दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बीजेपी 2024 लोकसभा चुनाव में 370 सीटें जीतने का दावा कर रही है. लेकिन पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. कई राज्यों में मौजूदा सांसदों को टिकट न मिलने के कारण नेताओं में असंतोष पैदा हो गया है.
हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री और हरियाणा बीजेपी के कद्दावर नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. इससे पहले उनके बेटे और हिसार से बीजेपी सांसद बीजेंद्र सिंह भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. उन्हें कांग्रेस से टिकट मिलने की संभावना है.
बीरेंद्र सिंह साल 2014 में बीजेपी में शामिल होने से पहले 37 साल तक कांग्रेस में थे. 10 साल बाद फिर कांग्रेस में लौटना उनके लिए सिर्फ घर वापसी नहीं है बल्कि विचारधारा वापसी भी है. मगर इस बार टिकट न मिलना भी एक मुख्य कारण माना जा रहा है.
बीजेपी में हाल ही में शामिल हुए नेताओं को लोकसभा चुनाव का टिकट मिल गया है. पुराने नेताओं का टिकट काट दिया जा रहा है. बीजेपी की ओर से अब तक जारी अपनी नौ लिस्ट में 100 से ज्यादा मौजूदा सांसदों को बाहर कर दिया गया है. खास बात यह भी है कि पार्टी के 28 फीसदी से ज्यादा लोकसभा उम्मीदवार दलबदलू हैं. इस कारण कई राज्यों में नेता शीर्ष नेतृत्व से नाराज दिख रहे हैं.
हरियाणा में जाट और बिश्नोई समुदाय बीजेपी से नाराज?
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा में सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार हरियाणा में बीजेपी का जाट और बिश्नोई वोट बैंक वोट कमजोर होता दिख रहा है. राज्य में दो कद्दावर जाट नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह और सांसद बीजेंद्र सिंह बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं. वहीं इससे पहले बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेजेपी भी गठबंधन से अलग हो चुकी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, लोकसभा सीटों पर बंटवारे को लेकर सहमति न हो पाने के कारण जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला ने अलग राह पर चलने का फैसला लिया था.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, छह निर्दलीय विधायकों ने खुद को ‘नजरअंदाज’ किए जाने और बीजेपी में शामिल होने के बाद निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला को हिसार से टिकट मिलने पर नाराजगी जताई है. उधर हरियाणा का ताकतवर बिश्नोई परिवार भी बीजेपी से खुश नजर नहीं आ रहा है. हाल ही में पूर्व सीएम भजन लाल के बेटे और भाजपा नेता कुलदीप बिश्नोई ने सोशल मीडिया पर कहा कि उनके समर्थक हिसार में टिकट बंटवारे से निराश हैं.
गुजरात में भाजपा के खिलाफ गुटबाजी!
गुजरात भी ऐसा राज्य है जहां 2019 चुनाव में बीजेपी ने सभी 26 सीटों पर कब्जा किया था. मगर इस बार पार्टी के भीतर ही असंतोष दिख रहा है. कारण है पार्टी अबतक राज्य में 14 मौजूदा सांसदों के टिकट काट चुकी है.
गुजरात की साबरकांठा सीट पर बीजेपी ने भीखाजी दुधाजी ठाकोर को टिकट दिया था लेकिन अचानक उन्होंने चुनाव न लड़ने का फैसला कर दिया. इसके बाद पार्टी ने कांग्रेस के पूर्व विधायक महेंद्र सिंह बरैया की पत्नी शोभना बरैया को टिकट दे दिया. लेकिन पार्टी के इस फैसले से भाजपा कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि कट्टर हिंदू भाजपा नेता की जगह एक कांग्रेसी नेता के परिवार के सदस्य को टिकट दे दिया गया.
वहीं वडोदरा लोकसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार रंजन भट्ट ने अपने खिलाफ विरोध के बाद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. बीजेपी के ही कुछ लोगों ने उनकी उम्मीदवारी का भारी विरोध किया. विरोध इतना ज्यादा बढ़ गया था कि शहर में गुमनाम पोस्टर लग गए थे: ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, रंजन तेरी खैर नहीं.’
