बिहार में महागठबंधन की पार्टियों के बीच तीन महीने से सीट शेयरिंग पर जारी माथापच्ची को तीन मिनट में जाहिर कर दिया गया। इस बार बिहार की 26 सीटों पर राजद, 9 पर कांग्रेस, 3 पर भाकपा माले, जबकि सीपीआई और सीपीएम एक-एक सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस के पास 2019 में भी 9 सीटें थीं और अब भी, लेकिन राजद के पास 19 सीटें थीं जो अब बढ़कर 26 हो गई हैं। इसका मैसेज साफ है कि महागठबंधन में लालू यादव ही बॉस हैं। पढ़िए सीट शेयरिंग का पूरा एनालिसिस..
सबसे पहले महागठबंधन की जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस को समझिए
राजद कार्यालय के कर्पूरी सभागार में शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस तो महागठबंधन की थी, लेकिन बस फोटो सेशन तक सीमित रह गई। गठबंधन में शामिल सभी 5 दलों के प्रदेश अध्यक्ष वहां मौजूद थे, लेकिन किसी को अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया। राजद सांसद मनोज झा ने स्वागत किया, राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने सीट शेयरिंग की घोषणा की। फिर मनोज झा ने समापन की घोषणा भी कर दी। कुल तीन मिनट में प्रेस कॉन्फ्रेंस समाप्त।
मैसेज स्पष्ट है कि बिहार में महागठबंधन के बॉस लालू प्रसाद यादव ही हैं। विपक्ष की पूरी राजनीति लालू के ईर्द-गिर्द घूमेगी। फॉर्मूला क्या होगा से लेकर घोषणा कब होगी, सब कुछ वही तय करेंगे। यही कारण है कि बीजेपी के सभी बड़े दिग्गज नेता भी इस चुनाव में केवल लालू यादव या उनके परिवार को निशाना बना रहे हैं।
शेयरिंग का फॉर्मूला ही समझ से परे
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि लोकसभा में सीट शेयरिंग के लिए मुख्य रूप से दो फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है। पहला- पिछली बार पार्टियां कितनी सीटों पर चुनाव लड़ी थी या कितने सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। दूसरा- पार्टियों के पास विधायक कितने हैं। इस हिसाब से 6 विधायक पर एक लोकसभा की सीट निर्धारित की जाती है।
लेकिन महागठबंधन के सीट शेयरिंग में दोनों फॉर्मूले सेट नहीं हो पा रहे हैं। किस आधार पर राजद का नंबर 19 से 26 हो गया। इसका जवाब केवल लालू प्रसाद यादव के पास ही है। मामला केवल इतना ही नहीं है। सीट शेयरिंग की घोषणा से पहले लालू प्रसाद लगभग अपने 10 से ज्यादा उम्मीदवारों को राजद का सिंबल बांट भी चुके हैं।
लालू के सामने कांग्रेस का सरेंडर
वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं कि महागठबंधन में सीट शेयरिंग से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने बिहार में लालू प्रसाद यादव के सामने पूरी तरह सरेंडर कर दिया है। कांग्रेस को भले 9 सीटें मिली हों, लेकिन इसके बदले में उन्हें झारखंड की एक सीट गंवानी पड़ी है (घोषणा बाकी है)। इसके साथ ही इस बार उनकी 4 ऐसी सीटें बदल दी गई हैं, जहां से कांग्रेस लगातार चुनाव लड़ते रही हैं। इनमें पूर्णिया, सुपौल, मुंगेर और वाल्मीकि नगर जैसी सीटें शामिल हैं। औरंगाबाद भी कांग्रेस के खाते में नहीं आई।
पप्पू यादव को पूर्णिया में पास नहीं होने देना चाहते हैं लालू
