महज 4 साल में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने अपने फैसले को पलट दिया है। पहले जाति जनगणना नहीं कराने पर अड़ी सरकार ने अब कराने का ऐलान किया है।
हालांकि, जनगणना की प्रोसेस पूरी होने में एक साल लगेगा। ऐसे में जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे। देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इसे हर 10 साल में किया जाता है।
ऐसे में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या बिहार चुनाव में माइलेज लेने के लिए मोदी सरकार ने ये फैसला लिया है? क्या विपक्ष को मुद्दा विहीन करने की ये एक प्लानिंग है? दैनिक भास्कर की स्पेशल रिपोर्ट में इसे 4 सवालों के जरिए समझिए और पढ़िए…
1. बिहार चुनाव पर इसका क्या असर होगा?
बिहार विधानसभा चुनाव में 5 महीने बाकी है। बड़ी विपक्षी पार्टियां RJD-कांग्रेस जाति जनगणना को बड़ा मुद्दा बना रही थी। भाजपा पर आरक्षण विरोधी का तमगा लगता रहा है, लेकिन इस दांव से उसने इसको उलटने का प्रयास किया है।
साथ ही विपक्ष के सबसे बड़े मुद्दे को खत्म करने का प्रयास किया है। सीनियर जर्नलिस्ट अरविंद मोहन कहते हैं, ‘बिहार चुनाव एक बड़ा इश्यूज है। इससे बीजेपी को बिहार चुनाव में नफा ही होगा। एक दाव से उसने बड़े विपक्षी एजेंडे को समाप्त कर दिया। अब उन्हें दूसरा मुद्दा ढूढ़ना पड़ेगा। अब वे बस क्लेम कर सकते हैं कि हमने मुद्दा उठाया।’
सीनियर जर्नलिस्ट आदेश रावल कहते हैं, ‘BJP अब धर्म से हटकर जाति की पिच पर खेलना चाहती है। इसका असर बिहार विधानसभा चुनाव पर भी देखने को मिलेगा।’
राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा से ही जाति जनगणना कराने की मांग कर रहे थे। सरकार के इस फैसले से जीत तो कांग्रेस की ही मानी जाएगी। वो तो इस बात का क्लेम करेंगे कि हमने जाति जनगणना कराई। अब तो जनता तय करेगी किनके कारण हुआ।
वहीं, पॉलिटिकल एनालिस्ट अरुण पांडेय कहते हैं, ‘ऐसी योजनाओं का लाभ उसे ही मिलता है, जो इसकी घोषणा करता है। मंडल कमीशन का गठन कांग्रेस ने किया, लेकिन इसका लाभ वीपी सिंह को मिला। क्योंकि लागू उन्होंने ही कराया था।’
2. जाति जनगणना की मांग करने वाले विपक्ष के पास आगे क्या ऑप्शन?
जनवरी से अब तक बिहार दौरे पर 3 बार आए कांग्रेस नेता राहुल गांधी जाति जनगणना के वादे करते रहे हैं। उन्होंने तो बिहार के जातीय सर्वे को फेक करार भी दिया था। उनकी एक मांग ये भी है कि जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसको उतनी भागीदारी।
केवल राहुल गांधी ही नहीं बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी इसे पुरजोर तरीके से उठाते रहे हैं।
विपक्ष के पास अगला ऑप्शन क्या है? पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई कहते हैं, ‘विपक्ष केवल जनगणना तक सीमित नहीं है। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव की मांग है कि जिसकी जितनी संख्या है, उसकी उतनी भागीदारी हो।’
जनगणना के बाद सरकार के सामने अगली चुनौती ये आने वाली है कि क्या जो 50 पर्सेट का कैप है, वो टूटेगा। इसे ऐसे मान लीजिए कि देश में पिछड़ों की आबादी 65 प्रतिशत है तो क्या इसका कैप बढ़ाया जाएगा। इस मापदंड पर करेंगे तो सवर्ण के बीच उनमें रोष उठेगा। मेरिट का मामला उठेगा। मुझे नहीं लगता है कि केंद्र भागीदारी के सवाल पर मानेगा।
3. बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को क्या नफा-नुकसान होगा ?
