पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बर्बादी के कगार पर है। महंगाई दर 40% तक पहुंचने वाली है। पाकिस्तानी रुपये की वैल्यू पिछले साल 33 प्रतिशत तक गिर गई। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो रहा है। उसकी S&P रेटिंग CCC+ है, इससे नीचे गिरना संभव नहीं। IMF का साथ नहीं मिला तो पाकिस्तान डिफॉल्ट कर जाएगा। पेट्रोल पंप खाली पड़े हैं, बिजली कटौती खूब हो रही है और खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। हर पाकिस्तानी रोजमर्रा की जिंदगी में हलकान है। वहीं, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है। यूनिकॉर्न खड़े हो रहे हैं, एयरलाइंस रेकॉर्ड संख्या में विमानों के बल्क ऑर्डर दे रही हैं। अब भारत और पाकिस्तान की तुलना बचकानी है। पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र बनने के कगार पर खड़ा है। भारत दुनिया का नया ग्रोथ इंजन है।
आप बुलेट ट्रेन की तुलना ऑटो से नहीं कर सकते। हां, हम इस हालात का इस्तेमाल भारत के फायदे की खातिर कर सकते हैं, खासतौर से तब जब इससे पाकिस्तानी लोगों की मदद भी हो जाए। भले ही इस वक्त यह दूर की कौड़ी लगे, लेकिन ‘एकीकरण’ के सिद्धांत को फ्रंट पर लाने का यही सही समय है।
भारत और पाकिस्तान का एकीकरण क्यों?
कई लोग हंसेंगे… आमूलचूल बदलाव के प्रस्ताव पर ऐसा होता ही है। एकीकरण को मूलधारा के विचार के रूप में नहीं देखा जाता। हालांकि, हम असल एकीकरण की बात नहीं कर रहे। हम एक आधिकारिक रुख अपनाने की बात कर रहे हैं। भारत अपनी तरफ से दुनिया को बताए कि पाकिस्तान को कैसे देखा जाए। यह कुछ वैसा ही है जैसे हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) कहते हैं। हम दशकों से उस इलाके को यही बताते आए हैं लेकिन सही मायनों में वापस लेने की कोशिश कभी नहीं की।
शांति के लिए हम यथास्थिति के साथ जीते हैं। फिर भी, भारत से कोई पूछे तो यही कहेगा कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर है। और क्या पूरा पाकिस्तान ही कभी भारत का हिस्सा नहीं था? उस वक्त के कुछ राजनेताओं के बीच जल्दबाजी में हुए समझौते से क्या इस भूमि और उसके लोगों की ऐतिहासिक जड़ें छिन जाती हैं?
जिस मकसद से बना पाकिस्तान, उसमें फेल रहा
जरा इस बारे में सोचिए। पाकिस्तान बनाने की क्या वजह थी? मुस्लिमों के लिए एक सुरक्षित जगह? क्या वह सुरक्षित रही है? किसी पीएम ने पांच साल का कार्यकाल तक पूरा नहीं किया। आतंकवाद उनकी जमीन पर खूब फलता-फूलता है। मिलिट्री तानाशाही ने लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी हैं, भारत से लड़ाइयां लड़ी और देश को दिवालिया बना दिया। पाकिस्तान की साख रसातल में है और उसकी गिनती दुनिया की सबसे असुरक्षित जगहों में होती है।
इसके उलट यह धारणा कि भारत में मुस्लिम असुरक्षित रहेंगे, गलत साबित हुई। आजादी के बाद से मुसलमानों की आबादी कई गुना बढ़ी है। कुछ मसले जरूर रहे हैं इसके बावजूद मुसलमान भारत की विकास यात्रा में साझेदार हैं। तो क्या पाकिस्तान के निर्माण के पीछे रही धारण गलत साबित नहीं हुई? और क्या मातृभूमि की ओर वापस लौटना सही नहीं होगा, पाकिस्तानियों के लिए भी?
भविष्य की कल्पना कीजिए
आज की तारीख में पाकिस्तानियों को अपने नेताओं और मिलिट्री से कोई उम्मीद नहीं रह गई है। ऐसे में भारत से करीबी को लेकर वहां की राय बदल सकती है। भारत अपनी बात रख सकता है कि हम पाकिस्तान संग रिश्ते मजबूत करने और उसे मातृभूमि में वापस लाने को हमेशा तैयार हैं। एकीकरण शायद कभी न हो, और अगर होगा तो भी इसमें काफी वक्त लगेगा लेकिन भारत के इस रुख से मदद मिलेगी। हम वहां की प्रो-इंडिया पॉलिटिकल पार्टीज को सपोर्ट कर सकते हैं। वहां की मनोरंजन इंडस्ट्री हमारे प्रभाव में पहले से है।
अगर अभी ये हालात हैं तो सोचिए दो दशक बाद भारत कहां खड़ा होगा और पाकिस्तान कहां। अगर एकीकरण का यह विचार कभी हकीकत बनता है तो भारत से धर्म की राजनीति का खात्मा हो सकता है। जाति आधारित मुद्दे कम हुए हैं जिससे हिंदू वोट एकजुट हुआ है। इसी तरह, एक दिन शायद भारत से धार्मिक मसले भी कम होने लगेंगे और ‘देसी नैशनलिस्ट, सब-कॉन्टिनेंटल, ब्राउन प्राइड’ का विचार उठ सकता है।