लोकसभा का चुनावी संग्राम जरूर समाप्त हो गया है लेकिन गठबंधन की राजनीति में शह और मात का खेल अभी भी जारी है। बात एनडीए की हो या फिर महागठबंधन की। राजनीतिक सक्रियता इतनी कि दलों की हर हरकत को चाल समझ कर उसके माने-मतलब निकाले जाने लगे हैं। इतना ही नहीं और हर माने-मतलब को दूरगामी प्रभाव से जोड़ कर राजनीतिक हलकों में तीखी बहस भी शुरू हो चुकी है। हालांकि लोकसभा के चुनावी संग्राम के बाद राजनीति की उलटवांसी तब शुरू हुई जब एनडीए में भाजपा के अलावा शामिल दलों के हिस्से सांके तिक भागीदारी के तहत एक मंत्री पद के फॉमरूले की स्वीकृति मिली। जनता दल यू का इस फॉमरूले से बाबस्ता न रखना राज्य में बदली हुई राजनीति के लिए टर्निग प्वाइंट बन गया। वह भी तब जब जदयू का शीर्ष नेतृत्व पहले ही कह चुका है कि मंत्रिपरिषद् में शामिल करने का पूरा अधिकार भाजपा को है। यह दीगर कि उधर, भाजपा ने भी लोजपा के साथ चार सवर्ण व एक यादव व एक पासवान को मंत्रिपरिषद में जगह देकर राज्य की प्रमुख दबंग जातियों को आगे रख एक नई रणनीति को स्पेस दे डाला। सवर्ण-यादव व पासवान यानी 38 प्रतिशत वोटवैंक की भागीदारी। तो जनता दल यू ने भी अचानक राज्य में विस्तार को जगह देकर शह-मात के खेल को अंजाम दे डाला।उधर, भाजपा के भीतर भी इन घटनाओं को लेकर र्चचा परवान पर है। र्चचा करने वालों का एक धड़ा राज्य की सत्ता में नीतीश कुमार की महत्ता के साथ इन घटनाओं को सहज प्रवृत्ति का प्रकटीकरण मान रहा है तो दूसरी तरफ भाजपा के वैसे लोग जो सत्ता से बाहर हैं उन्हें जदयू के मंत्रिमंडल विस्तार की स्वीकारोक्ति पुराने तेवर के रूप में नहीं ले रहे हैं। ऐसे लोग देशभर में मिली एनडीए की जीत को नमो के चेहरे की जीत भी मान रहे हैं। उधर, जदयू के भीतर भी एक धड़ा ऐसा है जो अभी भी यह समझता है कि प्रशांत किशोर ने जिस तरह से दो सांसद वाली पार्टी जदयू के लिए 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की राह बनाई वहीं श्री झा की अनुपस्थिति में जदयू के मुख्य रणनीतिकार बने आर.सी.पी सिंह जदयू की अपेक्षा के अनुकूल मंत्रिपरिषद की भागीदारी को दिलाने में असफल भी रहे। अब इसे जनता दल यू का पलटवार कह लें या बिहार मंत्रिमंडल विस्तार की राजनीति। लेकिन अचानक से राज्य के मंत्रिमंडल का विस्तार और शामिल आठ मंत्रियों को मंत्री पद की शपथ दिलाने के बाद भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को एक नई राजनीति का आईना जनता दल यू भी दिखाने में सफल हो गया। जहां पिछड़ा व अतिपिछड़ों की अधिकतम भागीदारी के साथ दलित में पासी व रजक समाज के विधायकों को मंत्रिपरिषद में जगह देकर एक बड़े वोट बैंक पर निशाना साधा। वह भी नीरज कुमार, संजय झा व नरेन्द्र नारायण को मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाने के बाद जनता दल यू ने समग्रता में सवर्ण,पिछड़ा-अतिपिछड़ा व दलित वोट बैंक में सेंधमारी का एहसास कराने की कोशिश की है। दूसरी तरफ जनता दल यू के इफ्तार में भाजपा नेताओं ने अपनी अनुपस्थिति से यह बताने की भी कोशिश की कि सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। महागठबंधन की राजनीति को देखें तो रालोसपा की चाल भी बदली-बदली सी है। एक तरफ लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा भाजपा को धोखा नम्बर-2 खाने के लिए तैयार रहने को भी कह रहे हैं तो दूसरी तरफ विशेष राज्य के दज्रे को लेकर नीतीश कुमार के साथ-साथ चलने की बात कहते हर आंदोलन और हर कार्यक्रम में साथ चलने का भी वादा कर रहे हैं। उधर, महागठबंधन के घटक दल हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (से) ने भी इफ्तार की राजनीति के बहाने जनता दल यू की तरफ हाथ बढ्राया है। आज के इफ्तार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद शामिल हुए और और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी से काफी गर्मजोशी से भी मिले। श्री मांझी ने तो यहां तक कह दिया कि जब हम (से) व और जनता दल यू का धारा 370 , सामान नागरिक संहिता के प्रति समान विचार है तो भाजपा के खिलाफ हम दोनों को एक मंच पर आने में कोई एतराज नहीं। यह मिलना किस दूर तक साथ जाएगा वह तो समय ही बतायेगा लेकिन भाजपा व राजद के विरुद्ध कोई गठबंधन की राजनीति शुरू हुई तो हम से भी एक माइल स्टोन होगा। जाहिर है राजनीतिक हलकों में जिस तरह के वाकयात सामने आ रहे हैं वहां यह माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव आते-आते गठबंधन का स्वरूप बदल जाए तो यह अतिश्योक्ति नहीं। राज्य की राजनीति की नई गोलवंदी के दायरे में दलों की स्थिति भर है।
राज्यसभा चुनाव में एनडीए को 8 सीटों का नुकसान, यूपीए को 3 सीटों पर होगा फायदा!
राज्यसभा की 59 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, जिसमें से 57 सीट पर 10 जून को और दो सीटों...