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Home राजनीति केंद्रीय राजनीती

उपचुनाव के नतीजों का मोदी की लोकप्रियता या महंगाई से कोई लेना-देना नहीं है

UB India News by UB India News
November 5, 2021
in केंद्रीय राजनीती, खास खबर, ब्लॉग
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उपचुनाव के नतीजों का मोदी की लोकप्रियता या महंगाई से कोई लेना-देना नहीं है

आमतौर पर लोकसभा या विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले उपचुनाव सियासी हवा का रुख बताने का काम करते हैं। मंगलवार को लोकसभा की 3 सीटों और विधानसभा की 29 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे बीजेपी और कांग्रेस के लिए मिलेजुले रहे। फिर भी ये नतीजे आनेवाले महीनों में राजनीतिक उठापटक के संकेत हो सकते हैं।

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की सभी 4 विधानसभा सीटों पर क्लीन स्वीप किया है जबकि असम में सीएम हेमंत विश्व शर्मा की अगुवाई वाली बीजेपी ने अपने सहयोगी दल के साथ मिलकर सभी 5 सीटों पर जीत दर्ज की है। मध्य प्रदेश में बीजेपी ने खंडवा लोकसभा सीट और 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। इस जीत के साथ ही सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी दिखा दिया कि अभी भी राज्य के मतदाताओं पर उनकी पकड़ है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला और नतीजा ये रहा कि कांग्रेस दोनों विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब रही। कर्नाटक में बीजेपी ने एक सीट पर जीत दर्ज की जबकि एक विधानसभा सीट पर उसे हार का मुंह देखना पड़ा।

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सबसे अहम रिजल्ट बिहार का रहा जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के प्रचार के बावजूद दोनों विधानसभा सीटों पर कड़े मुकाबले में जीत हासिल की। उधर, दादरा नगर हवेली लोकसभा सीट जीतकर शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र के बाहर अपना खाता खोला।

एक राजनीतिक पर्यवेक्षक के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि किस पार्टी ने कितनी सीटें जीतीं बल्कि इससे ज्यादा मायने इस बात के हैं कि किसने कौन सी सीट जीती। बिहार में लालू प्रसाद यादव को उम्मीद थी कि वो अगर उपचुनाव में दोनों सीटें जीत गए तो नीतीश कुमार की नाक में दम कर देंगे, लेकिन वह नाकाम रहे। ममता बनर्जी ने बंगाल में बड़े अंतर से सीटें जीतीं। इनमें वे सीटें भी शामिल हैं जो 6 महीने पहले बीजेपी ने जीती थीं। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने वह सीट जीत ली जहां बीजेपी को जीतने की कभी कोई उम्मीद नहीं होती थी। यहां बीजेपी ने उस आदिवासी सीट पर जीत हासिल की जहां पिछले 70 साल में सिर्फ एक बार बीजेपी को कामयाबी मिली थी। हिमाचल में बीजेपी की बुरी हार हुई। कांग्रेस ने यहां लोकसभा की एक और विधानसभा की 3 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए क्लीन स्वीप कर दिया। लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि हार मंहगाई की वजह से हुई। असम में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए ने सभी 5 सीटों पर जीत हासिल की। इस जीत ने साबित कर दिया कि बीजेपी हाईकमान द्वारा सीएम के तौर पर हिमंत बिस्वा सरमा का चयन गलत नहीं था। लेकिन कर्नाटक में नवनियुक्त मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई अपने गृह जिले हावेरी में हंगल विधानसभा सीट हार गए।

बिहार

राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव इन दिनों जेल से बाहर हैं और बिहार विधानसभा के लिए 2 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के दौरान उन्होंने पार्टी के लिए प्रचार भी किया। लालू ने दावा किया था कि वह नीतीश सरकार का ‘विसर्जन’ करने आए हैं। इन सीटों के नतीजे सियासी समीकरण बदल सकते थे। एक साल पहले दोनों सीटें JDU ने जीती थी लेकिन अगर इस उपचुनाव में दोनों सीटें आरजेडी जीत जाती तो नीतीश कुमार मुश्किल में पड़ सकते थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जैसे-जैसे काउंटिंग का क्रम बढ़ता गया वैसे-वैसे दोनों सीटों पर उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर नजर आने लगी।

