बिहार से जो चेहरे केन्द्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनते-बनते रह गए, उनमें दो नाम सबसे अहम हैं। पहला जनता दल यूनाईटेड के सांसद और कद्दावर नेता ललन सिंह हैं तो दूसरा नाम है बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी। बिहार से केन्द्रीय मंत्री बनने की रेस में सबसे आगे रहे इन नेताओं को इनके बड़े राजनीतिक कद ने ही रेस से बाहर कर दिया। इसके बाद से चर्चा शुरू हो गई कि आखिर अंतिम समय में ये दोनों कैसे बाहर हो गए?
ललन को मंजूर नहीं कैबिनेट से कम
ललन सिंह जदयू के सांसद हैं, लेकिन जदयू में ललन सिंह का कद बस इतना ही नहीं। सच तो यह है कि ललन सिंह JDU में कद के मामले में नीतीश कुमार से बस एक कदम ही नीचे कहे जा सकते हैं। यही वजह है कि दोनों नेताओं के बीच एक ऐसा दौर भी आया था, जब ललन सिंह और नीतीश कुमार के बीच सीधी टक्कर दिखाई देती थी। हालांकि वह दौर बीत चुका है।
2 साल बाद भी JDU को एक ही मंत्रालय
ललन सिंह जदयू के बड़े रणनीतिकार माने जाते हैं और हाल में लोजपा में हुई टूट की कहानी के रचनाकार भी थे, लेकिन नीतीश कुमार की कोर टीम का हिस्सा माने जाने वाले ललन सिंह इस बार केन्द्रीय मंत्रिमंडल में नहीं शामिल हो सके। वजह बताई जा रही है कि ललन सिंह को उनके कद के बराबर पद चाहिए था। ललन सिंह को कैबिनेट मंत्री का दर्जा चाहिए था, लेकिन मोदी सरकार की तरफ से जदयू को केवल 1 कैबिनेट मंत्री की कुर्सी मिली।
मोदी भी चाहते थे कैबिनेट मंत्री बनना
कुछ ऐसा ही हाल भाजपा के नेता सुशील मोदी का भी है। बिहार में लंबे समय तक उप मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके सुशील मोदी कैबिनेट मंत्री बनने की चाहत रखते थे। हालांकि उन्होंने अपनी इस चाहत को जगजाहिर नहीं किया था, लेकिन दावेदार वह भी कैबिनेट मंत्री के थे। यही वजह है कि उन्हें भी नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल से बाहर रहना पड़ा है।
UP चुनाव के कारण बिहार के नेताओं को नहीं मिली जगह
केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में हर बार चुनावी राज्यों को ही ज्यादा जगह मिलती है। बिहार विधानसभा चुनाव अभी हाल में ही खत्म हुआ है और UP में चुनाव आने वाले हैं। UP चुनाव के मद्देनजर UP को मंत्रिमंडल में ज्यादा तरजीह दी जा रही है। यही वजह है कि बिहार से कैबिनेट विस्तार में केवल जदयू सांसदों को जगह दी गई है। मतलब यह है कि बिहार से मिनिमम चेहरे शामिल किए गए।
बिहार भाजपा का आंतरिक विवाद भी बना कारण
बिहार भाजपा के अंदर का विवाद भी सुशील मोदी के केन्द्र में मंत्री बनने की राह में बड़ा रोड़ा साबित हुआ। सुशील मोदी के साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी केन्द्र में मंत्री बनने के लिए लगातार कोशिशें कर रहे थे। सुशील मोदी की दावेदारी को संजय जायसवाल ने एक तरह से चुनौती दे रखी थी।
सुशील मोदी की तुलना में संजय जायसवाल भाजपा के केन्द्रीय संगठन की लॉबी में ज्यादा मजबूत थे। संजय जायसवाल को ये मजबूत लॉबी भले ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल तक नहीं पहुंचा पाई, लेकिन इस लॉबी ने सुशील मोदी को मंत्री बनने से जरूर रोक दिया। इसी आंतरिक विवाद में इस बार बिहार भाजपा के हाथ खाली रह गए हैं।