लम्बी धार्मिक और कानूनी लड़़ाई खत्म। अब चंद घंटों बाद ही जन जन के आराध्य मर्यादा पुरुûषोत्तम भगवान श्रीराम (रामलला) अपने नये विग्रह में प्रगट होंगे। इसे लेकर रामनगरी में रामपथ से लेकर भक्तिपथ और धर्मपथ तक जहां तक नजर उठती है तो ‘त्रेता युग’ सा नजारा दिखता है। अयोध्या ‘केसरिया सिटी’ (सैफरन सिटी) में तब्दील हो चुकी है। कुछ महीने पहले जो अयोध्या गया होगा वह रामनगरी के बदले रूप को देख चौंक अवश्य जाएगा। महीनों पहले वाले रास्ते अब बदल चुके हैं। चौड़़ी सड़़कें एक सीध में दुकान–मकान वह भी गुलाबी नगरी जयपुर की तर्ज पर सैफरन (केसरिया) कलर में। वाकई आज अयोध्या का वर्णन शब्दों में करना कठिन लग रहा है।
लखनऊ से अयोध्या की सीमा में पहंचने पर आप शहर में रामपथ से गुजरेंगे तो थोड़़ा बांये जाने पर वही रामपथ आपको भक्तिपथ पर आराध्य श्रीराम के विग्रह पर जोड़़ेगा। अब रामलला के दर्शन घुमावदार गलियों से नहीं बल्कि बिड़़ला मंदिर के ठीक सामने भव्य द्वार से होगा‚ जो २२ जनवरी को प्राण–प्रतिष्ठा के बाद आमजन के लिए खुल जाएगा। इसके साथ ही खत्म होगा देश–दुनिया के करोड़़ों–करोड़़ लोगों का इंतजार। अयोध्या वाकई अब दिव्य‚ भव्य और मनोहर लग रही है। ग्रामीण परिवेश सरीखा दिखने वाली हनुमानगढ़øी‚ कनक भवन‚ दशरथ महल और अन्य प्राचीन मंदिर के क्षेत्र अब भक्तिपथ में तब्दील हो भव्य स्वरूप ले चुके हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यह क्षेत्र ‘फिल्मों’ में दिखने वाले दृश्यों सा बन चुका है। जहां एक रूप–स्वरूप में सजी दुकानें‚ कई किलोमीटर लम्बे फ्लाईओवर‚ अतिथियों के रहने के लिए भव्य होटल व गेस्ट हाउस मूर्त रूप ले चुके हैं।
मुझे साल १९९० और १९९२ में राममंदिर आंदोलन के समय अयोध्या का मणिराम छावनी‚ रामजानकी महल ट्रस्ट‚ महंत परमहंस दास के आश्रमों और कारसेवक पुरम आदि इलाकों में उत्तर से लेकर दक्षिण तक से लाखों लोगों का हुजूम अपने आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि को ‘मुक्त’ कराने के लिए जुटा था। कुछ उत्साही युवक विवादित गुम्बद पर चढ़ भी गये। तब जो नहीं सोचा गया था‚ वह हो गया। दो साल बीते कि एक बार फिर हिन्दुत्व का ज्वार चढ़ा।
इस बार वह हो गया जिसका संकल्प लेकर जनसमूह देशभर से जुटा और विवादित ढांचा ६ दिसम्बर १९९२ को जमींदोज हो गया। इसकी ही परिणित है कि आज अयोध्या के भव्य विग्रह में रामलला विराज रहे हैं। आज उसी अयोध्या में उत्तर से दक्षिण तक लोग आस्था से नंगे पैर‚ दौड़़ लगाते‚ स्केटिंग करते‚ दण्ड़वत करते‚ गाड़़ी‚ घोड़े़–रथ पर सवार हो आराध्या प्रभु श्रीराम के दर्शन को पहंुच रहे हैं। मगर इस बार इन भक्तों और आस्थावान लोगों को ना तो पुलिस का खौफ है और ना ही सड़़कों से इतर नदी–नालों के रास्ते अयोध्या पहंुचने खतरा। अयोध्या को जोड़़ने वाले रास्तों पर आज पुलिस इन आस्थावानों को प्यार‚ स्नेह और सम्मान के साथ उनके लIय पर अग्रसर करने में सहभागी बन रही है। कई पुलिस बूथ पर तो भक्तों के लिए फल‚ चाय और नाश्ते के साथ विश्राम की व्यवस्था की गई है। यह सबकुछ संभव हो सका है उसी कानूनी जीत और आस्थावान सरकार से जिस कारण भव्य राममंदिर मूर्त रूप ले रहा है। यहां कहना भी समीचीन लग रहा है कि ४०० साल पहले तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा‚ भये प्रगट कृपाला दीनदयाला.मगर वास्तव में आराध्य ‘दीनदयाला’ रामलला तो कल सोमवार २२ जनवरी को ही हम सभी के जीवन में भव्य‚ दिव्य और मनोहारी विग्रह में प्रगट होंगे।
