हिन्दी फिल्मों की कमाई में कमी आने से हिन्दी फिल्म निर्माताओं की बेचैनी बढ़ती जा रही है। कहा जा रहा है कि हिन्दी फिल्मों का विरोध किए जाने की वजह से ऐसा हो रहा है‚ लेकिन यह पूरा सच नहीं है। वृहद परिपेक्ष्य में इसके अनेक कारण हैं‚ जिन्हें समझने की जरूरत है। कोरोना महामारी ने दुनिया के तमाम उद्योगों की तरह बॉलीवुड‚ हॉलीवुड और दूसरे भारतीय फिल्म उद्योगों की भी कमर तोड़ दी है। हालांकि‚ कोरोना के मामले कम होने पर दूसरे फिल्म उद्योग कोरोना काल के पूर्व की स्थिति में तेजी से लौट रहे हैं‚ लेकिन इस मामले में बॉलीवुड उद्योग अपवाद है। हिन्दी फिल्मों की कमाई और नई फिल्म बनाने की संख्या कोरोना काल के पूर्व की स्थिति में अभी तक नहीं पहुंच सकी है।
कोरोना काल से पहले हर साल लगभग ८० हिन्दी फिल्में (मूल रूप से हिन्दी भाषा में बनी फिल्में और हिन्दी भाषा में डब्ड फिल्में‚ जिनमें मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय भाषाओं में बनी फिल्में हैं) बनती थीं। इनकी कमाई ३०००–५५०० करोड़ रुपये की होती थी‚ लेकिन जनवरी‚ २०२१ से अब तक हिंदी भाषा में कुल ६१ नई फिल्में रिलीज हुई हैं‚ जिनमें हिन्दी में डब्ड १८ फिल्में भी हैं। इनकी कुल कमाई ३२०० करोड़ है‚ जिसमें से ४८ प्रतिशत की कमाई हिन्दी भाषा में डब्ड फिल्मों ने की है। भारत में फिल्मों को सफल या असफल उनकी रेटिंग के आधार पर माना जाता है। फिल्मों की रेटिंग उन्नयन से फिल्म की कमाई में इजाफा हो सकता है‚ जबकि रेटिंग में गिरावट से नुकसान। भारत में हिन्दी और अंग्रेजी में बनी फिल्मों को रेटिंग आईएमडीबी देता है। यह एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म रेटिंग वेबसाइट है‚ जो १७ अक्टूबर‚ १९९० में अस्तित्व में आई थी। २०२१ से अब तक ४३ फिल्में मूल रूप से हिन्दी भाषा में बनी हैं। आईएमडीबी द्वारा इन्हें दी गई रेटिंग का औसत ५.९ है‚ जबकि हिन्दी भाषा में डब्ड १८ हिन्दी फिल्मों की औसत रेटिंग ७.३ है। मूल रूप से हिन्दी भाषा में बनी ४३ फिल्मों की सालाना कमाई १६६४ करोड़ रही जबकि १ फिल्म की औसत कमाई ३९ करोड़ रुपये है। वहीं‚ हिन्दी भाषा में डब्ड १८ फिल्मों की औसत कमाई १५५३ करोड़ रही जबकि डब्ड १ फिल्म की औसत कमाई ८६ करोड़ रुपये है।
बीते सालों में उत्तर भारत में सिंगल स्क्रीन थिएटर की संख्या घटकर १६ प्रतिशत रह गई है‚ लेकिन दक्षिण भारत में यह ६२ प्रतिशत है‚ जबकि पश्चिम भारत में १० प्रतिशत। सिंगल थिएटर के दर्शक ग्रामीण इलाकों से हैं‚ जिनकी पहंुच मल्टीप्लेक्स तक नहीं है‚ लेकिन इनकी आबादी मध्यम वर्ग से बहुत ज्यादा है। इसलिए फिल्मों की कमाई को निर्धारित करने में इस श्रेणी के लोगों की अहम भूमिका होती है। मल्टीप्लेक्स में टिकटों के दाम सिंगल थिएटर से ३ से ४ गुणा अधिक होते हैं। साथ ही‚ हिन्दी फिल्मों के टिकट में मनोरंजन कर का प्रतिशत हिन्दी पट्टी के राज्यों में १५ से ६० प्रतिशत के दायरे में है‚ मुंबई में यह ४५ प्रतिशत है‚ जबकि उत्तर प्रदेश