तारापुर में आरजेडी प्रत्याशी मतगणना के शुरुआती दौर बढ़त बनाए हुए थे लेकिन मतगणना के अंतिम दौर में परिणाम जेडीयू के पक्ष में गया। वहीं कुशेश्वर स्थान में पूरी मतगणना के दौरान जेडीयू मजबूत स्थिति में नजर आई। अंतत: दोनों सीटें जेडीयू के खाते में चली गईं। नोट करने वाली बात ये है कि इन सीटों पर कांग्रेस को चिराग पासवान की पार्टी से भी कम वोट मिले। वहीं आरजेडी की हार पर लालू के बेटे तेजप्रताप यादव ने कहा कि आरजेडी को कांग्रेस से गठबंधन करना चाहिए था। उन्होंने हार के लिए जगदानंद सिंह और शिवानंद तिवारी को जिम्मेदार ठहराया।

बिहार उपचुनाव के नतीजे निश्चित तौर पर लालू यादव और तेजस्वी यादव के लिए एक बड़ा झटका है। दोनों ये मानकर बैठे थे कि नीतीश कुमार से बिहार के लोग नाराज हैं और आरजेडी ये दोनों सीटें आसानी से जीत जाएगी। अगर वाकई में आरजेडी ये दो सीटें जीत जाती तो लालू नीतीश कुमार की सरकार को गिराने की कोशिश करते। रोज खबरें आती है कि वो जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के लगातार संपर्क में हैं। ये दोनों जेडीयू के सहयोगी दल हैं। लेकिन जेडीयू ने दोनों सीटें जीतकर लालू और तेजस्वी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। चूंकि अब ये तय हो गया है कि नीतीश की सरकार आराम से चलेगी और ज्यादा खतरा नहीं है इसलिए अब आरजेडी को अपने विधायकों को एकजुट रखना जरा मुश्किल हो जाएगा। यह लालू के लिए बड़ी चुनौती होगी। एक मुश्किल ये भी है कि उपचुनाव में भले ही कांग्रेस की हालत खराब हुई हो लेकिन इससे आरजेडी और कांग्रेस के रिश्ते में दरार आई है। इसका फायदा भी नीतीश कुमार को मिलेगा। कुल मिलाकर बिहार उपचुनाव सिर्फ दो सीटों का था। लेकिन इसका असर दूर तक होगा।

मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने भी जीत का सिलसिला टूटने नहीं दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खंडवा लोकसभा सीट और तीन अन्य विधानसभा सीटों के लिए ऐसे प्रचार कर रहे थे मानो वह खुद इन सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हों। उन्होंने जबरदस्त मेहनत की और एक-एक सीट पर गए। उन्होंने अपनी सरकार के काम गिनाए और लोगों ने भी उनको सपोर्ट किया।

बीजेपी ने खंडवा लोकसभा सीट बड़े मार्जिन से जीत ली। इसके साथ ही पार्टी ने 2 विधानसभा सीटों पृथ्वीपुर और जोबट पर भी जीत दर्ज की जबकि कांग्रेस ने रैगांव सीट पर कब्जा किया। जीत से खुश चौहान ने कहा कि मध्य प्रदेश की जनता ने उनकी होली और दिवाली दोनों मनवा दी है। असल में जोबट और पृथ्वीपुर सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी और यहां से बीजेपी को जीतने की उम्मीद कम थी इसीलिए शिवराज ने कहा कि जिन 2 विधानसभा सीटों पर बीजेपी जीती है वह चमत्कार से कम नहीं है।

चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता कमलनाथ ने चौहान और पीएम मोदी का मजाक उड़ाया था। नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा, कांग्रेस नेताओं को हवा में उड़ना बंद कर देना चाहिए। उधर, कमलनाथ ने कहा कि कांग्रेस का मुकाबला प्रशासन और पैसे से भी था। .कमलनाथ तो ज्यादातर चुनावी सभाओं में कहते थे कि शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी सुरक्षित नहीं है। उपचुनाव में अगर बीजेपी सभी सीटें हार जाती हैं तो उन्हें दिल्ली बुला लिया जाएगा।

