भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति पर बहुत गर्व करते हैं। बात–बात पर बताने की कोशिश करते हैं कि जितनी महान हमारी संस्कृति है‚ उतनी महान दुनिया में कोई संस्कृति नहीं है। निःसंदेह भारत का जो दार्शनिक पक्ष है‚ जो वैदिक ज्ञान है‚ वो हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है‚ लेकिन ऐतिहासिक प्रमाणों की दृष्टि से देखा जाए तो हम पाएंगे कि भारत से कहीं ज्यादा उन्नत संस्कृति दुनिया के कुछ दूसरे देशों में पाई जाती है।
पिछले तीन दशकों में तमाम देशों में घूमने का मौका मिला है। आजकल मैं मिस्र में हूं। इससे पहले यूनान‚ इटली और अब मिस्र की प्राचीन धरोहरों को देखकर बहुत अचंभा हुआ। जब हम जंगलों और गुफाओं में रह रहे थे या हमारा जीवन प्रकृति पर आधारित था‚ उस वक्त इन देशों की सभ्यता हमसे बहुत ज्यादा विकसित थी। हम सबने बचपन में मिस्र के पिरामिडों के बारे में पढ़ा है। पहाड़ के गर्भ में छिपी तूतनखामन की मजार के बारे में सबने पढ़ा था। यहां के देवी–देवता और मंदिरों के बारे में भी पढ़ा था पर पढ़ना एक बात होती है‚ और मौके पर जा कर उस जगह को समझना और गहराई से देखना दूसरी बात होती है। अभी तक मिस्र में मैंने जो देखा है‚ वो आंखें खोल देने वाला है। क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आज से ५‚५०० साल पहले कुतुब मीनार से भी ऊँची इमारतें‚ वो भी पत्थर पर बारीक नक्काशी करके‚ मिस्र के रेगिस्तान में बनाई गइ। उनमें देवी–देवताओं की विशाल मूर्तियां स्थापित की गइ।
हमारे यहां मंदिरों में भगवान की मूर्ति का आकार अधिक से अधिक ४ से १० फीट तक ऊँचा रहता है लेकिन इनके मंदिरों में मूर्ति ३०–४० फीट से भी ऊँची हैं। वो भी एक ही पत्थर से बनाई गइ। दीवारों पर तमाम तरह के ज्ञान–विज्ञान की जानकारी उकेरी गई हैं। फिर वो चाहे आयुर्वेद की बात हो‚ महिला का प्रसव कैसे करवाया जाए‚ शल्य चिकित्सा कैसे हो‚ भोग के लिए तमाम व्यंजन कैसे बनाए जाएं‚ फूलों से इत्र कैसे बनें‚ खेती कैसे की जाए‚ शिकार कैसे खेला जाए। हर चीज की जानकारी यहां दीवारों पर अंकित हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां इन्हें सीख सकें। इतना वैभवशाली इतिहास है मिस्र का कि इसे देख दुनिया आज भी अचंभित होती है। फ़्रांस‚ स्वीडन‚ अमेरिका और इंग्लैंड़ के पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों ने यहां आकर पहाड़ों में खुदाई करके ऐसी तमाम बेशुमार चीजों को इकट्ठा किया है। सोने के बने कलात्मक फर्नीचर‚ सुंदर बर्तन‚ बढ़िया कपड़े‚ पेंटिंग्स और एक से एक नक्काशीदार भवन। उस वक्त की तुलना भारत से की जाए तो भारत में हमारे पास अभी तक जो प्राप्त हुआ है‚ वो सिर्फ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की संस्कृति के अवशेष हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की संस्कृति में जो हमें मिला है‚ वो केवल मिट्टी के कुछ बर्तन‚ कुछ सिक्के‚ कुछ मनके और इट से बनी कुछ नींवें‚ जो भवनों के होने का प्रमाण देती हैं‚ लेकिन वो तो केवल साधारण इट के बने भवन हैं। यहां तो विशालकाय पत्थरों पर नक्काशी करके और उन पर आज तक न मिटने वाली रंगीन चित्रकारी करके सजाया गया है। इनको यहां तक ढोकर कैसे लाया गया होगा जबकि ऐसा पत्थर यहां पर नहीं होता थाॽ कैसे उनको जोड़ा गया होगाॽ