बीजेपी को लाभ- बिहार में भाजपा का आधार वोट सवर्ण और बनिया को माना जाता है। नीतीश कुमार जैसे सहयोगी उसके पास हैं, जो अतिपिछड़ा वोटबैंक को साधते हैं। जाति जनगणना का सबसे ज्यादा लाभ अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) को हो सकता है।
EBC में भाजपा ने हाल के दिनों में अपनी पैठ बनाया है। पॉलिटिकल एनालिस्ट अरविंद मोहन कहते हैं, ‘इस फैसले से पिछड़े और EBC में भाजपा के प्रति विश्वास बढ़ेगा। इसका फायदा चुनाव में दिख सकता है। क्योंकि ये जातियां लालू यादव से छिटकने के बाद अब तक नहीं जुड़ पाई हैं।’
अरुण पांडेय कहते हैं, ’BJP पर इस बात का आरोप लगाया जा रहा था कि वो सवर्ण को साधने के लिए पिछड़ों को इग्नोर कर रही है। जबकि, BJP सवर्ण-पिछड़ों की राजनीति करती रही है। मौजूदा समय में भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रूप में BJP की लीडरशीप पिछड़े के हाथ में ही है।’
BJP को नुकसान- पॉलिटिकल एनालिस्ट राशिद किदवई कहते हैं, ‘इस फैसले के बाद अब BJP के ऊपर आरक्षण की जो सीमा 50 फीसदी निर्धारित की गई है, उसे हटाने का दबाव बढ़ेगा। आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देनी होगी। ऐसे में सवर्ण जो मौजूदा समय में BJP के साथ हैं, वे BJP का विरोध कर सकते हैं। यही कारण है कि BJP कभी भी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी की बात नहीं करती है।’
4. बिहार में जाति आधारित सर्वे हुआ था। इसका किसे फायदा-नुकसान हुआ था?
अरुण कुमार पांडेय कहते हैं, ‘बिहार में जातीय सर्वे कराना का क्रेडिट नीतीश कुमार को जाता है। उनके कार्यकाल में ही सर्वे हुआ। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में इसका फायदा भी उन्होंने उठाया।
लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी JDU को 18.9 फीसदी वोट मिला। पार्टी का स्ट्राइक रेट भी बेहतर रहा। 16 में से 12 कैंडिडेट चुनाव जीतने में सफल रहे थे।’
लोकसभा के ट्रेंड को अगर विधानसभा में कन्वर्ट करें तो 15 साल बाद JDU एक बार फिर से बिहार विधानसभा में सबसे ताकतवर पार्टी के रूप में उभर सकती है। 243 विधानसभा सीटों में से 74 सीटों पर JDU आगे थी।
अरुण पांडेय कहते हैं, ‘केंद्र के जातीय जनगणना के पूरा होने में अभी दो साल लगेंगे। इसी के आधार पर लोकसभा और विधानसभा का परिसीमन होना है। महिला का आरक्षण तय होना है। इसी के आधार पर 2029 का चुनाव होना है। ऐसे में बीजेपी और NDA सरकार को इसका लाभ होना तय माना जा रहा है।’
विपक्ष को मुद्दा विहीन बना दिया
एक्सपर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार ने विपक्ष के इस मुद्दे को चुनाव से ही खत्म कर दिया। बिहार जैसे राज्य में जहां जाति काफी मायने रखती है, वहां अब विपक्ष को नया मुद्दा तलाशना होगा। हालांकि, चुनाव में अभी काफी वक्त है, कभी भी कुछ भी हो सकता है।
लालू ने कहा-संघियों को अपने एजेंडे पर नचाता रहूंगा: बिहार चुनाव से पहले जाति जनगणना कराने का केन्द्र का फैसला, जदयू बोली- नीतीश को मिले क्रेडिट
बिहार चुनाव से पहले केन्द्र सरकार ने देश में जाति जनगणना कराने का फैसला किया है। बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि ‘जाति जनगणना, मूल जनगणना में ही शामिल होगी।’ पूरी खबर पढ़िए