प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बिहार के बीस (20) लोकसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारेगी। पार्टी ने उम्मीदवारों का पैनल तैयार कर लिया है, जिनकी स्क्रीनिंग राज्य की उच्चस्तरीय समिति कर रही है। अलग-अलग क्षेत्रों में समीकरणों को ध्यान में रखकर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा शीघ्र कर दी जाएगी। एनडीए और यूपीए के बाद बिहार में लोक सभा चुनाव में हिस्सा लेने वाला सबसे बड़ा दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) ही होगा। पार्टी सभी वगरे को उचित प्रतिनिधित्व का मौका देगी।पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक सिद्धनाथ राय ने बताया कि पार्टी आरा, औरंगाबाद, गया, बेगूसराय, बक्सर, दरभंगा, हाजीपुर, जहानाबाद, काराकाट, महाराजगंज, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, नवादा, पाटलिपुत्र, पूर्वी चम्पारण, सासाराम, शिवहर, सीवान, उजियारपुर और वैशाली से चुनाव लड़ेगी। प्रदेश अध्यक्ष श्री राय ने कहा कि चुनाव के महीने में उद्घाटन एवं शिलान्यास कर देश की जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं। संवाददाता सम्मेलन में बिहार प्रभारी राजेश कुमार सिंह, अशोक कुमार शर्मा, किरण देवी, अरविंद कुमार, रवीन्द्र कुमार, अमित कुमार और सुरेश प्रसाद सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।
एसयूसीआई (सी) आठ सीटों पर लड़ेगा चुनाव
सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) (एसयूसीआई) ने देश में 119 और बिहार की आठ सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया किया है। यह जानकारी संगठन के राज्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने बुधवार को बयान जारी कर दी। उन्होंने कहा कि पार्टी ने मुजफ्फरपुर से मो. इदरीश, वैशाली से नरेश राम, हाजीपुर (सु.) से जीवछ राम, भागलपुर से दीपक कुमार, मुंगेर से ज्योति कुमार, पटना साहिब से अनामिका, जहानाबाद से उमाशंकर वर्मा और जमुई (सु.) से पंकज कुमार दास को चुनाव मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस कभी भी धर्मनिरपेक्षया लोकतांत्रिक नहीं थी। यह खेद की बात है कि उसी कांग्रेस को अब सीपीआई (एम) और सीपीआई संसद में कुछ सीटें हासिल करने के लिए धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक के रूप में पेश कर रही है। इससे पहले सीपीएम से विशुद्ध रूप से तुच्छ चुनावी स्वार्थ के लिए कांग्रेस की निरंकुशता का विरोध करने की आड़ में 1977 में आरएसएस-जनसंघ को लेकर बनी जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाया था। इसके बाद सीपीएम वीपी सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए अभिषेक करने में भाजपा के साथ मिल गयी थी और अब सीपीएम भाजपा की सांप्रदायिकता के विरोध के नाम पर कांग्रेस से मिल रही है।