हाल ही में 25 अक्टूबर को केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा त्योहारी सीजन के दौरान मांग में होने वाली वृद्धि और खाद्य तेलों की कीमतों पर नियंत्रण के मद्देनजर २३ राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के साथ वर्चुअल बैठक आयोजित करके खाद्य तेलों एवं तिलहनों की भंडारण सीमा पर कार्रवाई की समीक्षा की गई। केंद्र ने गत १० अक्टूबर को घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने और उपभोक्ताओं को राहत प्रदान करने के लिए कुछ आयातकों और निर्यातकों को छोड़कर खाद्य तेलों और तिलहनों के व्यापारियों पर ३१ मार्च तक के लिए भंडारण सीमा तय कर दी थी। समीक्षा बैठक में पाया गया है कि इस परिपेक्षय में देश के अधिकांश राज्य तेजी से आगे बढ़े हैं।
निस्संदेह इन दिनों देश में खाद्य तेलों की बढ़ी हुई कीमतें सभी की चिंता का सबब बन गई हैं। ऐसी चिंता के बीच केंद्र सरकार खाद्य तेलों की कीमतों पर नियंत्रण और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मुताबिक पिछले एक वर्ष में देश के खाद्य तेल बाजार में सभी तेलों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। यदि अक्टूबर‚ २०२० की तुलना में अक्टूबर‚ २०२१ में खाद्य तेल बाजार में बढ़ी हुई कीमतों को देखे तो मूंगफली तेल करीब १९ फीसदी‚ सरसों तेल करीब ४४ फीसद‚ वनस्पति करीब ४६ फीसद‚ सोयाबीन तेल करीब ४९ फीसद‚ सूरजमुखी तेल करीब ३८ फीसद और पामोलिन तेल करीब ६२ फीसद महंगा दिखाई दे रहा है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि देश में खाद्य तेलों के बढ़ते मूल्यों पर काबू पाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। खाद्य तेलों के आयात शुल्क को तर्कसंगत बनाया गया है। टैक्सों में रियायत दी गई है। तिलहन और खाद्य तेलों पर स्टॉक सीमा लागू की गई है। कारोबार से जुड़े सभी पक्षकारों को तिलहन और खाद्य तेलों पर अपने स्टॉक की जानकारी स्वयं घोषित किए जाने के लिए अलग वेब पोर्टल शुरू किया गया है। सरकार ने एनसीडीईएक्स में सरसों तेल और तिलहन के वायदा कारोबार को भी निलंबित कर दिया है। सरकार के ऐसे प्रयासों के कारण ही वैश्विक बाजार में पामोलिन और सोयाबीन की कीमतों में भारी वृद्धि की तुलना में भारत में इनकी कीमतों में कम वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही‚ इन कदमों से अक्टूबर‚ २०२१ में पिछले माह की तुलना में विभिन्न खाद्य तेलों की कीमतें करीब तीन–चार रुपये कम हुई हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ११‚०४० करोड़ रु पये के वित्तीय परिव्यय के साथ राष्ट्रीय खाद्य तेलपाम ऑयल मिशन (एनएमईओ–ओपी) को लागू किया है। इसके तहत पाम ऑयल का रकबा और पैदावार बढ़ाने के लक्ष्य सुनिश्चित किए गए हैं। पाम की खेती के लिए सहायता में भारी बढ़ोतरी की गई है। पहले प्रति हेक्टेयर १२ हजार रु पये दिए जाते थे‚ जिसे बढ़ाकर २९ हजार रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है।
इसके अलावा‚ रखरखाव और फसलों के दौरान भी सहायता में बढ़ोतरी की गई है। इस योजना के तहत प्रस्ताव किया गया है कि वर्ष २०२५–२६ तक पाम ऑयल का रकबा ६.५ लाख हेक्टेयर बढ़ा दिया जाए और इस तरह १० लाख हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य पूरा कर लिया जाए। साथ ही‚ कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) की पैदावार २०२५–२६ तक ११.२० लाख टन और २०२९–३० तक २८ लाख टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। देश में खाद्य तेलों की बढ़ती हुई कीमतों के तीन बड़े कारण उभर कर दिखाई दे रहे हैं। एक‚ अपर्याप्त तिलहन उत्पादन‚ दो‚ देश में खाद्य तेलों की लगातार बढ़ती खपत; और तीन‚ कई देशों की नई बायोफ्यूल नीतियां। यद्यपि इस समय भारत गेहूं‚ चावल और चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भर है‚ लेकिन तिलहन उत्पादन में देश अपनी जरूरतों को पूरा करने लायक उत्पादन भी नहीं कर पा रहा है। इस कमी को दूर करने के लिए घरेलू तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए कई प्रयासों और पीली क्रांति से भी तिलहन उत्पादन बढ़ाने में कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी।
जहां देश में आवश्यकता के अनुरूप तिलहन उत्पादन नहीं बढ़ा‚ वहीं दूसरी ओर जीवन स्तर में सुधार और बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य तेल की मांग बढ़ती गई। वर्ष १९९० के आसपास देश खाद्य तेलों के मामले में लगभग आत्मनिर्भर था। फिर खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता धीरे–धीरे बढ़ती गई और इस समय यह चिंताजनक स्तर पर है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले कुछ वर्षा से देश में तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहन देकर तिलहन का उत्पादन बढ़ाने एवं खाद्य तेल आयात में कमी लाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक वर्ष २०२०–२१ के दौरान देश में कुल तिलहन उत्पादन रिकॉर्ड ३६.१० मिलियन टन अनुमानित है‚ जो वर्ष २०१९–२० के उत्पादन की तुलना में २.८८ मिलियन टन अधिक है।
चालू वर्ष २०२१–२२ के लिए तिलहन उत्पादन का लक्ष्य बढ़ाकर ३८ मिलियन टन किया गया है‚ लेकिन अभी तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर इसमें देश को आत्मनिर्भर बनाने ओर खाद्य तेल की महंगाई को नियंत्रित करने के लिए नये रणनीतिक प्रयासों के साथ मीलों चलना होगा। राष्ट्रीय खाद्य तेल–पाम ऑयल मिशन की तरह राइसब्रान ऑयल और सरसों ऑयल के उत्पादन को बढ़ाने संबंधी विभिन्न पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाना उपयुक्त होगा। उम्मीद करें कि सरकार तिलहन और खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए लागू किए कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर हर संभव तरीके से ध्यान देगी। जब किसानों को तिलहन उत्पादन के लिए और अधिक प्रोत्साहन दिए जाएंगे‚ तो निश्चित रूप से देश में तिलहन उत्पादन बढ़ेगा और ऐसे में खाद्य तेलों का उत्पादन बढेगा तथा खाद्य तेलों पर आयात निर्भरता कम हो सकेगी।