जब राज्यसभा नहीं मिली तो छटपटाने लग गए और रिमोट नरेंद्र मोदी को दे दिया।’ ‘जीएनए’ () का डीएनए ‘मोदी-मय’ हो गया है। उनका त्यागपत्र देखकर लगता है कि इसे भाजपा ने लिखा है। ‘आजाद पार्टी को धोखा देने का मन बहुत पहले से बना चुके थे।’ ‘अपने शातिर व्यक्तिगत हमलों से धोखा दिया है।’ चार दशक तक कांग्रेस की पहचान बने गुलाम नबी आजाद को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं होगा कि इस्तीफे का बाद उनके लिए ऐसे-ऐसे शब्द कहे जाएंगे। उन्होंने सपने में भी इन सब बातों की कल्पना नहीं की होगी। राजनीति कितनी बेरहम है इस बात का अंदाजा आपको गुलाम नबी के बारे में कांग्रेस नेताओं के बयान से लग गया होगा। कहते हैं जब आपको कोई प्यार करता है तो उसको आपकी कमियां दिखाई ही नहीं देती है लेकिन जब आपसे कोई नफरत करता है तो आपकी अच्छाई भी उसको कमियां लगने लगती है। राजनीति में जब कोई आपके पाले में है तो उससे बेहतर आदमी कोई है। वहीं, आदमी यदि आपको छोड़ तो वह गुलाम नबी आजाद बन जाता है।
गुलाम के खिलाफ बयान… क्रिया की प्रतिक्रिया?
गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से इस्तीफा देते समय अपने पत्र में लिखा कि देश का सबसे पुराना दल अब ‘समग्र रूप से नष्ट हो चुका है’। इसका नेतृत्व आतंरिक चुनाव के नाम पर ‘धोखा दे रहा है। दुर्भाग्य से कांग्रेस में स्थिति इस स्तर पर पहुंच गई है कि वापसी का रास्ता नहीं दिख रहा है। सोनिया गांधी नाममात्र की नेता रह गई हैं क्योंकि फैसले राहुल गांधी के ‘सुरक्षागार्ड और निजी सहायक’ करते हैं। गुलाम नबी आजाद ने गांधी परिवार के चिराग राहुल गांधी पर सीधा-सीधा हमला किया। चूंकि, आज कांग्रेस में राहुल के करीबियों की भरमार है। उनकी हां में हां मिलाने वालों का दबदबा है। ऐसे में आजाद के इस्तीफे के बाद उनके खिलाफ हो रही बयानबाजी को एक्शन का रिएक्शन माना जा सकता है।
कौन हुआ आजाद? पार्टी या गुलाम नबी!
गुलाम नबी आजाद के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस ने पलटवार किया। कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि करते हुए कहा कि आज पार्टी आजाद हो गई है। कांग्रेस वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा नें कहा कि यह उस नेता का चरित्र बताता है, जिस व्यक्ति को पार्टी ने पिछले 30-40 सालों में किसी न किसी पद पर बनाए रखा और अब जब राज्यसभा नहीं मिली तो छटपटाने लग गए और रिमोट नरेंद्र मोदी को दे दिया। खेड़ा ने कहा कि पार्टी का कार्यकर्ता इन पर हस रहा है। अपने त्यागपत्र के डेढ़ पन्नों में अपनी उपलब्धियां भी गिनाई हैं। फिर कहते हैं कि मैं निस्वार्थ था और आज कांग्रेस आजाद हो गई। भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बी.वी. ने कटाक्ष करते हुए कहा कि ऐसा लगता है, गुलाम नबी आजाद का त्यागपत्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लिखा है। उन्होंने यह भी कहा कि आजाद की ओर से राहुल गांधी के संदर्भ में ‘बेबुनियाद बातें’ करना उचित नहीं है।
यह उस नेता का चरित्र बताता है, जिस व्यक्ति को पार्टी ने पिछले 30-40 सालों में किसी न किसी पद पर बनाए रखा और अब जब राज्यसभा नहीं मिली तो छटपटाने लग गए और रिमोट नरेंद्र मोदी को दे दिया। पार्टी का कार्यकर्ता इन पर हंस रहा है।
पवन खेड़ा, कांग्रेस प्रवक्ता
जीएनए का डीएनए मोदीमय
