजार के आसपास हैं।
RJD की तरफ यादव, मुस्लिम और वैश्व वोटरों का झुकाव है। JDU की तरफ कोयरी-कुर्मी, बिंद और भूमिहारों का झुकाव है। राजपूतों का वोट चिराग पासवान की पार्टी को जाएगा और ब्राह्मणों का वोट कांग्रेस को जाएगा। राजपूत, ब्राह्णण, भूमिहार को छोड़ दें, तो बड़ा वोट बैंक यादव, कोयरी-कुर्मी और बनिया का है।
तारापुर में हर किसी की जुबान पर यही है कि वैश्यों ने एकमुश्त वोट जिसको दे दिया, वह पार्टी जीत जाएगी। कड़ी टक्कर JDU के राजीव कुमार सिंह और RJD के अरुण कुमार साह के बीच है। चुनाव में 25-30 लाख की गाड़ियों की कतार सड़क से गुजर रही है और आम लोग जुगाड़ गाड़ी से आते-जाते दिख रहे हैं। व्यापारी वर्ग नोटबंदी, GST, कोरोना बंदी, बड़ी ट्रकों पर रोक आदि से परेशानी में है।
कुशेश्वरस्थान उपचुनाव के लिए चुनावी शोर थम चुका है. बुधवार की शाम 4 बजे ही प्रचार समाप्त हो गया है. कुशेश्वरस्थान सीट पर 30 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे. अंतिम दिन भी सभी दलों ने जोर लगाया और अपने-अपने उम्मीदवारों के पक्ष में कई रैलियां और जनसभाएं की.
कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट उन इलाकों में से है जो साल में करीब-करीब छः महीना बाढ़ का दंश झेलता है. इसी सीट के अंतर्गत आनेवाले क्षेत्र में ही मिथिलांचल के प्रसिद्ध तीर्थस्थल बाबा कुशेश्वर नाथ का मंदिर है जहां बिहार सहित अन्य प्रदेशों से लेकर नेपाल तक से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. 2008 के परिसीमन के बाद बनी इस आरक्षित सीट से दिवगंत विधायक शशिभूषण हजारी ही विधायक बनते आ रहे थे. हाल ही वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर शशि भूषण हजारी लगातार तीसरी बार विधायक बने थे, लेकिन अचानक दुनिया को अलविदा कहने के बाद इस बार इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इस बार उनके बड़े पुत्र अमन भूषण हजारी मैदान में हैं .
कैसा रहा है चुनावी इतिहास?- कुशेश्वरस्थान विधानसभा से शशि भूषण हजारी पहली बार 2010 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे. उस वक्त लोजपा के रामचंद्र पासवान को हराया था. उसके बाद 2015 में पार्टी बदलकर जदयू में आ गए. महागठबंधन ने टिकट दिया और हजारी ने एनडीए की ओर से एलजेपी के मृणाल पासवान को 18 हजार वोट के अंतर से हरा दिया. इसके साथ ही लागातार दूसरी बार सीट को अपने पाले में रखा.
फिर बारी थी वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव की. इस बार शशि भूषण हजारी के आगे चुनौती बड़ी थी क्योंकि स्थानीय लोग कई बार गुस्से का प्रदर्शन कर चुके थे. कई बार जनता के बीच उनके गुस्से के शिकार भी हुए. यहां तक कि उन्हें एक बार बंधक तक बना लिया गया था. लेकिन, फिर एनडीए से जदयू के टिकट पर कांग्रेस प्रत्याशी डॉ अशोक राम से कांटे का मुकाबला हुआ और परिणाम ये हुआ कि बिना कोई नाम चिन्ह राजनेता के पहुंचे ही चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी को 7222 वोट से करारी शिकस्त दे दी और तीसरी बार विधायक बने.
कब होगा उपचुनाव के लिए मतदान?
कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट पर 30 अक्टूबर को वोटिंग होगी जबकि 2 नवंबर को मतगणना होगी. मालूम हो कि इस विधानसभा में करीब 240000 कुल मतदाता हैं, जिसमें 125000 पुरूष और 115000 के करीब महिला वोटर हैं.
इस बार जनता कहाँ करेगी मतदान ?
इस बार कयास लगाया जा रहा था कि दिवंगत विधायक के पुत्र अमन भूषण हजारी को सहानुभूति वोट मिल सकता है. लेकिन, आरजेडी ने मुसहर समुदाय से गणेश भारती को टिकट देकर मुसहर वोट को साधने के दृष्टिकोण से अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. बता दें कि इस विधानसभा में मुसहर वोटरों की संख्या करीब 38000 के आस-पास है. इतना ही नहीं यादव और मुसलमानों को इकट्ठा कर अपनी जीत की दावेदारी पेश करने में आरजेडी लगी हुई है. वहीं, एनडीए इस बात को लेकर ताल ठोक रही है कि महागठबंधन में कांग्रेस नहीं रही साथ ही आरजेडी को घर में ही बगावत है, इसलिए उनके सामने कोई टक्कर में नहीं है.
कांग्रेस से अतिरेक को जीत की उम्मीद- कांग्रेस से यहां कई बार प्रत्याशी रह चुके डॉ अशोक राम के पुत्र अतिरेक कुमार मैदान में हैं. इनका दावा है कि पिता की बनी बनाई छवि और खुद के साथ पार्टी को नया अवसर देने की बात कह कर अपने आप को जीत की दावेदारी पेश कर रहे हैं. लोक जनशक्ति पार्टी चिराग गुट भी अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा है जिसपर दशकों से पासवान वोटरों पर दबदबा रहा है. कुल मिला इस सीट पर कांटे की टक्कर होने वाली है. कौन इस सीट पर कब्जा जमाएगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
विकास को तरसता क्षेत्र
साल में छः माह बाढ़ की दंश और गरीबी होने के कारण पलायन यहां की मुख्य वजह है. हर साल बाढ़ के दौरान यहां फसल बर्बाद हो जाती है और लोगों की कमर टूट जाती है. इसके अलावा स्थानीय जनता के बीच घोषणा होने के वावजूद कुशेश्वरस्थान को पर्यटक स्थल का दर्जा नहीं मिलने से सरकार के प्रति गुस्सा भी व्याप्त है. वहीं, रेल चलने का सपना भी अधूरा है. सरकार की ढिलाई के कारण पक्षी विहार बस नाम का रह गया और अब यहां से विदेशी पक्षियों का पलायन हो रहा है. जबकि, कभी यहां लाखों की संख्या में विदेशी पक्षी आशियाना बनाते थे.
वहींं, बिजली, पानी, रोड जैसी मूल समस्या से पहले की अपेक्षा लोग वर्तमान में संतुष्ट नजर आ रहे हैं. जानकारों की माने तो उनका कहना है कि जाति हमेशा से इस सीट पर एक फ़ैक्टर रहा है. इस लिहाज से आरजेडी और एनडीए दोनों ही अपने पक्ष के वोटरों को लुभाने के लिए मंत्री सहित विधायकों को पंचायतवार केम्प करवा रहा है. दिन भर मंत्रियों और बड़े बड़े राजनेताओं का जमावड़ा रहता है.