नव्य‚ भव्य और दिव्य क्षण
सौ ९६ वर्ष के कालखंड में मुगल शासन‚ बर्तानिया हुकूमत और संप्रभु भारत में समय–समय पर हुए अनेक रक्तरंजित संघर्ष‚ रामभक्तों के अगणित बलिदान‚ अदालती कार्यवाही से गुजरने के बाद अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर बने मंदिर की पुनर्प्रतिष्ठा को लेकर पूरा देश उल्लसित है। सबको २२ जनवरी के उस अविस्मरणीय क्षण की प्रतीक्षा है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशिष्ट उपस्थिति में श्रीरामलला नव्य‚ भव्य‚ दिव्य मन्दिर में विराजित होंगे। इन सबके बीच श्रीराम मन्दिर आंदोलन को निर्णायक दिशा देने वाली गोरक्षपीठ के वर्तमान अगुआ और संप्रति प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भावनाएं स्वतःस्फूर्त हैं। यह क्षण उनके गुरु और दादागुरु को सच्ची श्रद्धांजलि देने का है। संन्यासी जीवन चुनने के अपने निर्णय पर संतोष प्रकट करने का है।
वर्ष १५२८ में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बने प्राचीन मन्दिर का वजूद मिटाने की कोशिश हुई थी। जन–जन के आराध्य श्रीराम के अपने इस मन्दिर के लिए संघर्ष की शुरु आत तो तभी से हो गई थी पर इस संघर्ष को पहली बार रणनीतिक रूप देने का श्रेय गोरक्षपीठ को जाता है। इस रणनीति के शिल्पकार थे ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ। उनकी मौजूदगी में जन्मभूमि के प्राचीन मन्दिर के गर्भगृह में १९४९ में श्रीरामलला के विग्रह का प्राकट्य होने की दैवीय घटना से मन्दिर आंदोलन को जो दिशा मिली‚ उसे नब्बे के दशक में उनके शिष्य ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ ने निर्णायक मोड़ तक पहुंचाया। गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन पीठाधीश्वरद्वय महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ के श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति और मन्दिर निर्माण के लिए किए गए परिणामजन्य संघर्ष को अपनी देखरेख में मूर्त रूप देते हुए वर्तमान पीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बेहद प्रफुल्लित हैं। इसके दो अहम कारण हैं। पहला‚ राम मन्दिर आंदोलन ही उनके संन्यास मार्ग की प्रेरणा रहा। दूसरा‚ अपने गुरुû और दादागुरु के सपनों को साकार करने में योगदान देना। दैवीय योग है कि श्रीराम मन्दिर को लेकर शीर्ष न्यायालय का निर्णय आने के वक्त वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इसके बाद मन्दिर के शिलान्यास से लेकर २२ जनवरी को श्रीराम के प्राण–प्रतिष्ठा समारोह का खाका भी उन्हीं के नेतृत्व में खींचा गया है। अपने गुरुûदेव महंत अवैद्यनाथ के सान्निध्य में आने के बाद से ही और मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी अयोध्या को श्रीरामयुगीन वैभव देने के लिए प्राणपण से कार्य कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ का गोरखनाथ मन्दिर और इसके तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ से जुड़ाव नब्बे के दशक में हुआ था जब श्रीराम मन्दिर का आंदोलन उफान पर था। नाथ पंथ की दीक्षा लेने के दौरान ही उन्होंने अपने गुरु देव और अन्य संतों के सान्निध्य में आंदोलन की ऐतिहासिक और तत्कालीन पृष्ठभूमि को करीब से देखा–समझा।
