तरह–तरह की चिंताएं थीं कि सरकार कर बढ़ा देगी। अमीरों पर अतिरिक्त कर लग जाएगा। पर ऐसा कुछ ना हुआ‚यानी कई लोगों के लिए आशंकित बुरी खबर नहीं आई‚ तो शेयर बाजार ने परम मुदित होकर तेज छलांग लगा दी। पर गौर से देखें‚तो बजट में कई खबरें बुरी हैं। २०२०–२१ के लिए राजकोषीय घाटे का अनुमान था कि यह सकल घरेलू उत्पाद का ३.५ प्रतिशत होगा‚पर यह कूदकर ९.५ प्रतिशत पर चला गया है।
२०२१–२२ के लिए अनुमान रखा गया है कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का ६.८ प्रतिशत रहेगा। कोरोना काल में राजकोषीय घाटा तय लक्ष्य के दोगुने से भी ऊपर चला गया। पर इस पर ज्यादा चिंता होती नहीं दिख रही। आर्थिक सर्वेक्षण कुछ दिन पहले ही कोरोना संकट को शताब्दी के संकट के तौर पर चिह्नित कर चुका है। यानी ऐसा अपवादपूर्ण संकट जो एक शताब्दी में देखने में आता है कभी–कभार। तो इस अपवादस्वरूप परिस्थिति में राजकोषीय घाटा का ज्यादा हो जाना चिंता का विषय तो है‚ पर इस पर हाहाकार की आवश्यकता नहीं है। सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां थीं। बजट आंकड़ों के अनुसार संसाधन उगाही के मामले में कई स्तर पर कमजोरी रही। विनिवेश यानी सरकारी उपक्रमों के शेयर बेचकर २०२०–२१ में २‚१०‚००० करोड़ रु पये उगाहे जाने थे‚ पर सिर्फ ३२००० हजार करोड़ रुपये ही उगाहे जा सके। यानी तय लक्ष्य का करीब १५ प्रतिशत ही हासिल किया जा सका।
२०२१–२२ के लिए इस मद से १‚७५‚००० करोड़ रु पये उगाहे जाने का प्रस्ताव रखा गया है। शेयर बाजार ने जिस तरह से झूमकर खुश होकर उछलकर बजट पर प्रतिक्रिया दी है‚ उससे लगता है अबकी बार यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल ना होना चाहिए। २०२०–२१ के लिए कंपनी करों से ६‚८१‚००० करोड़ रुपये उगाहे जाने का लक्ष्य था। पर कोरोना के संकट की वजह से इस मद से सिर्फ ४‚४६‚००० करोड़ रु पये हासिल हुए यानी करीब ६५ प्रतिशत इस मद से हासिल हुए। अब २०२१–२२ में सरकार ने अपनी उम्मीदों को २०२०–२१ के मूल स्तर से भी कम कर दिया है। अब कंपनी कर से २०२१–२२ में ५‚४७‚००० करोड़ रु पये उगाहने की योजना है। सरकार को उम्मीद थी कि २०२०–२१ में आयकर की मद से ६‚३८‚००० करोड़ रु पये की वसूली होगी‚ पर वास्तविक वसूली हुई ४५९००० करोड़ रु पये की यानी तय लक्ष्य के मुकाबले ७२ प्रतिशत की प्राप्ति हुई आयकर से। स्वाभाविक है सिकुड़ती अर्थव्यवस्था में जब आय सिकुड़ रही हो तो आयकर कैसे बढ़ सकता है। सरकार को उम्मीद है कि वापसी की राह पर चलती अर्थव्यवस्था में २०२१–२२ में ५६१००० करोड़ रु पये आयकर की मद में हासिल किए जा सकते हैं। यही हाल आयात शुल्क का रहा‚ २०२०–२१ में सरकार को उम्मीद थी कि सीमा शुल्क से १३८००० करोड़ रु पये उगाहे जाएंगे‚ पर वास्तव में सिर्फ १‚१२‚००० करोड़ रु पये ही इस मद से आए। यानी तय लक्ष्य का करीब ८१ प्रतिशत ही हासिल हो पाया इस मद से। यानी कमाई उतनी ना हुई‚ जितनी उम्मीद थी पर खर्चे बढ़ाकर करने पड़े। कोरोनाग्रस्त अर्थव्यवस्था में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए तय रकम से ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ी।