लेकिन मुझे लगता है कि मध्य प्रदेश के लोगों के बीच जमीन से जुड़े नेता, लोगों के साथ व्यक्तिगत संपर्क, ईमानदार और सरल स्वभाव वाले मुख्यमंत्री की छवि शिवराज सिंह चौहान के लिए काम आई। विपक्ष के आरोपों का असर नहीं हुआ। मध्य प्रदेश के उपचुनाव के नतीजों को दूसरे नजरिए से भी देखा जा सकता है। असल में मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने किसान आंदोलन को मुद्दा बनाया था। कृषि कानूनों का हवाला देकर बीजेपी को किसान विरोधी बताया था। कांग्रेस के नेता शिवराज सिंह चौहान की सरकार को दलित और आदिवासी विरोधी बता रहे थे लेकिन बीजेपी ने आदिवासी बहुल जोबट सीट पर भी जीत दर्ज की। यहां 90 प्रतिशत आबादी आदिवासी है। बीजेपी ने 6,100 वोटों के अंतर से इस सीट को जीत लिया। सत्तर साल में ये दूसरा मौका है जब इस सीट पर बीजेपी जीती है। और इसका क्रेडिट शिवराज सिंह चौहान को मिलना चाहिए।

पश्चिम बंगाल
ममता बनर्जी ने उन सभी चारों विधानसभी सीटों पर जीत दर्ज कर ली जिसे कुछ महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उनसे छीन ली थीं। जब वोटों की गिनती चल रही थी तो ट्रेंड देखकर मुझे भी हैरानी हुई। ऐसा लग रहा था जैसे ममता की पार्टी के उम्मीदवार के अलावा बाकी सबकी जमानत जब्त हो जाएगी और करीब-करीब ऐसा ही हुआ। बीजेपी समेत ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।

दिनहाटा सीट पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार उदयन गुहा ने 1 लाख 63 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। मतलब अकेले तृणमूल कंग्रेस के उम्मीदवार को 84 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले। अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट से बीजेपी सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशीथ प्रामाणिक ने जीत हासिल की थी। शांतिपुर विधानसभा सीट भी तृणमूल कांग्रेस ने 64 हजार से ज्यादा वोटों से जीती। छह महीने पहले इसी सीट से बीजेपी के जगन्नाथ सरकार जीते थे। लेकिन जगन्नाथ सरकार ने भी विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी थी। इसी तरह गोसाबा सीट पर ममता की पार्टी के सुब्रत मंडल ने एक लाख 43 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की। यहां तृणमूल कांग्रेस को 87 प्रतिशत वोट मिले। खरदा सीट पर तृणमूल कांग्रेस के शोभनदेब चटर्जी 93 हजार से ज्यादा वोट से जीते।

इन 4 विधानसभा सीटों पर पड़े कुल वोटों का 75 प्रतिशत टीएमसी को मिला है। बीजेपी सिर्फ 14 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी जबकि कांग्रेस, लेफ्ट और दूसरी पार्टियों को कुल मिलाकर 11 प्रतिशत वोट मिले।

ममता बनर्जी ने जहां इसे ‘जनता की जीत’ बताया, वहीं बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि ममता के राज में विपक्षी उम्मीदवार पर्चा तो भरते हैं, लेकिन कैंपेन के दौरान उन्हें फर्जी शिकायतों के चलते पुलिस थानों और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार के लिए वक्त ही नहीं मिलता। बीजेपी के नेता दिलीप घोष ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल में ममता की पार्टी को चुनाव पुलिस ने जितवाया, लोगों को डरा-धमकाकर वोट डलवाए गए।