पप्पू यादव पूर्णिया से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसके लिए वे वहां पिछले एक साल से मेहनत कर रहे हैं। इसकी चाहत में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय तक कांग्रेस में करवा चुके है। ये लालू प्रसाद यादव भी जानते हैं कि पूर्णिया में जदयू के खिलाफ पप्पू यादव एक मजबूत उम्मीदवार हो सकते हैं। इसके बाद भी लालू प्रसाद यादव ने ना केवल वहां से उनका टिकट काटा, बल्कि वो सीट ही कांग्रेस को नहीं दी। इतना ही नहीं बिना सीट शेयरिंग की घोषणा के वहां जदयू से राजद में शामिल हुई बीमा भारती को आरजेडी का सिंबल भी दे दिया।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि लालू यादव किसी भी सूरत में पप्पू यादव काे पूर्णिया में प्रभावशाली नहीं होने देना चाहेंगे। अगर पप्पू वहां से जीतते हैं तो बिहार में कांग्रेस को एक मजबूत चेहरा भी मिलेगा। लालू जानते हैं कि पप्पू यादव का मजबूत होना तेजस्वी यादव के लिए सही नहीं होगा। यही कारण है कि लालू यादव चुनाव से पहले पप्पू का पर कतर दिए हैं।
हालांकि, सीट शेयरिंग से पहले मधेपुरा सीट से उन्हें चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया था। लेकिन पप्पू यादव ने इसे ठुकरा दिया। अब लालू ने कांग्रेस से मधेपुरा के साथ सुपौल की सीट भी ले ली। यानी कि पप्पू यादव के संभावित सभी सीटों को वे अपने पास ले लिए। अब ये कांग्रेस को तय करना है कि वे किस तरह पप्पू यादव को सेट करेंगे।
अब तीन पॉइंट में लालू की रणनीति समझिए
1. लोकसभा के बहाने विधानसभा साधने की तैयारी
वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। ये वो भी जानते हैं। वो पहले से ही शून्य पर हैं। अगर एक भी सीट जीतते हैं तो वो उनके लिए बढ़त होगा। लेकिन उनका निशाना अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। वो हर हाल में तेजस्वी यादव को सीएम बनाना चाहते हैं। यही कारण है कि इस बार सीट शेयरिंग से लेकर कैंडिडेट सिलेक्शन तक सब कुछ वे अपने हिसाब से कर रहे हैं।
यही कारण है कि लालू इस बार उन सीटों पर भी कैंडिडेट उतार रहे हैं, जहां से राजद आज तक एक भी चुनाव नहीं जीती है। वे इस प्रयोग के माध्यम से अपनी ताकत समझना चाहते हैं। ताकि उन्हें विधानसभा चुनाव में सही कॉम्बिनेशन बनाने में सहूलियत हो सके। वे सहयोगियों से ज्यादा अपना नफा-नुकसान देख रहे हैं।
2. नया सामाजिक समीकरण गढ़ने की कोशिश
लालू प्रसाद यादव ने मुंगेर से अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी और औरंगाबाद में जदयू से आरजेडी में शामिल हुए अभय कुशवाहा को टिकट देकर एक बार सबको चौंकाया है। इतना ही नहीं यादव डॉमिनेटिंग नवादा लोकसभा सीट पर उन्होंने श्रवण कुशवाहा को उम्मीदवार बनाकर भी सभी को हैरान किया है। पूर्णिया में पप्पू यादव की जगह बीमा भारती को उम्मीदवार बनाना उनका मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।
ये सारी वो सीटें हैं, जहां लालू यादव परंपरा से हटकर नई जातीय समीकरण तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। यहां से अब तक सवर्ण वर्सेज सवर्ण के बीच मुकाबला होते रहा है। या सवर्ण के खिलाफ यादव को मैदान में उतारा जाता रहा है। पहली बार कुशवाहा को उतारने की कोशिश की गई है।
3. अगड़ा बनाम पिछड़ा करने की कोशिश, कुशवाहा राजनीति को बढ़ावा
3 मार्च को पटना में आयोजित जन विश्वास रैली में ही लालू प्रसाद यादव ने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी। उन्होंने साफ कर दिया था कि वो अपने पुराने फॉर्मूले पर ही लौटेंगे। तेजस्वी के A to Z की जगह वो अपने MY के समीकरण को ही मजबूती से आगे बढ़ाएंगे।
जाति आधारित गणना की रिपोर्ट आने के बाद लालू प्रसाद यादव ने इस कॉम्बिनेशन को मजबूती से पकड़ा है। एनडीए भले ही बड़े-बड़े कुशवाहा नेताओं को अपने पाले में लिया हो, लेकिन उन्होंने एक-एक कर कुशवाहा नेताओं पर दांव लगाना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि नवादा और औरंगाबाद जैसे सवर्ण बहुल इलाके में उन्होंने राजपूत और भूमिहार के मुकाबले कुशवाहा को टिकट दिया है। कुशवाहा के बाद उन्होंने अपने कोर वोट बैंक यादव को भी साधने की कोशिश की है।