कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद के मानसून सत्र में महाभियोग लाए जाने की तैयारी है. यह दावा सूत्रों ने किया है. जस्टिस यशवंत वर्मा कैशकांड में उस वक्त फंसे जब वह दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे और उनके घर आग लग गई. आग बुझाने पहुंचे दमकलकर्मियों के समूह को एक कमरे से काफी तादाद में रुपये मिले. यह घटना 14 मार्च को हुई थी.
इसके बाद काफी आरोप-प्रत्यारोप के बाद उन्हें उनके पैरेंट कोर्ट- इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट आने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय को यह निर्देश दिया कि यशवंत वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न दिया जाए.
क्यों लगेगा हाईकोर्ट पर ‘दाग’?
बाद में जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच के लिए मार्च-अप्रैल 2025 के दौरान एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई गई जिसमें उनके खिलाफ लगे आरोप सही पाए गए. भारत के पूर्व प्रमुख न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई में तीन न्यायाधीशों की समिति गठित बनी जिसने 45 मिनट तक घर का निरीक्षण करके दिल्ली पुलिस व फायर ब्रिगेड से मिली जानकारी जुटाई.
फिर उपरोक्त फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने मई 2025 में अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेज दी. कमेटी की रिपोर्ट के 2 हफ्तों बाद यह सूचना आई कि केंद्र सरकार यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू कर सकती है.
अगर महाभियोग से हटाए गए वर्मा तब!
अब अगर जस्टिस वर्मा, महाभियोग के जरिये अपने पद से हटाए गए तो इलाहाबाद हाईकोर्ट के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब यहां के किसी न्यायाधीश को इस तरह से पदच्युत किया जाएगा. सन्, 1948 में स्थापित इलाहाबाद हाईकोर्ट में नियुक्त कोई भी न्यायाधीश, आज तक ऐसी प्रक्रिया से नहीं गुजरा है. अगर वर्मा महाभियोग के रास्ते पद से हटे तो हाईकोर्ट के इतिहास में यह ‘दाग’ पहली बार लगेगा.
हालांकि जस्टिस यशवंत वर्मा की ओर से कहा गया कि उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप निराधार हैं. खुद के घर में बरामद कैश को उन्होंने साजिश करार दिया.
जस्टिस शेखर यादव भी आए थे चर्चा में
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही जस्टिस शेखर यादव पर कथित तौर पर विवादित बयान देने के आरोप लगे थे और उन्हें भी हटाने की मांग की गई थी. हालांकि उन पर कार्रवाई की शुरुआत नहीं हुई.55 राज्यसभा सांसदों ने महाभियोग के कार्रवाई संबंधी दस्तावेज पेश किए थे लेकिन सभापति जगदीप धनखड़ ने तब कहा था कि इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दीजिए. उन्होंने कहा था कि ये अधिकार राज्यसभा के सभापति और राष्ट्रपति के पास हैं. इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट के साथ भी साझा की जाए.
अभी तक किन न्यायाधीशों के खिलाफ मांग महाभियोग की हुई?
अभी तक देश में पांच न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू हुई या मांग की गई. सबसे पहले वर्ष 1993 में वी. रामास्वामी जे के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया, दो तिहाई बहुमत न मिलने की वजह से प्रस्ताव गिर गया. फिर वर्ष 2011 में सौमित्र सेन जे के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया कि जो कि पास हो गया था. इसी तरह वर्ष 2015 में राज्यसभा के 58 सदस्यों ने जस्टिस जेबी पादरीवाला के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया था.
इसी वर्ष में राज्यसभा के 50 सदस्यों ने जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव पर दस्तखत किए थे.फिर वर्ष 2017 में राज्यसभा सांसदों ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी जे के खिलाफ प्रस्ताव दिया था.
साल 2018 में भी विपक्षी दलों ने एक मसौदे पर दस्तखत किए थे जिसमें तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई की मांग की गई थी.