सड़कें किसी अभिनेत्री के गाल की तरह चिकनी करने का दावा नि:संदेह भद्दी टिप्पणी के दायरे में आएगा। मगर वह लालू यादव ही क्या जो अपने इस कथन को अपनी वाकपटुता के हुनर से सही न ठहरा दें। उन्होंने इसे भौजाई से मजाक करने को जोड़कर बात आई-गई कर दी थी। यह बात दीगर है कि उनका यह दावा राजनीतिक जुमला साबित हुआ। तब शायद ही किसी को यकीन रहा हो कि आने वाले बरसों में सड़कें वाकई इतनी चिकनी हो जाएंगी कि उन पर गाड़ियां रेलगाड़ी की रफ्तार से सरपट दौड़ेंगी।
आज देश में ऐसे राष्ट्रीय राजमार्गों का जाल सा बिछ चुका है, और यह काम इन पर दौड़ते वाहनों की गति से ही जारी है। इसी सुगमता की वजह से आज बहुत से लोग सड़क से सफर को तरजीह दे रहे हैं। ऊपर से माल ढुलाई के काम में जो तेजी आई है, सो अलग। जाहिर है कि जब सहूलतें मिलेंगी तो इसका शुल्क भी अपनी जेब से ही चुकाना पड़ेगा। यह लोगों से टोल टैक्स के रूप में वसूला जाता है। राजमागरे का निर्माण बुनियादी ढांचा विकसित करने की सरकार की नीति का हिस्सा है। ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर, टोल टैक्स क्यों वसूला जता है?
दरअसल, इन सड़कों को बनाने में अच्छी-खासी रकम खर्च होती है। हाईवे और एक्प्रेसवे बनने में अरबों रुपये की लागत आती है। यह लागत टोल टैक्स के जरिए वसूल की जाती है। रख-रखाव के लिए भी यह शुल्क वसूला जाता है। टोल रोड के तौर पर चिह्नित सड़कों, पुलों और सुरंगों आदि से गुजरने पर यह शुल्क देना पड़ता है। टोल टैक्स चुकाना वाहन मालिकों को हमेशा खलता रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह जेब ढीली होना तो रही ही है। साथ ही, इन पर वाहनों की लगने वाली लंबी कतार लोगों में और चिड़चिड़ापन पैदा कर देती है।
पहले टोल टैक्स की वसूली करने वाले टोल प्लाजा या नाकों की तादाद कम थी लेकिन जैसे-जैसे इनका नेटवर्क बढ़ता गया, वैसे-वैसे हर चंद मील की दूरी पर टोल प्लाजा की संख्या भी बढ़ती गई। वर्तमान सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के कार्यकाल में तो मानो इसे पंख ही लग गए हों। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की वेबसाइट के अनुसार फिलहाल 700 से अधिक टोल प्लाजा होना उनके मंत्रालय की गतिशक्ति की गवाही देते हैं। इन टोल प्लाजों पर गाड़ियों के आकार के हिसाब से टोल टैक्स वसूले जाते हैं। इस शुल्क को वसूलने के लिए नित नई टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है। फास्टटैग जैसी तक्नीक के इस्तेमाल ने टोल नाकों पर लगने वाले जाम पर काफी हद तक अंकुश लगा है। पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा टोल प्लाजा की संख्या को कम करने के लिए 60 किलोमीटर में केवल एक ही टोल नाका की व्यवस्था किए जाने की घोषणा की गई है। सरकार अगले बरसों में भारत को टोल प्लाजा से मुक्त करके जीपीएस के माध्यम से टोल वसूल करने की योजना भी बना रही है। जाहिर है कि इन उपायों से टोल नाकों के झंझावत से छुटकारा तो मिल रहा है, लेकिन आए दिन बढ़ता टोल टैक्स लोगों के लिए बड़ी समस्या बनता जा रहा है। गत एक अप्रैल से टोल टैक्स में 10 रु पये से 65 रु पये तक की वृद्धि इसकी एक नजीर भर है। लोगों का मानना है कि टोल शुल्क पर स्पष्ट नीति बननी चाहिए। खासकर किसी टोल रोड के लिए टोल टैक्स वसूल करने की मुद्दत क्या हो? इस पर विचार होना चाहिए। हालांकि नेशनल हाईवे एक्ट-1956 के अनुसार सड़क निर्माण की लागत वसूल हो जाने के बाद केवल 40 प्रतिशत की दर से मेंटेनेंस खर्च के तौर पर टोल टैक्स वसूल किया जाना चाहिए, लेकिन सालों-साल की वसूली के बावजूद टोल टैक्स कम होने की बजाय हर साल बढ़ जाते हैं। दिल्ली-नोएडा को जोड़ने के लिए 2001 में बने देश के पहले आठ लेन वाले डीएनडी फ्लाईवे से अगले 15 सालों तक टोल टैक्स वसूल किया गया।
आखिरकार, लोगों के विरोध-प्रदशर्न के बाद अक्टूबर, 2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसे टोलफ्री कर दिया। अदालत का मानना था कि इसकी लागत वसूल की जा चुकी है, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया। ऐसे में यह जरूरी है कि किसी भी टोल रोड के निर्माण के बाद उस पर गुजरने वाले वाहनों की संख्या के अनुसार अंदाजा लगाया जाए कि उसकी लागत कितने समय में निकल आएगी? उसी हिसाब से उस सड़क के लिए टोल टैक्स लेने की अगले वर्षो की अवधि निर्धारित हो। साथ ही, इससे होने वाली हर साल की आमदनी का पूरा लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाए। टोल टैक्स को लेकर इस तरह की स्पष्ट नीति ही लोगों की नाराजगी और भ्रम दूर कर सकती है।