में यह सबसे अधिक ६० प्रतिशत है। इसके अपवाद भी हैं‚ जैसे‚ हिमाचल प्रदेश‚ पंजाब और राजस्थान में कोई मनोरंजन कर नहीं है‚ जबकि दक्षिणी राज्यों में इसका प्रतिशत न्यून है। उम्र भी हिन्दी फिल्मों की कमाई के रास्ते में रोड़े बन रही है। आजकल युवा थिएटर की जगह ओवर–द–टॉप (ओटीटी) पर फिल्में देखना पसंद कर रहे हैं। चूंकि उत्तर भारत में युवाओं की ज्यादा आबादी है‚ इसलिए हिन्दी फिल्मों की कमाई कम हो रही है। इसके ठीक विपरीत बुजुर्ग सिंगल थिएटर में फिल्में देखना पसंद करते हैं‚ और इनकी आबादी दक्षिणी राज्यों में ज्यादा है। सोशल मीडिया पर लोगों द्वारा हिन्दी फिल्मों के विरोध की मुहिम चलाने के कारण भी हिन्दी फिल्मों की कमाई पर आंशिक प्रभाव पड़ा है।
मनोरंजन उद्योग में ओटीटी की हिस्सेदारी लगभग ९ प्रतिशत है‚ और इसके ४५ करोड़ ग्राहक हैं‚ जिनके २०२३ तक बढ़कर ५० करोड़ होने की संभावना है‚ क्योंकि भारत में ओटीटी का आकर्षण निरंतर बढ़ रहा है। आज लगभग ५० प्रतिशत लोग हर महीने ५ घंटे ओटीटी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अपने मनोरंजन के लिए कर रहे हैं। प्राइम वीडियो‚ नेटिफ्लक्स‚ डिज्नी हॉटस्टार आदि वैश्विक ओटीटी एप्स अमेरिका की तुलना में भारत में ९० प्रतिशत तक सस्ती दर पर मासिक और वार्षिक ग्राहक बनाने की पेशकश कर रहे हैं। कोरोना काल में सिंगल और मल्टी स्क्रीन थिएटर पूरी तरह से बंद थे। इस कारण २ दर्जन से अधिक बॉलीवुड फिल्मों का प्रीमियर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर किया गया था। इस कालखंड में लोगों को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्में देखने का स्वाद लग गया। इसी वजह से भारत में ओटीटी बाजार के २०२३ तक ११९४४ करोड़ रुपये का होने का अनुमान है‚ जो २०१८ में महज २५९० करोड़ रुपये का था।
दूरदर्शन के आने तक हिन्दी फिल्मों की कमाई में कोई भी दूसरा हिस्सेदार नहीं था‚ लेकिन वीसीआर/वीसीपी हिन्दी फिल्मों की कमाई में सेंध लगाने में सफल रहा। फिर‚ सीडी/डीवीडी का दौर आया जिसने वीसीआर/वीसीपी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया। हिन्दी फिल्मों की कमाई का कुछ हिस्सा हडपने में भी कामयाब रहा। पुनश्चः वर्ष २००० में मल्टी स्क्रीन आ गया। मल्टीप्लेक्स ने सीडी/डीवीडी उद्योग के साथ–साथ सिंगल स्क्रीन को भी तबाह कर दिया। इसने हिन्दी फिल्म निर्माताओं को आर्थिक नुकसान पहुंचाया। अब ओटीटी का पदार्पण हुआ है‚ जिसने हिन्दी फिल्मों के निर्माताओं को विवश कर दिया है कि अपनी कमाई में इजाफा करने के लिए तमाम विकल्पों की पड़ताल करें। हाल के महीनों में दक्षिण की हिन्दी भाषा में डब्ड फिल्मों ने उत्तर भारत में जबर्दस्त कमाई की है। ऐसे में बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं को अपनी कमाई बढ़ाने के लिए नई रणनीति बनाने की जरूरत है। फिल्म वितरण योजना और फिल्मों के विषय में सुधार लाकर भी हिन्दी फिल्मों की कमाई में कुछ इजाफा किया जा सकता है।