मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार कैबिनेट का विस्तार करने जा रही है. लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार से पहले हलचल काफी बढ़ गई है. पश्चिम बंगाल के आसनसोल से बीजेपी सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है.पश्चिम बंगाल के रायगंज से बीजेपी सांसद देबोश्री चौधरी (Debasree Chaudhuri) को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री के पद से इस्तीफा देने को कहा गया है.
बता दें कि राव साहब दानवे, संजय धोत्रे ने भी मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया है. सूत्रों ने ये जानकारी दी है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया MP की राजनीति के नए किंगमेकर, जानें उनका सियासी सफर
ज्योतिरादित्य सिंधिया को अगर मध्य प्रदेश की राजनीति में इस वक्त किंगमेकर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा. अपनी पूर्ववर्ती कांग्रेस पार्टी की सरकार गिराकर बीजेपी में आए और अब मोदी मंत्रिमंडल में मिनिस्टर बनने जा रहे हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया उस घराने का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके सदस्य दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं के फॉलोअर रहे हैं. मध्य प्रदेश की राजनीति का एक बेहद जाना-पहचाना नाम हैं ज्योतिरादित्य. वह सिंधिया राजघराने की तीसरी पीढ़ी के नेता हैं, जिनकी पहचान प्रदेश से बढ़कर देश में है. वह दादी स्व. विजयाराजे सिंधिया और पिता स्व. माधवराव सिंधिया की राजनीतिक विरासत के वारिस हैं. हालांकि, दादी और पिता दोनों का ताल्लुक़ दो अलग-अलग दलों से था. ज्योतिरादित्य को अपने पिता से राजनीति और क्रिकेट दोनों विरासत में मिले और दोनों को उन्होंने बखूबी संभाला.
ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री एक बेहद दुखद हादसे के बाद हुई. पिता माधवराव सिंधिया की सितंबर 2001 में यूपी के मैनपुरी में हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई. वो उस वक्त गुना-शिवपुरी से सांसद थे. उनके निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली और कांग्रेस के टिकट पर गुना-शिवपुरी सीट का प्रतिनिधित्व किया. वह पहली बार 2002 में सांसद चुने गए थे, लेकिन 2019 में कांग्रेस के टिकट पर वो लोकसभा चुनाव मोदी लहर में हार गए. बाद में पार्टी बदलने पर अब वह बीजेपी से राज्यसभा सदस्य हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया 2006 में पहली बार संचार एवं सूचना प्रोद्यौगिकी राज्यमंत्री बनाए गए और फिर बाद में वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री रहे.
एक सियासी तीर से विपक्षी दिग्गजों को परेशान करने का गुर सिंधिया से बेहतर कोई नहीं जानता. चुटीले तंज, सियासी समझ से भरे व्यंग्य और जनता से जुड़े मुद्दे उठाने में ज्योतिरादित्य माहिर हैं. राजघराने से होने के बाद भी आम आदमी से रिश्ता जोड़ने की कला सिंधिया के खून में है.
2018 में मध्य प्रदेश में अगर 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में आयी थी तो उसके पीछे भी उस वक्त कांग्रेस सांसद रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही रोल था. ग्वालियर-चंबल की सियासत का बड़ा चेहरा सिंधिया उस चुनाव में प्रदेश के नेता के तौर पर उभर कर सामने आए. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और स्टार प्रचारक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सबसे ज्यादा चुनावी सभाएं कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया था. उन्हें पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं और जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिला था.
कांग्रेस में रहते हुए वो राहुल औऱ प्रियंका गांधी के बेहद करीब रहे. यही वजह है कि 2019 के इस लोकसभा चुनाव में उन्हें पश्चिम उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई थी.
ज्योतिरादित्य ने स्कूल एजुकेशन मुंबई से हासिल करने के बाद हॉवर्ड और अमेरिका के स्टेनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री हासिल की. पढ़ाई के बाद अमेरिका में ही साढ़े चार साल लिंच, संयुक्त राष्ट्र न्यूयार्क और मार्गेन स्टेनले में काम का अनुभव लिया. राजनीति में आने से पहले ही 23 साल की उम्र में गुजरात के गायकवाड़ परिवार की प्रियदर्शिनी राजे से उनका विवाह हुआ. ज्योतिरादित्य के दो बच्चे हैं अनन्या और महाआर्यमन सिंधिया.
कमलनाथ का हमकदम बनते हुए कांग्रेस पार्टी ने 2018 में सिंधिया को चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष की कमान सौंपी थी. ज्योतिरादित्य जब कांग्रेस में थे तब उन्हें महाराज के नाम से ही पुकारा जाता था. अब बीजेपी में आने के बाद वो भाई साहब कहलाने लगे. लेकिन अपने ग्वालियर-चंबल इलाके में वो आम तौर पर महाराज नाम से ही पुकारे जाते हैं.
अपने पिता की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया भी क्रिकेट के शौकीन हैं. वो मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के अध्यक्ष भी रहे. राजनीति की व्यस्तता से अगर वक्त मिल जाए तो शौकिया तौर पर क्रिकेट ज़रूर खेलते हैं. गुना-शिवपुरी की जनता ने उनके शॉट्स देखे जब 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के साथ 5 ओवर का प्रदर्शनी मैच खेला था.