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आजाद पर निशाना साधते हुए यह कहा कि ‘जीएनए’ (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए ‘मोदी-मय’ हो गया है। रमेश ने कहा, ‘जिस व्यक्ति को कांग्रेस नेतृत्व ने सबसे ज़्यादा सम्मान दिया, उसी व्यक्ति ने कांग्रेस नेतृत्व पर व्यक्तिगत आक्रमण करके अपने असली चरित्र को दर्शाया है। पहले संसद में मोदी के आंसू, फिर पद्म विभूषण, फिर मकान का एक्सटेंशन…यह संयोग नहीं, सहयोग है। कांग्रेस के वरिष्ठ कांग्रेस नेता एम. मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पार्टी ने गुलाम नबी आजाद को उनकी लंबी पारी के दौरान ‘सब कुछ’ दिया। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पार्टी ने आजाद को छात्र जीवन से ही पद दिया, उन्हें युवा कांग्रेस और संगठन में स्थान दिया गया, उन्हें मंत्री बनाने समेत कई राज्यों में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) का प्रभारी बनाया गया था। खड़गे ने कहा कि इस समय पार्टी को छोड़ना उन फासीवादी ताकतों को मजबूती देना है, जो भारत के संवैधानिक तानेबाने और संविधान को नष्ट कर रहे हैं।
एक व्यक्ति जिसे कांग्रेस नेतृत्व ने सबसे बड़ा सम्मान दिया, उन्होंने अपने शातिर व्यक्तिगत हमलों से धोखा दिया है, जो उनके असली चरित्र को प्रकट करता है। जीएनए (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए मोदी-फाइड हो गया है।
जयराम रमेश, कांग्रेस प्रवक्ता
पार्टी को धोखा देने का मन पहले ही बना चुके थे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने दावा किया कि गुलाम नबी आजाद पार्टी छोड़ने के फैसले पर एक दिन पछताएंगे। रावत ने कहा कि वह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ‘बी टीम’ बनकर रह जाएंगे। रावत ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि गुलाम नबी आजाद पार्टी को धोखा देने का मन बहुत पहले से बना चुके थे। जब उन्होंने कुछ साथियों के साथ पहला पत्र लिखा था, उस समय ही उनकी मंशा बिल्कुल साफ थी। फिर भी हम लोगों को उम्मीद थी कि सब ठीक हो जाएगा। इतने सालों का पार्टी से रिश्ता है, वो उसका मूल्य समझेंगे। उन्होंने दावा किया कि आजाद ने कई-कई बहानों के साथ पार्टी से नाता तोड़ने का ऐलान किया है। मैं बहाना शब्द इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि गुलाम नबी साहब लंबे समय तक पार्टी के कर्ताधर्ता रहे हैं। उस समय भी ऐसे ही कुछ मिले-जुले सवाल उठते थे।
पार्टी ने आपको सब कुछ दिया है। आप (आजाद) ने लंबे समय तक सत्ता का आनंद लिया, और अब आप दोष ढूंढ रहे हैं?
मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
जब कांग्रेस अछूत थी तब थामा ‘हाथ’…शेख अब्दुल्ला, 8 अगस्त 1953 और कश्मीर, गुलाम नबी आजाद ने क्यों याद दिलाया?
कांग्रेस को तोड़कर बाहर निकल गए
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की निंदा करते हुए कहा कि आजाद पार्टी को जोड़ने की बात कर रहे हैं, लेकिन वह कांग्रेस को तोड़कर बाहर निकल गए। सिंह ने एक बयान में कहा कि हो सकता है कि आपके (आजाद) उन लोगों के साथ संबंध जुड़ गए हों, जिन्होंने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त किया है। हो सकता है आपके उन लोगों के साथ मधुर संबंध हो गए हों। आपने लिखा कि भारत जोड़ो अभियान न चलाकर कांग्रेस जोड़ो अभियान चलाना चाहिए, वो भी उस वक़्त जब आप स्वयं कांग्रेस पार्टी तोड़कर निकल गए।
जिस व्यक्ति (आजाद) को पार्टी ने 42 वर्षों तक कभी बगैर पद के नहीं रखा, वह कांग्रेस के बारे में ऐसी बातें कहेंगे, इसकी उम्मीद देश में किसी को नहीं थी। जिनकी देश में पहचान ही कांग्रेस के कारण हो, उनके द्वारा ऐसी बातें करना ठीक नहीं है।
अशोक गहलोत, सीएम, राजस्थान
