ऐसे वक्त में जब पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है, पाक सेना ने इमरान खान के लिए सियासी खतरा भी पैदा कर दिया है. भ्रष्टाचार के नाम पर राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के बाद अब पाकिस्तान की सेना की नजर उन जजों पर है जो उसकी गुडलिस्ट में नहीं हैं.
इमरान खान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस काजी फैज ईसा और सिंध हाई कोर्ट जज केके आगा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को शीर्ष न्यायिक परिषद के आगे बढ़ा दिया है. इमरान खान सरकार ने यह दावा किया है कि जजों ने अपने टैक्स रिटर्न में अपनी विदेशों की संपत्ति घोषित नहीं की है. दिलचस्प है कि ऐसा रिफरेंस कोई व्यक्ति भी सौंप सकता है लेकिन इस मामले में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने केस दर्ज कराया ताकि यह दिखाया जा सके कि सरकार भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चला रही है.
इस धारणा को और भी ज्यादा प्रामाणिक बनाने के लिए आर्मी ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर को मृत्युदंड की सजा दी और एक रिटायर्ड जनरल को उम्रकैद.
सतही तौर पर सब कुछ बड़ा ही व्यवस्थित लग रहा था लेकिन अचानक से सेना का दांव उल्टा पड़ गया. सेना ने गलत जजों को निशाना बना दिया. यह मामला उस वक्त की याद दिलाता है जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रमुख न्यायाधीश इफ्तिकार मोहम्मद चौधरी को बर्खास्त कर उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था जिसके बाद पूरे देश के वकील एकजुट हो गए थे.
यह आंदोलन पाकिस्तान के इतिहास में सबसे बड़ा नागरिक आंदोलन बन गया था. इस घटना ने मुशर्रफ के पतन का रास्ता साफ कर दिया था. जस्टिस ईसा का मामला भी काफी कुछ ऐसा ही है. संयोग से चौधरी और ईसा दोनों गृहयुद्ध से जूझ रहे बलूचिस्तान प्रांत से ही हैं. दोनों जजों ने कुछ ऐसे फैसले सुनाए जो पाकिस्तानी आर्मी के गले नहीं उतरे.
कई लोगों का यकीन है कि ईसा के खिलाफ कदम उठाने के पीछे असली वजह ये है कि उन्होंने दो मामलों में ना केवल पाकिस्तान की सैन्य संस्था को फटकार लगाई बल्कि उसे अपने संवैधानिक दायरे में भी रहने के लिए कहा.
पहला मामला अगस्त 2016 में हुआ क्वेटा ब्लास्ट है जिसमें कई नामी वकील मारे गए थे. ब्लास्ट मामले की जांच के लिए बनाए गए कमीशन की अध्यक्षता जस्टिस ईसा ही कर रहे थे. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान के भीतर खुले तौर पर सक्रिय आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई ना करने के लिए गृह मंत्रालय और ISI की सख्त टिप्पणी की थी. लेकिन उनका सबसे कड़ा फैसला फैजाबाद धरने को लेकर था जिसमें आर्मी समर्थित आतंकियों और एक संगठन तहरीक-ए-लबैक पाकिस्तान (TLP) चुनाव से संबंधित कानूनों में बदलावों की मांग पर राष्ट्रीय राजमार्गों को बंद कर दिया था और हिंसा-दंगे भड़काए थे. यह धरना ISI ने तत्कालीन नवाज शरीफ की सरकार को कमजोर करने के लिए करवाया था. ISI के कई अधिकारियों को प्रदर्शनकारियों को पैसे बांटते देखा गया था.
सुप्रीम कोर्ट की ईसा की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय बेंच ने 2019 में फैसला सुनाया और साफ तौर पर आर्मी की भूमिका की तरफ इशारा किया. रावलपिंडी के GHQ (पाकिस्तान के मुख्य हेडक्वॉर्टर) की भौंहे तननी ही थी क्योंकि पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार सैन्य बलों के खिलाफ, खासकर ISI के खिलाफ इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया था.
लाहौर के एक वरिष्ठ पत्रकार जाहिद मुख्तार ने इंडिया लीगल को बताया कि इस फैसले ने सैन्य बलों को मुश्किल में डाल दिया और उन्हें इसके खिलाफ रीव्यू पिटीशन दाखिल करनी पड़ी. लेकिन कानून के मुताबिक, रीव्यू पिटीशन की सुनवाई भी यही बेंच करेगी और अगर यह याचिका खारिज होती है तो फिर गंभीर संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है.
मुख्तार कहते हैं कि अधिकतर कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सेना रीव्यू पिटीशन की सुनवाई से पहले ही अपने रास्ते से ही जस्टिस ईसा को हटा देना चाहती है और इसीलिए चालाकी से खान सरकार के जरिए उनके खिलाफ केस आगे बढ़वा दिया.