१५ फरवरी‚ १९९४ को महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया तो इसके बाद योगी मन्दिर आंदोलन से जुड़ी हर गतिविधि में अपने गुरु के साथ सम्मिलित होने लगे। १९९८ के लोक सभा चुनाव से पूर्व महंत अवैद्यनाथ ने राजनीति की कमान भी उन्हें सौंप दी। १९९८ में संसदीय चुनाव में सबसे कम उम्र का सांसद बनने के साथ ही वह गुरु की तरह लोक सभा में मन्दिर आंदोलन की आवाज बन गए। ६ दिसम्बर‚ १९९२ को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद मामला अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा में भले ही था‚ लेकिन योगी इस बात को मुखरता से रखते रहे कि राम मन्दिर का निर्माण उनके लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं‚ बल्कि जीवन का मिशन है। गोरक्षपीठ का १९९४ में उत्तराधिकारी घोषित होने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ श्रीराम मन्दिर के लिए जनजागरण के अभियान में जुट गए। १९९८ में सांसद बनने के बाद इसमें और तेजी आई। उन्होंने २००३ और २००६ में गोरखपुर में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विराट हिन्दू संगम का आयोजन किया‚ जिसमें साधु–संतों से लेकर आम जन की ऐसी भीड़ जुटी कि गोरखनाथ मन्दिर से लेकर कार्यक्रम स्थल महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज तक तिल रखने की जगह नहीं थी।
सितम्बर‚ २०१४ में महंत अवैद्यनाथ के महासमाधिस्थ होने के बाद यह गुरु तर दायित्व पूरी तरह योगी जी के कंधों पर आ गया। इसे सुखद दैव संयोग कहें या ईश्वरीय प्रसाद‚ लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद ९ नवम्बर‚ २०१९ को जब सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया और विवादित जमीन रामलला को सौंपने की बात कही तब गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनसेवा में रत थे। जब २०१७ में उन्हें प्रदेश की सत्ता संभालने का दायित्व मिला तो उन्होंने अयोध्या को श्रीरामयुगीन वैभव दिलाने के प्रयास शुरू कर दिए। बतौर मुख्यमंत्री पहले ही साल से अयोध्या में भव्य दीपोत्सव का जो सिलसिला शुरू किया वह साल दर साल विश्व कीÌतमान रच रहा है। श्रीराम मन्दिर निर्माण के संकल्प के कारण ही योगी ने अयोध्या को अपना दूसरा घर बना लिया। अब तक मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने गोरखपुर के बाद सर्वाधिक दौरे अयोध्या के ही किए हैं। अयोध्या के लिए हजारों करोड़ रु पये के विकास कार्यों की सौगात देने के साथ ही उन्होंने जिला‚ कमिश्नरी का नामकरण फैजाबाद की जगह अयोध्या किया।
इसके पहले श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या का नाम एक कस्बे के भूगोल में सिमट कर रहा गया था। योगी के मुख्यमंत्रित्व काल में अयोध्या दुनिया की सबसे खूबसूरत धाÌमक–पर्यटन नगरी बन रही है‚ यह कहना अतिश्योक्ति नहीं लगता। कारण‚ अयोध्या रोड कनेक्टिविटी में नायाब हुई है तो इसे पांच सितारा रेलवे स्टेशन और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की भी सौगात मिल चुकी है। ५ अगस्त‚ २०२० को श्रीराम मन्दिर निर्माण के लिए भूमि पूजन प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संयोजन में आयोजित भव्य समारोह में किया था तो अब २२ जनवरी को मन्दिर में श्रीरामलला की दिव्यतम प्राण–प्रतिष्ठा भी सीएम योगी की देखरेख में पीएम मोदी करने जा रहे हैं। हालांकि इसके पहले २५ मार्च‚ २०२० अपनी गोद में लेकर श्रीरामलला को टेंट से अस्थायी मंदिर में ले जाने वाले और चांदी के सिंहासन पर विराजमान कराने वाले भी योगी आदित्यनाथ ही हैं।