सोनिया गांधी के विश्वपात्र का यह हाल
गुलाम नबी आजाद वर्ष 2000 में सीताराम केसरी के अचानक कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटने के समय से ही सोनिया गांधी के विश्वासपात्र रहे। राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में माहिर माने जाने वाले आजाद कई बार पार्टी के लिए संकटमोचक साबित हुए, चाहे वह हरियाणा जैसी राज्य इकाई में गुटबाजी का संकट हो या कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर के साथ एक नया गठबंधन और सरकार बनाना हो। राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में माहिर माने जाने वाले आजाद कई बार पार्टी के लिए संकटमोचक साबित हुए। फिर चाहे वह हरियाणा जैसी राज्य इकाई में गुटबाजी का संकट हो या कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर के साथ एक नया गठबंधन और सरकार बनाना हो। इतना कुछ रहने के बाद आप जब पार्टी छोड़ने का ऐलान किया तो ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया, जिसकी उम्मीद तो शायद गुलाम नबी को भी नहीं रही होगी।
गुलाम नबी आजाद पार्टी को धोखा देने का मन बहुत पहले से बना चुके थे। पार्टी में ऊंच-नीच होती थी। मगर जिस प्रकार गुलाम नबी आजाद ने ऐसे समय में पार्टी को धोखा दिया है, वह पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं का अपमान है।
हरीश रावत, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री
पुराने साथी का मिला साथ
ऐसा नहीं है कि आजाद के विरोध में बोलने वाले लोग ही हैं। कई ऐसे नेता भी हैं जो आजाद के इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं के लगातार विरोध वाले बयानों को बीच गुलाम नबी आजाद को पार्टी में पुराने सहयोगियों का समर्थन भी मिल रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने आजाद के पार्टी छोड़ने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि आजाद पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता और धर्मनिरपेक्ष चेहरा थे। वहीं, पंजाब के पूर्व सीएम और दिग्गज कांग्रेसी रहे अमरिंदर सिंह ने कहा कि गुलाम नबी आजाद पर निराधार आरोप लगाने के बजाय आपको (पार्टी नेता) आत्मावलोकन करना चाहिए कि पार्टी छोड़ने का यह सिलसिला रुक क्यों नहीं रहा है। पंजाब के पूर्व सीएम ने कहा कि एक विवेकशील और ईमानदार नेता सिद्धांतों तथा गरिमा से समझौता नहीं कर सकता है। अमरिंदर सिंह ने कहा कि पार्टी नेताओं के खून-पसीने और कड़ी मेहनत से बनती है। यह किसी एक व्यक्ति की मेहनत का फल नहीं हो सकती।
जब आप गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं को नहीं रोक सकते, जिन्होंने अपना पूरा जीवन पार्टी के साथ बिता दिया तो आपके तौर-तरीकों और अपने वरिष्ठ तथा अनुभवी नेताओं के साथ बर्ताव करने के तरीके में कुछ तो गड़बड़ है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व सीएम पंजाब
जी-23 की अगुवाई के बाद मुश्किल हुई राह
साल 2020 में ‘जी-23’ की अगुवाई के बाद गांधी और आजाद के बीच चीजें पहले जैसी नहीं रहीं। इसके बाद से पार्टी में उनके लिए मुश्किल स्थितियां बननी शुरू हो गईं थी। जी-23 के नेताओं ने नेतृत्व और संगठनात्मक बदलाव की मांग उठाई थी। पर्यवेक्षकों का कहना है कि पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष का आजाद को दोबारा राज्यसभा नहीं भेजने के निर्णय के बाद से स्थिति में सुधार की गुंजाइश लगभग समाप्त हो गई थी। आजाद राज्यसभा में पार्टी के तत्कालीन नेता थे।
‘भारत जोड़ने’ चली और खुद टूट रही कांग्रेस, आखिर मोदी से कैसे लड़ पाएगी?
साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। मौजूदा स्थिति को देखें तो विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 में अगर बीजेपी को सत्ता से दूर रखना है तो विपक्ष को एकजुट होना होगा। कई विश्लेषक मानते हैं क्षेत्रीय दलों की स्थिति और महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए कांग्रेस को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। 2014 से पहले कांग्रेस ने जिस तरह से यूपीए सरकार चलाई थी, उसके लिए उसे फिर से अगुवा बनना होगा। इसके उलट जहां कांग्रेस दूसरों को एकजुट करती, उससे अपना ही घर नहीं संभल रहा है। ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को किस बूते मात दे पाएगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने करीब पांच दशक बाद कांग्रेस को अलविदा कहा। आजाद ने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए अपने इस्तीफे में आरोप लगाया कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि बीते आठ वर्षो में नेतृत्व ने एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी पर थोपने का प्रयास किया जो गंभीर नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि दरबारियों के संरक्षण में कांग्रेस को चलाया जा रहा है। गुलाम नबीं ने कहा कि पार्टी देश के वास्ते सही चीजों के लिये संघर्ष करने की अपनी इच्छाशक्ति और क्षमता खो चुकी है। गुलाम नबी पार्टी में बदलाव की मांग करने वाले जी 23 समूह का हिस्सा रहे थे। आजाद ने पार्टी में संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया को ‘धोखा’ करार दिया। उन्होंने कहा कि देश में कहीं भी, पार्टी में किसी भी स्तर पर चुनाव संपन्न नहीं हुए।
कांग्रेस में जी-23 गुट के प्रमुख नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल ने इसी साल मई में पार्टी छोड़ दी थी। सिब्बल ने समाजवादी पार्टी की साइकिल की सवारी करना मुफीद समझा। सपा के टिकट पर वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। पार्टी से इस्तीफा देने से पहले सिब्बल लगातार मिल रही चुनावों में हार का ठीकरा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सिर पर फोड़ा था। गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए सिब्बल ने पूछा था कि जब अध्यक्ष ही नहीं है तो फैसले कौन ले रहा है? इससे पहले चांदनी चौक से सांसद, यूपीए सरकार में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी रहे। सिब्बल ने कई बड़े मसलों पर सुप्रीम कोर्ट में पार्टी की पुरजोर तरीके से पैरवी की थी। वहीं, पार्टी के शीर्ष नेतृ्त्व के खिलाफ आवाज उठाने पर उनके घर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरफ से तोड़फोड़ भी हुई थी।
-50-
इस साल उदयपुर में जारी चिंतन शिविर के बीच पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने पार्टी से अपना रिश्ता खत्म कर लिया था। जाखड़ का कांग्रेस से तीन पीढ़ियों का रिश्ता था। पंजाब में सीएम पद के दावेदार रहे सुनील जाखड़ को अनुशासन तोड़ने का दोषी करार देते हुए पार्टी की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जाखड़ इससे काफी नाराज थे। वहीं, पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर में पहले पार्टी के कद्दावर नेता और प्रदेश के सीएम रहे अमरिंदर सिंह ने भी इस्तीफा दे दिया था। एक माह तक बगावती तेवर अपनाने के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजकर कांग्रेस से किनारा कर लिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई कर चुनाव में बीजेपी से गठबंधन किया था। वहीं, पंजाब से इस साल फरवरी में पार्टी को एक और झटका अश्विनी कुमार के रूप में लगा था। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार 46 साल तक कांग्रेस के साथ थे।
यूपी में पार्टी को आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद और अदिति सिंह के रूप में झटके पर झटके लगे। राहुल के करीबी रहे आरपीएन सिंह इस साल जनवरी में यूपी चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। पार्टी ने उन्हें एक दिन पहले ही स्टार प्रचारक बनाया था। इस साल कांग्रेस से इस्तीफा देने वालों में विधायक अदिति सिंह भी शामिल थीं। इससे पहले पिछले साल जून में वरिष्ठ कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे और राहुल की मंडली में शामिल जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। यूपी में ब्राह्मण चेहरे के रूप में पार्टी की पहचान रहे जितिन के जाने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। शाहजहांपुर में कांग्रेस का मतलब जितिन प्रसाद से था।
