लोकसभा में आज तीन तलाक बिल पर चर्चा के बाद उसे पारित किए जाने की संभावना है. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को बताया कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपने सांसदों को इसके लिए व्हिप जारी किया है और उनसे सदन में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने को कहा है. वही एनडीए में शामिल जेडीयू इस बिल का लोकसभा में विरोध करेगी. जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने स्पष्ट किया है कि पार्टी इस बिल का सदन में विरोध करेगी, यह निर्णय बहुत पहले लिया जा चुका है. उन्होंने कहा कि बीजेपी को सबको बिठाकर बात करना चाहिए था और उसके बाद बिल पेश करना चाहिए था.
संजय सिंह ने कहा कि एनडीए में होने के बाद भी बाकी दलों से विमर्श नहीं किया गया और आम सहमति नहीं बनाई गई. हर पार्टी की अपनी नीति और अपना एजेंडा होता है. जेडीयू का अपना एजेंडा है बीजेपी के अपना एजेंडा है.
CM नीतीश ने बताया था नाजुक मसला
बता दें कि बीते जून महीने में ही जेडीयू ने अपना स्टैंड क्लीयर कर दिया था कि वह मौजूदा स्वरूप में तीन तलाक बिल का समर्थन नहीं करेगी. दरअसल जब यह बिल लाया गया था तभी नीतीश कुमार ने लॉ कमीशन को इस बारे में बताया था कि ये नाज़ुक मसला है लिहाजा इसमें सभी पक्षों से बात कर आम सहमति बनाने की करने कोशिश करनी चाहिए.
कई मुद्दों पर JDU-BJP में सहमति नहीं
गौरतलब है कि एनडीए में होते हुए भी जेडीयू कई मुद्दों पर अपना अलग स्टैंड रखे हुए. ट्रिपल तलाक के साथ धारा 370, अनुच्छेद 35 ए, एनआरसी और समान नागरिक संहिता जैसे कई मुद्दों पर जेडीयू ने पहले भी बीजेपी से अलग अपनी राय रखी है.
वही विपक्ष कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक मांग कर रही हैं कि इसे जांच पड़ताल के लिए संसदीय समिति को सौंपा जाए। भाजपा की अगुवाई वाली राजग सरकार के पास निचले सदन में पूर्ण बहुमत है और उसके लिए इसे पारित कराना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। लेकिन राज्यसभा में सरकार को कड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ सकता है जहां संख्या बल के लिहाज से सत्ता पक्ष पर विपक्ष भारी है। जनता दल (यू) जैसे भाजपा के कुछ सहयोगी दल भी विधेयक के बारे में अपनी आपत्ति जाहिर कर चुके हैं।
वही सरकार ने विधेयक में एक साथ, अचानक तीन तलाक दिये जाने को अपराध करार दिया गया है और साथ ही दोषी को जेल की सजा सुनाये जाने का भी प्रावधान किया गया है. नरेंद्र मोदी सरकार ने मई में अपना दूसरा कार्यभार संभालने के बाद संसद के इस पहले सत्र में सबसे पहले इस विधेयक का मसौदा पेश किया था. कई विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया है, लेकिन सरकार का यह कहना है कि यह विधेयक लैंगिक समानता और न्याय की दिशा में एक कदम है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक मांग कर रही हैं कि इसे जांच पड़ताल के लिए संसदीय समिति को सौंपा जाये.
भाजपा की अगुवाई वाली राजग सरकार के पास निचले सदन में पूर्ण बहुमत है और उसके लिए इसे पारित कराना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. लेकिन, राज्यसभा में सरकार को कड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ सकता है जहां संख्या बल के लिहाज से सत्ता पक्ष पर विपक्ष भारी है.