पूर्व सांसद शरद यादव ने कहा कि अनुच्छेद 370 को जिस तरह से राज्य सभा में पेश किया गया वह लोकतंत्र में ठीक बात नहीं है। क्योंकि ऐसा फैसला लेने से पहले न तो वहां के नागरिकों को और न ही सभी राजनीतिक दलों को विास में लिया गया था। हम सबको यह समझना जरूरी है कि अनुच्छेद 370 कश्मीर में क्यों लागू था और ऐसे ही अनुच्छेद 371ए, 371जी नागालैंड, मिजोरम, आसाम, मेघालय और कई राज्यों में लागू होते हैं। वर्तमान में 370 और 35ए अनुच्छेदों से मिले अधिकारों को कश्मीरियों द्वारा धारित एकमात्र महवपूर्ण स्वायत्तता के रूप में माना जाता है। अत: इनसे छेड़छाड़ करने पर व्यापक प्रतिक्रिया की संभावना है।श्री यादव ने कहा कि यदि अनुच्छेद 370 और 35 ए को संवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया जाता है तो जम्मू-कश्मीर 1954 के पूर्व की स्थिति में वापस आ जाएगी। उस स्थिति में केंद्र सरकार की राज्य के भीतर रक्षा, विदेश मामलों और संचार से संबंधित शक्तियां समाप्त हो जाएंगी। हां, अनुच्छेद 370 (3) राष्ट्रपति के आदेश द्वारा 370 को निरस्त किया जा सकता है। हालांकि इस तरह के आदेश को जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा से भी सहमति लेनी होगी। चूंकि इस तरह की विधानसभा 26 जनवरी, 1957 को भंग कर दी गई थी, इसलिए एक विचार यह है कि अब इसे हटाया नहीं जा सकता लेकिन दूसरा दृष्टिकोण यह है कि यह कार्य किया जा सकता है, लेकिन केवल राज्य विधानसभा की सहमति से। अनुच्छेद 370 को एकतरफा निरस्त नहीं किया जा सकता है। यह जरूरी है कि जम्मू- कश्मीर तथा केंद्र के बीच इस मामले में सहमति हो। सरकार को आम सहमति से लोकतंत्र का मार्ग ही अपनाना चाहिए। अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला देश की एकता और अखंडता के लिए सही कदम नहीं है और इसपर भारत सरकार को पुन: विचार करना चाहिए तथा सभी राजनीतिक दलों से मिलकर र्चचा करनी चाहिए।
मांझी की पार्टी को महिलओं से माफी मांगनी चाहिए
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