गुजरात में इस साल विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को हार्दिक पटेल के रूप में बड़ा झटका लगा। हार्दिक पटेल ने पार्टी छोड़ते हुआ आरोप लगाया था कि पार्टी देशहित और समाज हित के बिल्कुल विपरीत काम कर रही है। वहीं, इससे पहले शंकर सिंह वाघेला ने भी पार्टी छोड़ी थी। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। इससे पहले 2017 में कांग्रेस में बगावत हुई थी। उस समय शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस से इस्तीफे का ऐलान कर दिया था। उन्होंने कहा था कि आत्मसम्मान से समझौता नहीं कर सकता। इससे पहले वाघेला बीजेपी में रहे थे। कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद वह एनसीपी में शामिल हो गए थे।
बिहार में इस साल कांग्रेस को शत्रुघ्न सिन्हा ने झटका दिया था। सिन्हा ने पार्टी से 3 साल पुराना रिश्ता तोड़ लिया था। इससे पहले शत्रुघ्न सिन्हा 28 साल तक बीजेपी में रहे थे। उन्होंने यशंवत सिन्हा और प्रशांत किशोर के कहने पर टीएमसी का दामन थामा था। वहीं, कांग्रेस को कीर्ति आजाद के रूप में भी झटका लगा था। कीर्ति आजाद ने भी पिछले साल नवंबर में कांग्रेस छोड़ कर टीएमसी का दामन था लिया था। बीजेपी में अरुण जेटली से तल्खियां बढ़ने पर आजाद ने पिछले लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस जॉइन की थी। उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर लड़ा लेकिन वह जीत नहीं सके। कीर्ति आजाद को दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की भी चर्चा थी लेकिन ऐसा नहीं होने पर खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे।
हरियाणा में कांग्रेस को कुलदीप बिश्नोई और अशोक तंवर के रूप में बड़ा झटका लग चुका है। इस महीने की शुरुआत में कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा है। पार्टी छोड़ते समय बिश्नोई ने कहा कि कांग्रेस अपनी विचारधारा से भटक गई है और अब वह इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी के समय वाली पार्टी नहीं रही। कांग्रेस ने जून में हुए राज्यसभा चुनाव में बिश्नोई के क्रॉस वोटिंग करने के बाद उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटा दिया था। 4 बार के विधायक और दो बार के सांसद पहले से ही पार्टी से नाराज चल रहे थे। इससे पहले दलित नेता अशोक तंवर ने भी पार्टी छोड़ दी थी। साल 2019 में अपने इस्तीफे के समय तंवर ने कहा था कि कांग्रेस के भीतर कुछ लोगों की वजह से पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। तंवर ने इससे पहले पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लगातेहुए सोनिया गांधी के आवास के बाहर प्रदर्शन किया था।
पूर्वोत्तर के असम में हिमंत बिस्वा सरमा के रूप में कांग्रेस को ऐसा झटका लगा है कि पार्टी उससे उबर ही नहीं पा रही है। हिमंत बिस्वा सरमा बीजेपी में आने का बाद ना सिर्फ पार्टी को सत्ता में लाए बल्कि सीएम भी बने। सरमा ने भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर सवाल खड़े किए थे। सरमा का कहना है कि कांग्रेस में समस्या यह है कि राहुल गांधी को जबरन आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे पहले पिछले साल अगस्त में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव कांग्रेस को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस के पाले में चली गईं। सुष्मिता देव के पिता संतोष मोहन देव की असम में अच्छी पकड़ रही। वह राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे थे। पिता के बाद सुष्मिता देव ने भी लोकसभा में कांग्रेस की टिकट पर सिल्चर सीट से जीतकर सांसद बनी थीं।
कभी गांधी परिवार को देश की फर्स्ट फैमिली बताने वाले पीसी चाको का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया। पिछले साल केरल चुनाव के दौरान पीसी चाको ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। पीसी चाको 1998 से 2009 के बीच हुए 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच करने वाली जेपीसी का हिस्सा रहे थे। वहीं, तमिलनाडु से पार्टी की दिग्गज नेता जयंती नटराजन ने साल 2015 में पार्टी को अलविदा कहा था। जयंती ने अपने इस्तीफे में राहुल गांधी पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर काम-काज में दखल देने और पर्यावरणीय मंजूरी के संबंध में ‘विशेष अनुरोध’ करने का आरोप भी लगाया था। वहीं, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के विधायक लुइज़िन्हो फलेरो ने पिछले साल सितंबर में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजित मुखर्जी ने भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
2006 में जम्मू-कश्मीर के सीएम बने थे आजाद
जम्मू-कश्मीर में डोडा जिले के भद्रवाह के सोती गांव में 1949 में जन्मे आजाद ने कांग्रेस में धीरे-धीरे अपना कद बढ़ाया। आजाद साल 2006 में अपने गृह राज्य के मुख्यमंत्री बने। राजनीति में अपने लगभग 50 वर्षों के सफर में वह दो बार लोकसभा और पांच बार राज्यसभा सदस्य रहे हैं। पार्टी में कई शीर्ष पदों पर रहने के साथ ही आजाद 1982 के बाद से बनीं कांग्रेस सरकारों में केंद्रीय मंत्री रहे। वह 2006 और 2008 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के सदस्य भी रहे।