26 जून 2025 की शाम अंतरिक्ष से आई एक खबर ने भारत को हमेशा-हमेशा के लिए बदल दिया. जब अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) पर शुभांशु शुक्ला की मुस्कुराती तस्वीर सामने आई, तो यह सिर्फ एक फोटो नहीं थी. वो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के भविष्य की एक झलक थी. यह कोई ‘अकेली उड़ान’ नहीं, बल्कि उस यात्रा का पहला पड़ाव है, जो हमें चांद, मंगल और उससे भी आगे तक ले जाएगी. ISRO के लिए शुक्ला की यह उड़ान महज एक उपलब्धि नहीं, बल्कि रणनीतिक और वैज्ञानिक छलांग है. इसे सही समय पर, सही दिशा में लिया गया कदम कहा जा सकता है.
‘गगनयान’ से पहले का युद्धाभ्यास
शुक्ला का ISS तक पहुंचना किसी भारतीय मिशन का हिस्सा नहीं था. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसकी अहमियत कम है. दरअसल, यह ‘गगनयान’ मिशन से पहले का रियल-टाइम रिहर्सल है. सामरिक, तकनीकी और इंसानी स्तर पर. शुभांशु उन्हीं चार लोगों में से एक हैं जिन्हें ISRO ने भारत के पहले मानवयुक्त मिशन के लिए चुना था.
अमेरिका के Axiom-4 मिशन में मिली यह सीट, भारत को वह व्यावहारिक अनुभव दे गई जिसकी कीमत अनमोल है. ISS पर शुक्ला का जाना, ISRO के लिए एक पूरे सिस्टम के टेस्ट जैसा है.
अमेरिका से हाथ मिलाना, ताकतवर साझेदारी की शुरुआत
ऐसा नहीं कि इस मिशन में ISRO सिर्फ दर्शक की भूमिका में है. भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने Axiom-4 की लॉन्च तैयारी में भागीदारी की, जिससे यह साफ हो गया कि NASA-ISRO की साझेदारी अब केवल कागजी समझौते नहीं रह गई. इससे भविष्य में मानव मिशनों में भारत की सक्रिय भागीदारी का रास्ता खुलता है.
इस अनुभव ने ISRO को उन बारीकियों से रूबरू कराया, जिन्हें किताबों में नहीं पढ़ा जा सकता. जैसे कि लाइव रिएक्शन, माइक्रोग्रैविटी में व्यवहार, मेडिकल मॉनिटरिंग, और क्रू सपोर्ट सिस्टम.
चांद पर बस्ती और भारत की तैयारी
आज जब अमेरिका और चीन चांद को नई दुनिया के तौर पर देख रहे हैं. वहां रिसोर्स माइनिंग और बेस कैंप्स की योजना बन रही है. तो भारत के पास भी अब यह मौका है कि वह खुद को इस रेस का हिस्सा बनाए. शुभांशु की उड़ान यह संदेश देती है कि भारत अब पीछे बैठकर देखने वाला देश नहीं रहा. 2035 तक ISRO अपना स्पेस स्टेशन बनाने की योजना पर काम कर रहा है. ISS के डीकमिशन के बाद नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भारत एक कोर पार्टनर बन सकता है.
देश में तैयार होगा एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग सेंटर
अब तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को रूस या अमेरिका में ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता था. लेकिन शुभांशु शुक्ला और उनके साथी प्रशांत नायर ने रूस के साथ-साथ NASA की भी एडवांस ट्रेनिंग ली है. अब भारत खुद एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का ट्रेनिंग सेंटर बना सकता है. यह सेंटर न सिर्फ ISRO के मिशनों के लिए, बल्कि अन्य विकासशील देशों के अंतरिक्ष अभियानों को भी ट्रेनिंग सुविधा देगा, वो भी कमर्शियली. यानी ISRO एक ग्लोबल ट्रेनिंग हब बन सकता है.
स्पेस इकोनॉमी में भारत की भूमिका
आज लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) में सैटेलाइट्स, रिसोर्स माइनिंग और टेलीकम्युनिकेशन की जबरदस्त हलचल है. निजी कंपनियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं, लेकिन अंतरिक्ष एजेंसियों की भूमिका अब ‘बियॉन्ड अर्थ’ मिशनों की तरफ बढ़ रही है. भारत के पास अपना स्वतंत्र मानव मिशन, तकनीक, स्पेस स्टेशन और प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री होंगे, तो वह इन मिशनों में पार्टनर नहीं, पायनियर बन सकेगा. शुभांशु की फ्लाइट ने हमें इसी भविष्य की झलक दी है.
अंतरिक्ष में सहयोग की राजनीति
जब अमेरिका और रूस जैसे राजनीतिक दुश्मन ISS जैसे प्रोजेक्ट में साझेदार हो सकते हैं, तो यह बताता है कि अंतरिक्ष एक ऐसा क्षेत्र है जहां शक्ति का मतलब सहयोग है. भारत अब उस मोड़ पर है जहां वह सिर्फ डाटा देने या लॉन्च सर्विसेज ऑफर करने वाला खिलाड़ी नहीं, बल्कि मिशन प्लानिंग और क्रू ऑपरेशंस का नेतृत्व कर सकता है. NASA के साथ हुई हालिया रणनीतिक साझेदारी और Axiom-4 मिशन की भागीदारी इसी बदले हुए भारत का प्रतीक है.
शुभांशु का उड़ना, हर युवा का सपना बन सकता है
शुभांशु की यह उड़ान सिर्फ विज्ञान या रणनीति की बात नहीं है. यह उस हर बच्चे का सपना है जो तारों को देखकर बड़ा हुआ है. यह ‘मिशन मंगल’ जैसी फिल्म से निकलकर असल जिंदगी में बदली कहानी है. वो अब सिर्फ एक स्पेसफ्लाइट नहीं कर रहे, बल्कि भारत को अंतरिक्ष महाशक्ति बनाने की दिशा में एक नया अध्याय लिख रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस में ISRO के पूर्व निदेशक एम. अन्नादुरई ने बिल्कुल सही लिखा, ‘यह सिर्फ शुभांशु की उड़ान नहीं, बल्कि भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन की असली शुरुआत है.’ 2027 में जब गगनयान अपना पहला क्रू लॉन्च करेगा, तो वह इसी फ्लाइट से मिली सीख का परिणाम होगा. यह यात्रा लंबी है, लेकिन शुभांशु की मुस्कान ने यह तय कर दिया है कि हम सिर्फ देखेंगे नहीं. अब हम स्पेस की कहानियां लिखेंगे.