उत्तर प्रदेश बीजेपी में कलह!
लोकसभा सीटों की संख्या (80) के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है. यहां पार्टी ने कम से कम 9 मौजूदा सांसदों को दोबारा मौका नहीं दिया है. यूपी की बरेली सीट पर इस बार बीजेपी ने अपने 8 बार के सांसद संतोष गंगवार का टिकट काट दिया. इस बड़े फैसले से बीजेपी के कुछ कार्यकर्ता खुश नहीं थे. वहीं बरेली के मेयर उमेश गौतम का एक ऑडियो वायरल हो गया जिसमें वह कथित तौर पर संतोष गंगवार के खिलाफ कुछ अपशब्द कहते सुने गए. इसके बाद कार्यकर्ताओं का गुस्सा खुलकर सामने आ गया.
भाजपा के ही कार्यकर्ताओं ने बरेली पहुंचे पार्टी अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का घेराव कर लिया और जमकर नारेबाजी की. उनकी मांग है कि या तो मेयर उमेश गौतम से इस्तीफा लिया जाए या संतोष गंगवार को टिकट दिया जाए. कार्यकर्ताओं ने यहां तक कह दिया है कि अगर कुछ भी एक्शन नहीं गया तो विरोधी पार्टी को वोट देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
राजस्थान में भी बीजेपी के सामने दुविधा!
2019 चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान में 25 में 24 सीटें जीती थीं. लेकिन इस बार राज्य में सांसद राहुल कस्वां ने टेंशन दे दी है, जब पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. चूरू से सांसद राहुल कस्वां ने बीजेपी से इस्तीफा देकर कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया. जाट नेता राहुल कस्वां दो बार बीजेपी सांसद रहे हैं और उनके पिता रामसिंह कस्वां तीन बार इसी पार्टी से चूरू सीट पर सांसद रह चुके हैं. ये बीजेपी के लिए बड़ा झटका है.
कस्वां परिवार चूरू जिले की राजनीति में अपना दमखम रखता है. राहुल कस्वां उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के दामाद भी हैं. उपराष्ट्रपति के भाई कुलदीप धनखड़ की बेटी से उनकी शादी हुई है. ऐसे में उनका टिकट कटना हैरानी की बात है. लेकिन कांग्रेस के लिए राज्य में खाता खोलने का ये सुनहरा मौका हो सकता है.
साउथ में बीजेपी के हालात खराब!
कर्नाटक की शिवमोग्गा लोकसभा सीट पर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. वजह हैं भाजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा. बताया जा रहा है कि ईश्वरप्पा कर्नाटक की हावेरी लोकसभा सीट से अपने बेटे केई कांतेश को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे. लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के बेटे और मौजूदा सांसद बीवाई राघवेंद्र के खिलाफ शिवमोग्गा से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया.
कहा जा रहा है कि बीजेपी नेताओं ने केएस ईश्वरप्पा से शिवमोग्गा सीट से चुनाव न लड़ने की अपील भी की थी, लेकिन वह नहीं मानें. उनका आरोप है कि बीएस येदियुरप्पा ने कांतेश को टिकट दिलवाने का वादा किया था लेकिन बाद में धोखा दिया गया. दरअसल, ईश्वरप्पा एक लिंगायत नेता हैं और उनके पास हजारों लोगों का समर्थन है. इससे बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है.
वहीं कर्नाटक में इस बार शिराहट्टी फक्किरेश्वर मठ के प्रमुख वीरशैव लिंगायत संत डिंगलेश्वर स्वामी ने भी टेंशन बढ़ा दी है. डिंगलेश्वर स्वामी ने कर्नाटक की धारवाड़ सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. यहां से बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी को उम्मीदवार बनाया है. लिंगायत संत ने बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से धारवाड़ सीट पर उम्मीदवार प्रह्लाद जोशी को बदलने के लिए कहा गया था. उन्होंने पार्टी को 31 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया था.
डिंगलेश्वर स्वामी के इस फैसले से लिंगायत वोट विभाजित हो सकता है. 2023 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत का आधार काफी हद तक लिंगायत समुदाय को माना जाता है.