भले ही यह कदम बहुत ही सोचा-समझा था लेकिन सब कुछ योजना के हिसाब से नहीं हुआ. ईसा ने राष्ट्रपति अल्वी को खुद एक पत्र लिखकर अपने खिलाफ दिए गए रिफरेंस को स्पष्ट करने के लिए कहा. ईजा ने कहा कि लीक रिफरेंस दिखाता है कि न्यायिक व्यवस्था को खतरे में डाला जा रहा है.
कनाडा के प्रैगमोरा इंस्टिट्यूट के सदस्य और वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार मोहम्मद रिजवान कहते हैं, ऐसे वक्त में जब देश गंभीर आर्थिक और प्रशासन संबंधी संकटों से गुजर रहा है, पाकिस्तानी सेना ने यह कदम उठाकर सबसे बड़ी गलती कर दी है. हाल ही में, पाकिस्तान ने बड़ी कड़ी शर्तों पर आईएमएफ से पैकेज हासिल किया है.
रिजवान ने कहा कि जज के खिलाफ रिफरेंस को सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि यह ईसा की स्पेन में अर्जित संपत्ति के खिलाफ है. सरकार टैक्स रिटर्न में इसी की घोषणा ना करने को लेकर जज के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. ईसा की पत्नी स्पेन और पाकिस्तान की दोहरी नागरिकता रखती हैं.
रिजवान बताते हैं, अर्थव्यवस्था तबाह होने के कगार पर है. जरूरी चीजों के दाम बढ़ने की वजह से लोगों का जीवनयापन मुश्किल हो गया है. आईएमएफ राहत पैकेज से आम लोगों की मुश्किलें और भी बढ़ने वाली हैं. ऐसे वक्त में पाकिस्तान को बिल्कुल भी किसी और संकट की जरूरत नहीं है.
रिजवान ने कहा, सवाल उठता है कि ये सब अभी क्यों किया जा रहा है? एक वकील के तौर पर और फिर जज बनने के बाद वह कई सालों से टैक्स का भुगतान करते आ रहे हैं. अगर कहीं कोई गड़बड़ी थी तो उस पर पहले सवाल खड़े किए जाने चाहिए थे. अभी क्यों? इससे वाकई किसी प्रतिशोध का संकेत मिलता है. कुछ वक्त पहले जब पाकिस्तान आर्मी का मजाक उड़ाने के लिए पंजाब बार काउंसिल के कुछ सदस्यों ने जब उनके खिलाफ प्रस्ताव पास किया तो आर्मी ने उस वक्त भी कैंपेन चलाने की कोशिश की थी लेकिन कई राज्य बार काउंसिलों ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था.
मुख्तार कहते हैं कि ईसा को टारगेट करने का दांव सेना के लिए उल्टा पड़ सकता है क्योंकि वह पाकिस्तान में अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं. इसके अलावा ईसा के पिता भी पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी सहयोगी भी रहे हैं.
ईसा के समर्थन में पाकिस्तान की मुस्लिम लीग (नवाज), पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और कई बार असोसिएशन्स आ चुके हैं और सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ने की धमकी दी है. विपक्ष ने दोनों जजों के खिलाफ रिफरेंस वापस लेने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव भी पेश किया है.
रिजवान कहते हैं कि इस कदम का सबसे बुरा असर प्रधानमंत्री इमरान खान पर होगा. वह कहते हैं, पीछे से निर्देश दे रही सेना अब फ्रंटफुट पर आकर खेलने लगी है और यही वजह है कि इमरान खान इस मुद्दे पर बिल्कुल खामोश हो गए हैं.
सेना इमरान खान के प्रदर्शन से नाखुश है और उसने अपने लोगों को सलाहकार के तौर पर उनके पीछे लगाया हुआ है जिससे पार्टी में गंभीर संघर्ष पैदा हो गया है. वर्तमान में 48 मंत्रियों और सलाहकारों में से केवल पांच इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ से आते हैं.
मुख्तार कहते हैं भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम ने नवाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी को एक साथ ला दिया है और वे संसद को चलने नहीं दे रहे हैं. खान की गठबंधन की सरकार के लोग ही सरकार से इतने नाखुश हैं कि वे गठबंधन छोड़ने की धमकी दे रहे हैं.
आखिर में रिजवान कहते हैं, क्या जस्टिस ईजा के खिलाफ रिफरेंस एक दूसरा आंदोलन खड़ा कर देगा जैसे इफ्तिकार मोहम्मद चौधरी के मामले में हुआ था? ये तो वक्त ही बताएगा कि पाकिस्तान की सियासत में नाटकीय बदलाव आने वाला है या नहीं लेकिन अगले आने वाले दो महीने इमरान खान सरकार के वजूद के लिए बहुत ही अहम हैं जो पूरी तरह से थर्ड अंपायर (सेना) पर निर्भर करता है.