रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में एक दौर ऐसा आ गया था जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के परमाणु हमले के खतर से अमेरिका दहशत में आ गया था। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 के आखिरी दिनों में अमेरिका को यह डर सताने लगा था कि रूस एक रणनीतिक परमाणु हथियार से यूक्रेन पर हमला कर सकता है। इस परमाणु हमले के खतरे को देखते हुए अमेरिका ने भी ‘पुरजोर तरीके से अपनी तैयारी’ शुरू कर दी थी। रूस अगर यूक्रेन पर परमाणु हमला करता तो यह हिरोशिमा और नागासाकी के बाद पहली बार होता जब किसी युद्ध में परमाणु बम का इस्तेमाल किया जाता। इस महासंकट के बीच अमेरिका ने पीएम मोदी समेत दुनिया के कई देशों के नेताओं से मदद मांगी ताकि हमले को रोका जा सके। रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी समेत दुनिया के अन्य नेताओं ने इस रूसी परमाणु हमले को रोकने में अहम भूमिका निभाई।
बाइडन प्रशासन के दो अधिकारियों ने सीएनएन से बातचीत में कहा कि अमेरिकी प्रशासन को खासतौर पर यह डर सता रहा था कि रूस टैक्टिकल या युद्धक्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले परमाणु बम का इस्तेमाल कर सकता है। इसको देखते हुए अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने तत्काल जवाबी प्लान तैयार करना शुरू कर दिया था। इस हालात से बाइडन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी टेंशन में आ गए थे। इसके बाद रूसी हमले को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने की तैयारी शुरू हो गई। अमेरिका का यह डर कई घटनाक्रमों और खुफिया सूचनाओं पर आधारित थे।
‘पीएम मोदी और जिनपिंग के बयानों ने रूस को रोका’
इसी के तहत बाइडन प्रशासन ने पीएम मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और दुनिया के अन्य नेताओं से बाइडन प्रशासन ने मदद की गुहार लगाई ताकि इस परमाणु संकट को टाला जा सके। बाइडन प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमने रूस को न केवल सीधा संदेश दिया बल्कि अन्य देशों से भी कहा कि वे रूस को ऐसा करने के लिए खुलकर आवाज उठाएं। अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम मोदी के सार्वजनिक बयानों ने इस महासंकट को खत्म करने में मदद की। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि चीन और भारत की अपील के बाद रूस की सोच में बदलाव आया।
बता दें कि पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के सामने ही खुलकर कहा था कि यह दौर युद्ध का नहीं है। पीएम मोदी के इस बयान की अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने जमकर सराहना की थी। दरअसल, यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से बचाने में भारत और चीन ने अहम भूमिका निभाई है। भारत ने रूस से रेकॉर्ड तेल खरीदा और दोनों के बीच व्यापार अब रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। यही हाल चीन का भी जो रूस के लिए सबसे बड़ा मददगार बनकर उभरा है। विश्लेषकों का मानना है कि यही वजह है कि रूसी राष्ट्रपति भारतीय प्रधानंत्री मोदी और जिनपिंग की अपील को अनसुना नहीं कर सके।