जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की केंद्र सरकार की तैयारी अब पूरी हो चुकी है. गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को अनुच्छेद 370 हटाने के संकल्प के साथ ही जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक और जम्मू कश्मीर आरक्षण दूसरा संशोधन विधेयक राज्यसभा में पास करा लिया. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पक्ष में 125 और विपक्ष में 61 वोट पड़े. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मिशन कश्मीर उनकी 1992 की कश्मीर यात्रा से शुरू होता है. तब वो गुजरात के मुख्यमंत्री भी नहीं थे. बस बीजेपी के एक कार्यकर्ता थे. 27 साल पहले बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा में मोदी उनके सारथी थे.
मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने पहुंचे थे. वहीं किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि सोमवार को नरेंद्र मोदी अनुच्छेद 35 ए ही नहीं, बल्कि अनुच्छेद 370 हटाने का ही रास्ता साफ कर देंगे. पीडीपी सांसद तो अपने कपड़े फाड़कर, चीख पुकार मचाने लगे. मोदी सरकार के इस सबसे बड़े फैसले पर विपक्ष हंगामा करता रहा तो बीजेपी के सांसद मेजें थपथापे रहे.
निश्चय ही इतने बड़े कदम की किसी ने कल्पना नहीं की थी। जम्मू-कश्मीर में सख्त सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए यह संभावना तो थी कि कुछ बड़ा होने वाला है। लेकिन एक ही साथ 370, 35 ए को खत्म करते हुए जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक एवं प्रशासनिक को आमूल रूप से बदल दिया जाएगा, इसका अंदाजा नहीं था। हालांकि जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य भागों की तरह सामान्य बनाने के लिए ऐसे ही साहसिक कदम की आवश्यकता थी। इससे न केवल इतिहास की भूलों का परिमार्जन हुआ बल्कि नए इतिहास के अध्याय की शुरु आत हो गई है। धारा 370 को संविधान सभा ने भी अस्थायी एवं संक्रमणकालीन अध्याय में रखा था। यह जम्मू-कश्मीर को भारत के शेष भागों से अलगाव का कारण बन रहा था उसका अंत पहले ही हो जाना चाहिए था। यह कौन सी व्यवस्था थी जिसमें एक ही देश में दो नागरिकता मिल रही थी। भारत का नागरिक होना भर जम्मू-कश्मीर के नागरिक होने के लिए पर्याप्त नहीं था। 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को यह अधिकार था कि वह तय करे कि आप वहां के नागरिक हैं या नहीं। जमीन कानून के कारण कोई एक कारखाना नहीं लग सकता था। यह धारा केन्द्र को ब्लैकमेल करने का भी कारण बनता था। कश्मीर की नियति कुछ परिवारों के हाथों सीमित हो गई थी। केन्द्र को अपना कोई कानून लागू करने के लिए वहां की विधानसभा से अनुरोध करना पड़ता था। यह असहज स्थिति अब समाप्त हो जाएगी। एक मायने में कश्मीर का वास्तविक विलय भारत में अभी हुआ है। कश्मीर की सुरक्षा उसके भविष्य की स्थिति और लोगों की आकांक्षाओं को देखते हुए यह बहुत जरूरी था कि धारा 370 हटाने के साथ-साथ उसके राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन किया जाए। इसलिए संपूर्ण राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलना तथा लद्दाख को अलग करना भी आज के समय में उपयुक्त कदम माना जाएगा। लद्दाख में लंबे समय से मांग थी कि उसको केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाएं लेकिन किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। जम्मू के लोगों की शिकायत रहती थी कि कश्मीर का वर्चस्व हमारे यहां शासन पर सरकारी व्यवस्था पर, विकास के कायरे पर है, जिसके बीच संतुलन कायम होना चाहिए। इस समय जो स्थिति बन गई है, उसमें जम्मू-कश्मीर में केंद्र की प्रभावी भूमिका की आवश्यकता है और वह केंद्र शासित प्रदेश के माध्यम से ही आ सकता था। हालांकि इसको जनस्वीकार्य बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी।