इंटरनेशन डिप्लोमेसी में कहा जाता है कि न आपका कोई दोस्त है और न ही दुश्मन, बस आपके हित महत्वपूर्ण होते हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने यह साबित कर दिया है. सीरिया जो कभी अमेरिका के लिए कट्टर दुश्मन था, ट्रंप आज के समय उसी पर मेहरबान हैं. ट्रंप ने सीरिया पर लगाए प्रतिबंधों को हटा दिया है. इसके अलावा सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल शरा से मुलाकात की है, जो 14 साल के गृहयुद्ध और दशकों की कूटनीति में बड़ा बदलाव दिखाता है. इस सब के पीछे का लक्ष्य है कि अमेरिका मिडिल ईस्ट में अपने सबसे बड़े दुश्मन ईरान पर फोकस करना चाहता है. ऐसा ही अब कुछ भारत कर रहा है. भारत तालिबान के साथ संबंधों को बढ़ा रहा है. भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने गुरुवार को तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से फोन पर बात की, जो भारत की ओर से तालिबान प्रशासन के साथ पहली मंत्रिस्तरीय बातचीत है.
भारत की तालिबान के साथ बातचीत का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि नई दिल्ली ने अभी तक तालिबान प्रशासन को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है. डॉ. जयशंकर और मुत्तकी की बातचीत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की तालिबान की ओर से निंदा के बाद हुई. इस हमले को पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादियों ने अंजाम दिया था. तालिबान ने पाकिस्तानी मीडिया में भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने की कोशिशों को खारिज किया, जिसे जयशंकर ने सराहा है. दरअसल ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी मीडिया ने दावा किया था कि भारतीय मिसाइल अफगानिस्तान में भी गिरी हैं. लेकिन बाद में तालिबान ने ही आगे आकर इससे इनकार कर दिया.
ईरान के चाबहार बंदरगाह, व्यापार, मानवीय सहायता और अफगान नागरिकों के लिए वीजा जैसे मुद्दे पर बातचीत हुई. चाबहार बंदरगाह का पर बात इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्ते पूरी तरह खत्म हो चुके हैं. अफगानिस्तान, तक अगर भारत को मदद पहुंचानी हो तो वह पाकिस्तान के रास्ते होकर जाती थी. ऐसे में ईरान का चाबहार बंदरगाह अब भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार का वैकल्पिक रास्ता बन सकता है. यह कदम न केवल आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देगा, बल्कि पाकिस्तान के प्रभाव को कम करने में भी मदद करेगा.
अमेरिका-सीरिया में नई शुरुआत
दूसरी ओर, ट्रंप का सीरिया से प्रतिबंध हटाने का फैसला एक ऐतिहासिक कदम है. सीरिया पर 1979 से अमेरिकी प्रतिबंध थे, जो 2003 में सीरिया एकाउंटेबिलिटी एक्ट और 2019 में सीजर एक्ट के जरिए और सख्त हो गए थे. ये प्रतिबंध सीरिया के आतंकवाद समर्थन, हिजबुल्लाह और ईरान से नजदीकी, और गृहयुद्ध में क्रूरता के कारण लगाए गए थे. इन प्रतिबंधों ने सीरिया की अर्थव्यवस्था को चरमरा दिया, जिससे ईंधन, दवाइयों और बुनियादी वस्तुओं की कमी हो गई.
ट्रंप ने प्रतिबंध हटाने का फैसला तब लिया है, जब बशर असद को सत्ता से हटा दिया गया. ट्रंप ने सीरियाई राष्ट्रपति अहमद अल शरा से मुलाकात की और प्रतिबंध हटाने की घोषणा की, जिसके बाद सीरियाई मुद्रा में 60% की उछाल आई. यह कदम न केवल आर्थिक राहत दे सकता है, बल्कि सीरिया को मुख्यधारा में फिर से शामिल होने का मौका भी देता है.
भारत-अमेरिका की एक जैसी चाल!
भारत की तालिबान से बातचीत और अमेरिका की सीरिया नीति में एक समानता नजर आती है. दोनों देश अपने रणनीतिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं, भले ही इसके लिए पुराने विरोधियों से हाथ मिलाना पड़े. अमेरिका ने जिस शरा को पहले आतंकवादी माना था, उसे अब समर्थन दे रहा है, क्योंकि वह रूस और ईरान के प्रभाव को कम करना चाहता है. इसी तरह, भारत तालिबान से बात कर रहा है, ताकि पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित किया जा सके और अफगानिस्तान में अपने हितों को सुरक्षित रखा जाए.
भारत के लिए तालिबान से बातचीत रणनीतिक रूप से जरूरी है. अफगानिस्तान में पाकिस्तान का दखल कम हो और स्थिरता भारत के लिए महत्वपूर्ण है. अस्थिरता से आतंकवाद और ड्रग्स की तस्करी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं, जो भारत की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं. ट्रंप की सीरिया नीति और भारत की तालिबान से बातचीत यह दिखाती है कि दुनिया की कूटनीति में सिद्धांतों से ज्यादा हितों का बोलबाला है.