कहते हैं ‘हकीकत को तलाश करना पड़ता है‚ अफवाहें तो घर बैठे आप तक पहुंच जाती हैं।’ सोशल मीडिया पर पिछले दिनों बिहार एवं तमिलनाडु राज्य के बीच नफरत फैलाने वाला एक वीडियो इस कदर वायरल हुआ कि न केवल राज्यों के बीच वैमनस्यता बढ़ गई‚ बल्कि तमिलनाडु़ में काम कर रहे बिहार के कई मजदूरों के घरों में कोहराम मच गया। अच्छी बात यह रही कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने तत्परता और समझदारी के साथ मसले को संजीदगी के साथ संभाला। दोनों सूबों के मुख्यमंत्रियों की त्वरित कार्रवाई सेे हिंसा और विभेद की मंशा वालों को करारा जवाब मिला है।
गत १ मार्च को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के जन्मदिन पर देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे नेताओं ने उन्हें बधाइयां दी थीं। अगले दिन तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ मारपीट का वीडियो जारी हुआ और बिहार में हंगामा मच गया। सदन से सड़क तक चिल्ल–पों मच गई। हालात की गंभीरता को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने समय रहते भांप लिया। अफवाह कितनी क्रूर और कुरूप होती है‚ इसका इल्म नीतीश कुमार को भी था और एमके स्टालिन को भी। यही वजह थी कि दोनों मुख्यमंत्रियों ने अफवाह फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई की छूट अपने अधिकारियों को दी। उन्हें मालूम था कि अगर तुरंत ऐसा न किया गया तो साजिश रचने वाले सफल हो जाएंगे। नीतीश कुमार की अपील के बाद स्टालिन ने नीतीश कुमार को आश्वस्त किया कि ‘प्रवासी मजदूरों पर कथित हमले की अफवाह फैलाने वाले लोग भारत की अखंडता के खिलाफ काम कर रहे हैं। बिहार के सभी कामगार हमारे कामगार हैं‚ जो तमिलनाडु के विकास में मदद करते हैं। सोशल मीडिया पर झूठी तस्वीरें शेयर कर तनाव फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।’ वहां के डीजीपी सी. शैलेंद्र बाबू ने भी दावा किया कि तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ कोई हिंसा नहीं हुई है।
दरअसल‚ अफवाह फैलाने का काम सिर्फ विश्व के बाकी मुल्कों में भी होता रहता है। २००० में अमेरिका में अचानक ऐसे ई–मेल्स की बाढ़ आ गई जिनमें कहा जा रहा था कि खास तरह का केला खाने से आपकी चमड़ी फट जाएगी और आप मर जाएंगे। लोगों ने एक दूसरे को यह मेल भेजकर‚ अपने दोस्तों–रिश्तेदारों को आगाह करने को कहा। यह एकदम बकवास बात थी‚ जिसे सिरे से खारिज कर दिया जाना चाहिए था‚ मगर लोगों ने इस पर तुरंत यकीन कर लिया। इस मामले पर ई–मेल्स की ऐसी बाढ़ आ गई कि अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग ने बाकायदा सफाई जारी की कि ऐसा कुछ नहीं है। मगर लोगों ने यकीन नहीं किया। इमरजेंसी नंबरों पर कॉल आने लगी कि उन्होंने ऐसा केला खा लिया है‚ और अब उन्हें मदद की दरकार है। अफवाह ने इस कदर डर का माहौल बना दिया कि अमेरिकी फूड एंड ड्रग विभाग को बनाना हेल्पलाइन शुरू करनी पड़ी। हालात बमुश्किल काबू में आए। कुछ ऐसा ही झूठ का माहौल भारत में भी बनाया गया। कभी गणेश जी की मूर्ति के दूध पीने की तो कभी नमक खत्म होने की तो कभी किसी बीमारी के फैलने की। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि दिमाग के इस्तेमाल में हम अक्सर कंजूसी बरतते हैं। सोच–विचारकर किसी भी बात पर भरोसा करने की बजाय हम बहुत जल्द अटकलों पर यकीन कर लेते हैं। इसमें दिमाग पर जोर नहीं डालना पड़ता। इसके अलावा‚ हम कई बार गड़बड़ी सामने होते हुए भी उसको नोटिस नहीं कर पाते। तमिलनाडु़ में जिस तरीके से बारह बिहारी मजदूरों की हत्या और बिहारी मजदूरों के साथ बर्बरतापूर्व पिटाई के दृश्य प्रसारित किए गए वे इसी मानसिकता के साथ फैलाए गए कि लोग आसानी से इस पर यकीन कर लेंगे।
अफवाह को रोकने का सबसे अच्छा तरीका तथ्यों को जारी करना है। अस्पष्टता कम हो जाती है। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसी उद्देश्य और फार्मूला के तहत सख्ती के साथ काम किया। अफवाह से निपटने का का एक ही तरीका है‚ और वह है सख्ती और समझदारी। स्टालिन और नीतीश से बाकी राज्यों और देश के नीति निर्माताओं को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। निश्चित तौर पर देश की एकता एवं अखंड़ता पर जो खतरा रचा गया था‚ वह टल गया है। सोशल मीडि़या की ताकत है तो उसमें कमियां भी कम नहीं हैं। बार–बार सोशल मीडि़या को गहराई से जानने–समझने वाले विशेषज्ञों की तरफ से कहा गया है कि सोशल मीडि़या खासकर फेसबुक और युटीयूब में भ्रामक सामग्री ड़ालने वालों की पहचान और उसके खिलाफ त्वरित कार्रवाई के लिए कानून बने। कानून हैं भी तो उनका ईमानदारी से पालन नहीं होता है। खैर‚ अफवाहबाजों के साजिश और शरारत से भरे कंटेंट कंपनियों के पास हैं‚ और उनके आधार पर अब कोई भी अफवाहबाज बच नहीं पाएगा। सरकार को निश्चित तौर पर कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचाना चाहिए।