चुनाव के पहले चरण में राज्य में वोटरों में अपेक्षित उत्साह की कमी ने सभी राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ा दी है. एनडीए और महागठबंधन दोनों के स्टार प्रचारकों की टीम लगातार चुनावी दौरा कर रही है. सभी दलों के प्रमुख नेता धुआंधार चुनाव सभाएं कर रहे हैं. चुनाव आयोग भी मतदान के लिए वोटरों को प्रेरित करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम कर रहा है. इसके बावजूद पहले चरण में बिहार के चार लोकसभा क्षेत्र में पड़े वोटों का प्रतिशत अपेक्षित नहीं रहा. हालांकि, 2014 के मुकाबले वोट प्रतिशत 2.27% बढ़ा है. लेकिन, अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में वोट प्रतिशत काफी कम रहा. पहले चरण में पूरे देश में सबसे कम वोट प्रतिशत बिहार का ही रहा. खास बात है कि कश्मीर जैसे राज्य में भी यहां से वोट देने वालो का प्रतिशत अधिक रहा.
पहले चरण में बिहार में जिन चार सीटों पर मतदान हुआ, उनमें सिर्फ जमुई व गया में ही वोट प्रतिशत में कुछ वृद्धि हुई. इन सीटों पर 2014 की तुलना में क्रमश: 5.19% और 3.48% वोट प्रतिशत बढ़ा, जबकि नवादा और औरंगाबाद में वोट का प्रतिशत लगभग पिछली बार की तरह ही रहा. इसे मतदाताओं की चुप्पी का परिचायक माना जा रहा. राजनीतिक दल इसकी अपने हिसाब से व्याख्या कर रहा है. एक दल का कहना है, गांवों में पलायन इसका प्रमुख कारण है. वहीं, दूसरे दल का तर्क है कि चैती छठ होने के चलते भी मतदाता वोट के ज्यादा उत्साहित नहीं रहे.
वोटरों तक पहुंचने के लिए सबसे अधिक मशक्कत भाजपा कर रही है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार में पहले चरण के मतदान तक तीन सभाएं हो चुकी हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी तीन चुनाव सभाओं को संबोधित किया है.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 40 से ज्यादा सभाएं हो चुकी हैं. डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी की रोजाना तीन से चार सभाएं हो रही है और वह अब तक 50 से ज्यादा सभाएं कर चुके हैं. उनकी कई स्थानों पर रोड शो भी हो चुके हैं. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान भी करीब एक दर्जन सभाएं हुई हैं. इसके अलावा भाजपा के स्टार प्रचारकों में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की पांच-छह सभाओं के अलावा बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव की एक दर्जन से ज्यादा, प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय की 40 से ज्यादा, पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, कृषि मंत्री प्रेम कुमार समेत भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं की दर्जन भर से ज्यादा सभाएं हो चुकी हैं.भाजपा की तरफ से तैयार 42 स्टार प्रचारकों की सूची में पहले चरण के चुनाव तक दो दर्जन से ज्यादा नेताओं का दौरा हो चुका है. अन्य पार्टियों के अधिकतर स्टार प्रचारकों का दौरा हो चुका है. फिर भी वोटरों का रुझान नहीं बढ़ रहा है.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की भी 30 से ज्यादा सभाएं हो चुकी हैं. जितनी तेज रफ्तार से प्रचार-प्रसार हो रहा है, उस रफ्तार से वोटर बूथ तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. पहले चरण के चुनाव में महज 53 फीसदी वोट ही पड़े, जो अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. नेताओं और स्टार प्रचारकों की लगातार हो रही धुआंधार रैलियां और इनमें उमड़ने वाले आम लोग अधिक संख्या में बूथों तक खींचे नहीं आ रहे हैं.
अलग-अलग कारण गिनाये
सभी पार्टियों के शीर्ष नेताओं का इस मसले पर एक समान प्रतिक्रिया है. उनका कहना है कि पहले चरण के चुनाव के दिन चैती छठ पर्व के साथ नवरात्र होने की वजह से अधिक संख्या में वोटर खासकर महिलाएं वोट नहीं दे पायीं. कुछ यह भी कहते हैं कि इस बार किसी की ‘लहर’नहीं होने के कारण भी वोटर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. ऑफ द रिकॉर्ड पार्टी के कुछ प्रमुख नेता कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों से पलायन होना भी बड़ा कारण है.कई प्रखंडों में सूखा पड़ने से भी इस बार पलायन ज्यादा हुआ है.
बहरहाल इसका सटीक कारण कोई नहीं बता पा रहे हैं, लेकिन यह तय है कि नेताओं की धुआंधार जनसभाएं लोगों के बड़े हुजूम को बूथों तक पहुंचाने में अब तक उतने सक्षम साबित नहीं हो रहे हैं. अन्य राज्यों में वोटिंग का प्रतिशत बिहार से ज्यादा होना इसका सबसे बड़ा परिचायक है.
बिहार में पहले चरण की चार सीटों पर वोट प्रतिशत 2014 के संसदीय चुनाव की तुलना में बेशक ज्यादा रहा, पर उत्साहजनक नहीं. चुनाव आयोग समेत अनेक संगठनों और ख्यातिलब्ध लोगों ने मताधिकार का प्रयोग करने की अपील की है. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि पहले चरण की वोटिंग पर इसका असर दिखेगा. पर ऐसा हो न सका. हम मानते हैं कि जीवंत और गतिशील लोकशाही तभी कारगर होगी, जब हरेक वोटर की इसमें सहभागिता होगी. राज्य की 40 सीटों पर सात चरणों में चुनाव होनेवाले हैं. पहला चरण निकल गया. अब छह चरणों में 36 संसदीय सीटों पर चुनाव होने हैं.