प्रदूषण की वजह से दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी के हालात हैं। एक हफ्ते के लिए स्कूल–कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। पढ़ाई ऑनलाइन चलेगी। सरकारी दफ्तरों को एक हफ्ते वर्क फ्रॉम होम करने कहा गया है। निजी कंपनियों को भी इस बारे में एड़वाइजरी जारी की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन के लॉकड़ाउन पर विचार करने को कहा है। सवाल है कि सब कुछ जानते–समझते हुए आखिर यह नौबत क्यों आई। सरकार अपनी ओर से भरपूर प्रयास कर रही है‚ लेकिन योजना बनाने वालों के अदूरदर्शितापूर्ण कदमों से प्रयास सफल नहीं हो रहे। स्थितियां रोज बिगड़़ती ही जा रही हैं। किसानों के पराली जलाने को प्रदूषण के लिए सबसे बड़़ा विलेन माना गया है। इससे निपटने के लिए बड़़ी–बड़़ी योजनाएं बनाई गइ‚ इन पर अरबों रुपये खर्च किए जा चुके हैं‚ लेकिन किसान आज भी पराली जलाने पर मजबूर हैं। वायु की गुणवत्ता की निगरानी करने वाली एजेंसी ‘सफर’ के मुताबिक पंजाब और हरियाणा के खेतों में लगाई जाने वाली आग अक्टूबर और नवम्बर में ३०–४० प्रतिशत वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। २०१८ में भारत सरकार ने जोर–शोर से इस समस्या से निपटने का बीड़ा उठाया था। किसानों की मदद के लिए एक फंड़ बनाया गया था। चार साल में इस फंड़ से अरबों रु पये खर्च किए जा चुके हैं‚ मगर यह कोशिश विफल रही। कारण इस योजना में अनेक खामियां हैं। भूसा हटाने के लिए जो मशीन सुझाई गई है; उसकी कीमत इतनी ज्यादा है कि किसान न उसे खरीद पा रहे हैं न किराये पर ले पा रहे हैं। इसके तहत किसानों को फसल के बचे हुए हिस्से की कटाई और सफाई के लिए मशीन खरीदने के वास्ते सब्सिडी दी जाती है। किसानों का कहना है कि मशीन के तीन हिस्से हैं‚ जिनकी कीमत ढाई से तीन लाख रु पये है। तीन ट्रैक्टर और दो ट्रॉली भी खरीदनी पड़ती हैं। सब्सिडी में ट्रैक्टर ट्रॉली की कीमत शामिल नहीं होने से इसकी कीमत साढ़े आठ लाख तक आती है। किसानों को पहले कीमत खुद चुकानी होती है तब ही सब्सिडी के लिए दावा कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में दस महीने लगते हैं। सब्सिडी तय दुकानों से खरीदने पर ही मिलती है। किसानों का दावा है कि ये दुकानें मशीनों को ज्यादा दाम पर बेचती हैं। ऐसे में योजना की सफलता संदिग्ध हो जाती है।
कांग्रेस के लोग आदिवासी जनजाति को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते….
पीएम मोदी दो दिवसीय झारखंड दौरे पर हैं. इसकी आज से शुरुआत हुई है. पीएम मोदी ने चाईबासा टाटा कॉलेज...