फ्रीडम इंडेक्स में भारत एकबार फिर पिछड़ गया। विश्व की मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक २०२३ में भारत विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में १६१ वें स्थान पर आ गया। यह कोई खुशफहमी पालने वाली बात नहीं है। बल्कि कुल १८० देशों में से भारत की रैंकिंग में यह गिरावट का संकेत देती है‚ जो चिंताजनक है। हालांकि इसे लेकर देश के विचारकों में कई प्रकार के मतांतर दिखाई दे रहे हैं‚ लेकिन यह मसला हमारी कमियों को भी उजागर करता है‚ इसमें दो राय नहीं है।
दरअसल‚ एक लोकतांत्रिक देश में जो होना चाहिए और सरकार जिस तरह का दावा करती है उससे हम लोग बहुत पीछे जा रहे हैं। पाकिस्तान‚ श्रीलंका और अफगानिस्तान भी हमसे आगे हैं। यह बहुत शर्म की बात है। हम उन छोटे और पड़ोसी देशों से भी पीछे हैं‚ जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वहां अराजकता की स्थिति है‚ खून–खराबे होते हैं और कई प्रकार की परेशानियां हैं। कुछेक वर्ष पहले हम श्रीलंका का हश्र देख चुके हैं। पाकिस्तान किस हाल में है‚ यह किसी से छुपा नहीं है। इसके बावजूद रैंकिंग में हम अगर पीछे चले गए हैं तो कहीं–न–कहीं हममें गड़बड़ी तो है‚ और उस गड़बड़ी को कैसे दुरु स्त किया जाए।
यह एक गंभीर चुनौती है। हम सबको मिलकर इस बारे में सोचना होगा। देश के नीति–निर्धारकों को भी गंभीर होना पड़ेगा कि इसे कैसे सुधारा जा सकता है। ऐसे में सरकार की भूमिका व जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। मतलब साफ है कि वैश्विक तौर पर भारत के लिए यह अच्छे लक्षण नहीं है। हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि फ्रीडम इंडेक्स की रिपोर्ट से प्रतीत होता है कि पश्चिम का भारत को बदनाम करने का यह एजेंडा भर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की तरक्की को पचा नहीं पा रहे हैं इसीलिए वे हर इंडेक्स में भारत को नीचा दिखाने की साजिश रचते हैं। मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रक्षा से लेकर कई क्षेत्रों में भारत स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है। पश्चिम के देशों से जो सामान आयात किया जाता था उस पर अब लगाम लग गई है। यही वजह है कि यूरोपीय देश भारत और पीएम मोदी की छवि को नाकारात्मक बनाने में जुटे हुए हैं। तर्क यह भी है कि हाल ही में अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश में लोकतंत्र का समर्थन करने में पत्रकारों की भूमिका की सराहना की थी और कहा था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है क्योंकि भारत के पास एक स्वतंत्र प्रेस है‚ जो असल में काम करती है। ऐसे में इस फ्रीडम इंडेक्स पर कैसे विश्वास किया जा सकता हैॽ कई लोगों ने रिपोर्ट हासिल किए जाने के तरीके पर भी सवाल उठा दिया। कई देशों और टिप्पणीकारों ने डब्लूपीएफआई के मानदंड‚ कार्यप्रणाली और आरएसएफ के कथित पूर्वाग्रहों‚ रैंकिंग में निष्पक्षता की कमी और पारदर्शिता की कमी के बारे में भी चिंता जताई है। गौरतलब है कि विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बीते ३ मई को वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ यानी आरएसएफ ने अपनी यह वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है। फ़्रांस की पेरिस स्थित यह एनजीओ दुनियाभर के देशों में प्रेस की स्वतंत्रता पर हर वर्ष रिपोर्ट प्रकाशित करती है। रिपोर्ट में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्थिति पर चिंता जताई जा रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य स्थिति जो सूचना के मुक्त प्रवाह को खतरनाक रूप से प्रतिबंधित करती है‚ वह नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने वाले कुलीन वर्गों की ओर से मीडिया संस्थानों का अधिग्रहण है। ये कोई नई बात नहीं‚ डब्लूपीएफआई रिपोर्ट २००२ में ८० के रैंक से‚ भारत की रैंक २०१० में १२२ और २०१२ में १३१ तक गिर गई। हाल ही में जारी २०२० डब्लूपीएफआई ने भारत को २०१९ से २ स्थान नीचे १४२ पर स्थान दिया है‚ यह बहुत चर्चा का विषय रहा है और मीडियाकर्मियों‚ राजनीतिक दलों‚ सरकारों‚ नौकरशाहों और सोशल मीडिया पर भी बहस और इस प्रकार डब्लूपीएफआई की कार्यप्रणाली पर करीब से नजर डालने की आवश्यकता है। एक तरफ तो भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है और दूसरी तरफ फ्रीडम इंडेक्स में पिछड़ता जा रहा है। हाल के दौर में‚ खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन काल में यह दावा किया जा रहा है कि हम बहुत चीजों में आगे हो गए हैं। इस रिपोर्ट के बाद यह सब थोड़ा तर्कहीन लगता है। उधर आंकड़े बताते हैं कि अभी हम उस पायदान पर नहीं पहुंचे हैं‚ जिसमें खुद को इतना सबल और सक्षम दिखा सके।
अभी भी लोकतंत्र के लिए असमानता की खाई है। किसी देश से बराबरी करना अलग बात होती है और उसे पूरा करना अलग। नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित कई देशों में प्रेस स्वतंत्रता के सूचकांक खराब हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल भारत को १८० देशों में १५० वां स्थान दिया गया जो इस साल ११ पायदान गिरकर १६१ वें स्थान पर आ गया। इससे साफ जाहिर होता है कि पर इस हाल में लोकतांत्रिक मजबूती और विरासत को सहेजने की बहुत जरूरत है।