ये कहा जा सकता है कि बीजेपी हारी, इसलिए उसके नेता इस तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं, इस तरह के इल्जाम लगा रहे हं। आमतौर पर ऐसा होता भी है, लेकिन एक सीधी और सच्ची बात ये भी है कि बंगाल में लोकप्रियता के साथ साथ ममता का खौफ भी है। एक आम वोटर को ममता की पार्टी का डर है, तृणमूल कांग्रेस के काडर का भय है। मई में विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद तृणमूल कार्यकर्ताओं ने विपक्षी दलों के समर्थकों को निशाना बनाया और उनके घरों में तोड़फोड़ की। राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, कई विपक्षी समर्थक मारे गए, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यहां तक कि बलात्कार की घटनाएं भी सामने आईं।

बंगाल में विपक्षी समर्थक दहशत के माहौल में जी रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस के नेता जो बड़ी संख्या में बीजेपी में शामिल हुए थे, आतंक के इस माहौल के चलते ही ‘घर वापसी’ करने लगे और वापस ममता बनर्जी के खेमें में शामिल हो गए। सब जानते हैं कि अगले 5 साल तक बंगाल में ममता बनर्जी का ही शासन होगा, ऐसे में उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को नाराज करना समझदारी नहीं होगी। इसीलिए ममता की पार्टी को एकतरफा जीत मिली है, वरना किसी एक पार्टी के उम्मीदवार को विधानसभा उपचुनाव में 87 परर्सेंट वोट मिलना, ऐसा बहुत कम होता है।

असम
असम में भी उपचुनाव के नतीजे एकतरफा रहे और NDA ने सभी 5 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। लेकिन बंगाल और असम के नतीजों में एक बुनियादी फर्क था। असम में नतीजे एकतरफा रहे, लेकिन वोटिंग एकतरफा नहीं हुई।

असम के आम मतदाताओं ने मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा पर पूरा भरोसा जताया है। 5 में से 3 सीटें बीजेपी ने जीतीं और अन्य 2 सीटों पर उसकी सहयोगी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने जीत दर्ज की। असम में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस 2 विधानसभा सीटों पर तीसरे और चौथे स्थान पर रही। मुख्यमंत्री ने जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘दूरदर्शी नेतृत्व’ को दिया।

उपचुनाव के इन नतीजों से बीजेपी में हिमंत विश्व शर्मा का सियासी कद यकीनन बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हाथों अपमानित होने के बाद वह 6 साल पहले बीजेपी में आ गए थे। ममता बनर्जी की तरह हिमंत विश्व शर्मा भी एक लोकप्रिय और जमीन से जुड़े नेता हैं। ममता और हिमंत दोनों का राजनीतिक जड़ें कांग्रेस में हैं, लेकिन उनमें एक बुनियादी अंतर है। ममता ‘एकला चलो रे’ की नीति में भरोसा करती हैं, जबकि हिमंत सबको साथ लेकर चलने में यकीन करते हैं।

ममता ने बंगाल में अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए धमकाने की रणनीति का सहारा लिया, जबकि असम में हिमंत ने कांग्रेस को मात देने के लिए अन्य दलों का समर्थन लिया। मेरा मानना है कि ममता की जीत वोटों के मामले में भले ही बड़ी रही हो, लेकिन हिमंत की जीत नैतिक रूप से ज्यादा बड़ी थी।

राजस्थान
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दोनों विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर फिलहाल अपने प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट से मिल रही सभी चुनौती को हल्का कर दिया है। कांग्रेस ने धारियावाड़ और वल्लभनगर दोनों सीटों पर जीत हासिल की। इन सीटों पर जहां निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी चमक बिखेरी, वहीं बीजेपी उम्मीदवारों का प्रदर्शन काफी खराब रहा। बीजेपी को राजस्थान में एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।

हिमाचल प्रदेश
हिमचाल प्रदेश में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपने गृह जनपद की मंडी लोकसभा सीट को भी बचाने में नाकाम रहे। कांग्रेस ने 3 विधानसभा सीटों के साथ मंडी की लोकसभा सीट पर भी जीत दर्ज की। मंडी में कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारा, जिन्होंने 7,490 मतों के मामूली अंतर से जीत हासिल की। यह सीट 2019 में बीजेपी के रामस्वरूप शर्मा ने जीती थी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस महत्वपूर्ण लोकसभा सीट के लिए प्राचार की कमान खुद संभाली थी।