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत २०२०–२१ में ६१५०० करोड़ रु पये का प्रावधान किया किया गया था इसे बीच साल में बढ़ाकर १‚१५‚५०० करोड़ रुपये करना पड़ा। अब २०२१–२२ के लिए इसके लिए ७३००० करोड़ रु पये का बजट रखा गया है। यह योजना कोरोना काल में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई। इस बार के बजट में बुजुर्गों को बड़ी राहत मिली है। ७५ साल के अधिक की उम्र के लोगों पर अब कोई टैक्स नहीं लगेगा। हालांकि‚ शर्त ये है कि ये छूट उन्हें सिर्फ पेंशन पर दी जा रही है‚ ना कि बाकी किसी तरीके से हुए कमाई पर। यानी बाकी हर तरह की कमाई टैक्स के दायरे में होगी। इस बार के बजट में इंश्योरेंस सेक्टर में ७४ फीसद तक विदेशी निवेश का ऐलान किया गया है‚ जो पहले सिर्फ ४९ फीसद था। इसके अलावा निवेशकों के लिए चार्टर बनाने का भी ऐलान किया गया है। वहीं बैंकों का फंसा हुआ कर्ज दूर करने के लिए एक अलग से कंपनी बन रही है‚ जो इन फंसे हुए कर्ज को बैंकों से लेकर बाजार में बेचेगी। यह बजट वेतनभोगियों को राहत ना दे पाया। काफी समय से इस बजट से उम्मीद की जा रही थी कि इसमें धारा ८०सी के तहत छूट की सीमा बढ़ सकती है और साथ ही २.५ लाख रु पये तक की कमाई पर मिलने वाली छूट के भी बढ़ने की उम्मीद थी। ये उम्मीद इसलिए भी की जा रही थी‚ क्योंकि पिछले करीब ७ सालों से इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। आखिरी बार जुलाई २०१४ में ये टैक्स छूट की सीमा २ लाख से बढ़ाकर २.५ लाख की गई थी और धारा ८०सी के तहत निवेश पर टैक्स छूट की सीमा १ लाख रु पये से बढ़ाकर १.५ लाख रु पये की गई थी। तो वेतनभोगियों के लिए शुभ समाचार इसे ही माना जा सकता है कि उनसे और ज्यादा कर वसूली की तैयारी नहीं की गई है। यानी कोई बुरी खबर नहीं है‚ इसे ही शुभ समाचार माना जाना चाहिए।
नये कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कुछ संदेश देने की कोशिश की। निर्मला सीतारमण ने कहा कि १‚००० और मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय बाजार और कृषि बुनियादी ढांचे के साथ समाहित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए एपीएमसी यानी कृषि मंडियों को फंड उपलब्ध कराया जाएगा। वित्त मंत्री ने कहा कि एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का खर्च बढ़ाकर ४०‚००० करोड़ रु पये किया जाएगा। कृषि मंडियों के लिए और संसाधन उपलब्ध कराने का आशय है कि मंडियां खत्म नहीं की जा रही हैं। सरकार के इस संदेश का किसान आंदोलन पर क्या असर पड़ेगा‚ यह अभी देखना है। कई किसान नेताओं की आशंका है कि कृषि मंडियां खत्म कर दी जाएंगी। कुल मिलाकर बजट ने कोशिश की है कि नये करों का दंश ना दिया जाए पर जो राहत की उम्मीदें थी खासकर नौकरीपेशा की‚ उसकी उम्मीदें जरूर धराशायी हुई हैं।
सरकार अगर आय हासिल करने के अपने तमाम लक्ष्य में कामयाब हो जाती है‚तो अगले साल मध्यवर्गीय और खासकर नौकरीपेशा मध्यवर्ग को छूट देने की सोची जा सकती है। पर इस बार तो संपन्न लोगों को यह सोचकर खुश होना चाहिए कि उनसे ज्यादा कर वसूलने की कोशिश बजट में नहीं है और मध्यवर्ग को यह सोचकर खुश होना चाहिए कुछ नये कर उनकी जेब से नहीं लिये जा रहे हैं। हां मोबाइल और चार्जर थोडे महंगे हो जाएंगे। यह जरूर अतिरिक्त बोझ खरीदारों पर पड़ेगा।