अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं सोमवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को सर्वार्थ सिद्धि योग व सोमवती अमावस्या के सुयोग में वट सावित्री का व्रत करेंगी। यह व्रत कई दुर्लभ संयोगों के बीच मनेगा। ज्येष्ठ अमावस्या को सोमवार का दिन होने से सोमवती अमावस्या का भी पुण्य संयोग बन रहा है। वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया है। मान्यता है कि इसमें ब्रrा, शिव, विष्णु एवं स्वयं सावित्री विराजमान रहती हैं। इस वृक्ष के जड़ में पूजा करने से सर्व मनोकामना की पूर्ति एवं बच्चों की निरोग काया व विकास का वरदान मिलता है। कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि आज वट सावित्री का व्रत चार दुर्लभ तथा पुण्यफल देने वाला संयोग बना है। पहला आज सोमवती अमावस्या, दूसरा संयोग सर्वार्थ सिद्धि योग, तीसरा संयोग अमृत सिद्धि और चौथा संयोग त्रिग्रही योग का अति दुर्लभ संयोग बन रहा है। आज ही के दिन सूर्यपुत्र शनि की शनि जयंती भी पड़ रही है। आज के दिन बरगद व पीपल की पूजा करने से शनि, मंगल और राहू के अशुभ प्रभाव से छुटकारा मिलेगा। मिलेगा अखंड सुहाग का वरदान पंडित झा ने ब्रrावैवर्त्तपुराण तथा स्कंद पुराण के हवाले से बताया कि आज वट सावित्री का व्रत और श्रद्धा, भक्ति व निष्ठा से वट वृक्ष की पूजा व परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख-शांति तथा वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं। उन्होंने कहा कि आज के दिन गंगा या तीर्थ में स्नान करने से सहस्त्र गौदान, कोटि सुवर्ण दान के बराबर फल मिलता है। वट की पूजा और परिक्रमा के बाद अन्न, तिल, ऋतुफल आदि का दान करने से समृद्धि तथा गृहस्थ आश्रम में शांति बनी रहती है।वट वृक्ष की पौराणिक मान्यता वट सावित्री के व्रत के दिन बरगद पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत में महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपनी पतिव्रता से पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। दूसरी कथा के अनुसार, मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे, तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है। वट वृक्ष रोग नाशक भी है। वट का दूध कई बीमारियों से रक्षा करता है।
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