पश्चिम बंगाल में फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर लगी पाबंदी को सर्वोच्च अदालत ने हटा दिया है। साथ ही बंगाल सरकार से दर्शकों की सुरक्षा तय करने का भी निर्देश दिया है। अदालत ने कहा आप जनता की असहिष्णुता को अहमियत देकर अगर ऐसे करेंगे तो हर फिल्म का यही हाल होगा। राज्य का कर्तव्य है‚ कानून–व्यवस्था कायम रखे। फिल्म को सेंसर बोर्ड़ से प्रमाण पत्र देने के खिलाफ दी गई याचिकाओं पर अदालत सुनवाई से पहले फिल्म देखेगी। सबसे बड़़ी अदालत ने बत्तीस हजार महिलाओं के धर्म परिवर्तन करने संबंधी दृश्य पर डि़स्क्लेमर लगाने को भी कहा। कोलकाता व मद्रास उच्च न्यायालय ने पहले ही फिल्म पर लगी पाबंदी पर दखल देने से इनकार कर दिया था। तमिलनाडु़ सरकार ने फिल्म स्क्रीनिंग को रोकने संबंधी कोई लिखित आदेश ना देने की बात कह पल्ला झाड़़ लिया। हालांकि राज्य में कई मुस्लिम संगठनों ने विभिन्न जगहों पर फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन भी किए। डे़ढ सौ करोड़़ से ज्यादा की कमाई करने वाली यह फिल्म अपने ट्रेलर के रिलीज के वक्त से ही विवादों में है। सोशल मीडि़या पर इसके खिलाफ ट्रोलिंग चालू होते ही निर्माता–निर्देशक द्वारा स्पष्ट कर दिया गया था कि यह सिर्फ सच्चाई से प्रेरित स्टोरी है। सच्ची घटना नहीं है। फिर भी विरोधियों ने आरोप लगाया कि यह एजेंड़ा है‚ धर्म विशेष को बदनाम करने का। इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता। बीते कुछ सालों से खास तरह का एजेंड़ा थोपने वाली शक्तियों की बाढ सी आ गई है। इसलिए ये तिल का ताड़़ बनाने में सकुचाती नहीं। हकीकत तो यह भी है कि बहुत सी बुनियादी समस्याओं पर अपने यहां कभी खुलकर बात ही नहीं हुई। आईएस भोले–भाले युवाओं को बरगला कर‚ लालच देकर या जबरन आतंकी बनाती है। यह स्वीकारने में हिचक नहीं होनी चाहिए कि प्रचार और चर्चा पाने के लोभ में फिल्मकार विषय को बढा–चढा कर परोसते हैं। फिल्में मनोरंजन का जरिया तो हैं ही‚ उनसे पैसा कमाना मुख्य उद्देश्य है। फिल्मकारों को अपनी नैतिक/सामाजिक जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। राज्य सरकारों‚ सेंसर बोर्ड़ को भी जनता की भावनाओं को आहत होने से बचाना चाहिए। हर फिल्म के लिए अदालत के दरवाजे खटकाने की आदत भली नहीं कही जा सकती।
क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ फेम विकास सेठी की मौत, 48 की उम्र में हार्ट अटैक बना काल
टीवी इंडस्ट्री से हैरान करने वाली दुखद खबर सामने आई है। फेमस एक्टर विकास सेठी का निधन हो गा है।...