सुप्रीम कोर्ट ने जिला एवं राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में नियुक्तियों में देरी पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है‚ तो उसे उपभोक्ता संरक्षण कानून को समाप्त कर देना चाहिए।
जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की बेंच ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि सुप्रीम कोर्ट से न्यायाधिकरणों में रिक्तियों की समीक्षा करने और उन्हें भरने के लिए कहा जा रहा है। यदि सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है‚ तो वह कानून निरस्त कर दे। हम यह देखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं कि रिक्तियों को भरा जाए। आमतौर पर हमें इस पर समय नहीं लगाना चाहिए और रिक्तियों को भरा जाना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायपालिका से यह मामला देखने को कहा गया है। यह बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। जिला और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष और इसके सदस्यों की नियुक्ति में सरकारों की नि्क्रिरयता और पूरे भारत में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के मामले का स्वतः संज्ञान लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने ११ अगस्त को केंद्र को निदæश दिया था कि वह आठ सप्ताह में रिक्त स्थानों पर भर्ती करे।
अदालत ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया बंबई हाई कोर्ट के फैसले से प्रभावित नहीं होनी चाहिए जिसने कुछ उपभोक्ता संरक्षण नियमों को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया को स्थगित नहयि रखा जाना चाहिए। हमारा विचार है कि हमारे द्वारा निर्धारित समय और प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए क्योंकि कुछ नियुक्तियां की जा चुकी हैं और अन्य नियुक्तियां अग्रिम चरण में हैं। सुनवाई शुरू होने पर मामले में न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत को बंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा कुछ उपभोक्ता संरक्षण नियमों को रद्द करने संबंधी आदेश से अवगत कराया।
उन्होंने कहा कि केंद्र ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम पेश किया है जो कि मद्रास बार एसोसिएशन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उल्लंघन है। केद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि सरकार बंबई हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने की तैयारी कर रही है जिसमें उपभोक्ता संरक्षण नियमों के कुछ प्रावधानों को रद्द किया गया है।
लेखी ने अदालत से कहा कि केंद्र द्वारा पेश किया गया न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन नहीं बल्कि यह मद्रास बार एसोसिएशन के फैसले के अनुरूप है। हालांकि‚ सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि अदालत कुछ कहती है और आप कुछ और करते हैं। ऐसा लगता है कि किसी तरह का प्रतिबंध लगाया जा रहा है और इस प्रक्रिया में देश के नागरिक परेशानी झेल रहे हैं। अदालत ने टिप्पणी की कि ये उपभोक्ता मंचों की तरह दिक्कतें दूर करने वाले स्थान हैं। ये छोटे मुद्दे हैं जिनसे लोग दो–चार होते हैं और ये कोई बहुत बड़े मामले नहीं हैं।