कैसे उनको इतना ऊँचा खड़ा किया गया होगा जबकि उस समय कोई क्रेन नहीं होती थीॽ यह बहुत ही अचंभित करने वाली बात है किंतु इस इतिहास का नकारात्मक पक्ष भी है। हर देश काल में सत्ताएं आती–जाती रहती हैं‚ और हर नई आने वाली सत्ता‚ पुरानी सत्ता के चिह्नों को मिटाना चाहती है ताकि वह अपना आधिपत्य जमा सके। मिस्र में भी यही हुआ। जब मिस्र पर यूनान का हमला हुआ‚ रोम का हमला हुआ या अरब के मुसलमानों का हमला हुआ तो सभी ने यहां आकर इन भव्य सांस्कृतिक अवशेषों का विध्वंस किया। उसके बावजूद इतनी बड़ी मात्रा में अवशेष बचे रह गए या दबे–छिपे रह गए‚ जो अब निकल रहे हैं। यही अवशेष मिस्र में आज विश्व पर्यटन के आकर्षण बने हुए हैं। दुनिया भर से पर्यटक बारह महीनों यहां इन्हें देखने आते हैं। और इन्हें देख दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इसी का नतीजा है कि आज मिस्र की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार पर्यटन उद्योग है परंतु जो धर्मान्ध या अतिवादी होते हैं‚ वो अक्सर अपनी मूर्खता के कारण अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेते हैं। आपको याद होगा कि २००१ में अफगानिस्तान के बामियान क्षेत्र में गौतम बुद्ध की १२० फीट ऊँची मूर्ति को तालिबानियों ने तोप–गोले लगाकर ध्वस्त किया था। विश्व इतिहास में वह बहुत ही दुखद दिन था।
आज अफगानिस्तान भुखमरी से गुजर रहा है। वहां रोजगार नहीं है। खाने को आटा तक नहीं है। अगर वो उस मूर्ति को ध्वस्त न करते। उसके आसपास पर्यटन की सुविधाएं विकसित करते तो जापान जैसे कितने ही बौद्ध मान्यताओं वाले देशों और अन्य देशों से करोड़ों पर्यटक वहां साल भर जाते और वहां की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान करते। जब अरब मिस्र में आए तो उन्होंने सभी मूर्तियों के चेहरों को ध्वस्त करना चाहा क्योंकि इस्लामिक देशों में बुतपरस्ती को बुरा माना जाता है। जहां–जहां ऐसा कर सकते थे‚ उन्होंने छैनी–हथौड़े से ऐसा किया। लेकिन आज उसी इस्लाम को मानने वाले मिस्र के मुसलमान नागरिक उन्हीं मूर्तियों को‚ उनके इतिहास को‚ उनके भगवानों को‚ उनकी पूजा पद्धति को दिखा–बता कर रोजी–रोटी कमा रहे हैं। फिर वो चाहे लक्सर हो‚ आसवान‚ अलेक्जेंडेरिया या काहिरा‚ सबसे बड़ा उद्योग पर्यटन ही है। आज मिस्र के लोग उन्हीं पेंटिंग्स और मूर्तियों के हस्तशिल्प में नमूने बनाकर‚ किताबें छाप कर‚ उन्हीं चित्रों की अनुकृति वाले कपड़े बनाकर‚ उन्हीं की कहानी सुना–सुनाकर उससे कमाई कर रहे हैं।
इस लेख के माध्यम से मैं उन सभी लोगों तक संदेश भेजना चाहता हूं कि धरोहर चाहे किसी भी देश‚ धर्म या समुदाय की हो‚ वो सबकी साझी धरोहर होती है। पूरे विश्व की धरोहर होती है। सभ्यता का इतिहास इन धरोहरों को संरक्षित रख कर ही अलंकृत होता है‚ जो भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देता है। चाहे किसी भी धर्म में हमारी आस्था हो‚ हमें कभी भी किसी दूसरे धर्म की धरोहर का विनाश नहीं करना चाहिए। आज नहीं तो कल हम समझेंगे कि इन धरोहरों को बनाना और संभालना कितना मुश्किल होता है‚ और उनका विनाश कितना आसान। इसलिए ऐसे आत्मघाती कदमों से बचें और अपने इलाके‚ प्रांत और प्रदेश की सभी धरोहरों की रक्षा करें। इसी में पूरे मानव समाज की भलाई है।