उपचुनावों में हार के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि पार्टी हार के कारणों की समीक्षा करेगी, लेकिन फिलहाल ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने जिस तरह महंगाई को मुद्दा बनाया, उसका बीजेपी को नुकसान हुआ। हिमाचल प्रदेश के नतीजों को आगामी विधानसभा चुनाव के ट्रेलर के तौर पर लिया जाना चाहिए। ये नतीजे न तो जयराम ठाकुर के लिए शुभ संकेत हैं और न ही बीजेपी की स्टेट यूनिट के लिए।

मंडी दिवंगत कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह की परंपरागत सीट रही है, लेकिन यह भी सही है कि ये मुख्यमंत्री का गृह जनपद भी है। इसके अलावा अन्य तीन विधानसभा सीटों के आंकड़े भी बीजेपी के लिए चिंताजनक हैं। इन तीनों सीटों पर कांग्रेस को कुल मिलाकर 49 फीसदी वोट मिले, जबकि बीजेपी सिर्फ 28 फीसदी मतदाताओं का ही भरोसा जीत पाई। जयराम ठाकुर चुनावों में हार के लिए महंगाई को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। चुनावों में हार से ज्यादा यह बयान उनके लिए मुसीबत बन सकता है।

बाकी के नतीजों की बात करें तो आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की सत्तारूढ़ YSRCP ने बडवेल विधानसभा सीट बरकरार रखी, इंडियन नेशनल लोकदल के अभय चौटाला ने हरियाणा में ऐलनाबाद सीट पर जीत दर्ज की, कर्नाटक में बीजेपी और कांग्रेस ने एक-एक विधानसभा सीट जीती, महाराष्ट्र में देगलुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस विजयी रही, मेघालय में NPP ने 2 और UDP ने एक सीट पर जीत हासिल की, MNF ने मिजोरम में एक सीट जीती और NDPP ने नागालैंड में एक सीट पर परचम लहराया। शिवसेना ने दादरा नगर हवेली के रूप में महाराष्ट्र के बाहर अपनी पहली लोकसभा सीट जीती।

जहां विरोधी दल जीते, वहां नेता कहने लगे कि ये मोदी की हार है। जहां बीजेपी जीती, वहां मुख्यमंत्रियों ने कहा कि हम मोदी की नीतियों की वजह से जीते। हालांकि दोनों जानते हैं कि इन चुनावों का मोदी की लोकप्रियता से या केंद्र सरकार की नीतियों से कोई लेना-देना नहीं है। कांग्रेस के कुछ नेता ये कहते सुनाई दिए कि बीजेपी को महंगाई मार गई, पेट्रोल के बढ़ते दाम घातक साबित हुए, और हिमाचल के मुख्यमंत्री तक ने यह बात कह दी। पर सवाल ये है कि क्या महंगाई हिमाचल में है और मध्य प्रदेश में नहीं है? क्या पेट्रोल के बढ़ते दामों का असर बंगाल में है और असम में बिल्कुल नहीं है? इसलिए इस तरह की बातें बेमानी है।

ये उपचुनाव स्थानीय मुद्दों पर स्थानीय नेताओं ने लड़े। जहां जिस मुख्यममंत्री ने ज्यादा मेहनत की, उसने अपने उम्मीदवारों को जिता दिया। इन उपचुनावों का न मोदी से कोई लेना देना है, न महंगाई से। उपचुनाव के जो नतीजे आए उनका असर मुख्यमंत्रियों के चुनाव जीतने की क्षमता पर जरूर दिखाई देगा। इसलिए बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा मजबूत होंगे, जबकि विरोधी दलों में ममता बनर्जी और अशोक गहलोत का कद अब और बड़ा हो जाएगा। नीतीश कुमार अपनी सरकार बचाने में कामयाब होंगे और शिवसेना महाराष्ट्र से बाहर अपनी पहली लोकसभा सीट जीतने पर खुश होगी। इससे ज्यादा इन उपचुनावों का कोई मतलब नहीं है।

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