अब यह साफ हो गया है कि बिहार विधानसभा चुनाव समय पर ही होगा. सरकार की ओर से इस बारे में सफाई भी आ चुकी है. दरअसल कुछ मीडिया प्लेटफॉर्म पर खबरें चल रही थीं कि सितंबर में विधानसभा चुनाव की प्रबल संभावना है. इतना ही नहीं, जानकारी यह भी दी गई थी कि तीन चरणों में चुनाव कराने की तैयारी है. सरकारी विज्ञप्ति में इस खबर को भ्रामक बताया गया है. बहरहाल, चुनावी तैयारियां हर दल और गठबंधन ने शुरू कर दी है.
बढ़ रही चुनावी सरगर्मी
सियासी बैठकें होने लगी हैं. बड़े नेताओं के दौरे आरंभ हो गए हैं. राहुल गांधी तीन महीने में तीन बार पटना आए. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी रविवार को बक्सर में थे. पीएम नरेंद्र मोदी की हाल के महीनों में तीसरी यात्रा गुरुवार को हो रही है. अब तो सरकार बनाने के लिए जनादेश मिल जाने के दावे भी किए जाने लगे हैं. महागठबंधन में आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव तो स्वयंभू सीएम हो गए हैं. सिर्फ तेजस्वी ही नहीं, डेप्युटी सीएम के स्वयंभू फेस तो वीआईपी के मुकेश सहनी भी हैं. एनडीए में जेडीयू के नीतीश कुमार तो स्थायी भाव के सीएम हैं. भाजपा के सम्राट चौधरी को भी सीएम की कुर्सी पर नीतीश कुमार से 2 प्रतिशत ही कम यानी 13 प्रतिशत लोग देखना चाहते हैं. सी वोटर के ताजा सर्वेक्षण में नीतीश कुमार को 15 और सम्राट चौधरी को 13 प्रतिशत लोगों ने अपना पसंदीदा माना है. खैर, इतना तो तय है कि सरकार बनाने के जादुई आंकड़े तक पहुंचना आसान नहीं है. इसलिए कि इस बार मुख्य लड़ाई भले एनडीए और महागठबंधन की 12 पार्टियों के बीच है, पर कम से कम 5 और ऐसी पार्टियां मैदान में होंगी, जिनमें सिर्फ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का ही एक एमएलए है. बाकी 4 का जन्म तो साल भर के अंदर ही हुआ है.
महागठबंधन में 7 दल
महागठबंधन में पहले से ही 5 पार्टियां थीं. आरजेडी के अलावा कांग्रेस और तीन वामपंथी दल 2020 के विधानसभा चुनाव में साथ थे. महागठबंधन ने अपने पहले वाले कुनबे का विस्तार कर इसमें 2 अन्य पार्टियों को शामिल किया है. इनमें एक मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी (VIP) है तो दूसरी पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) है. दोनों दल पिछली बार यानी 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ थे. फिलवक्त विधानसभा में दोनों में से किसी के सदस्य नहीं हैं. मुकेश सहनी के चार विधायक जीते भी थे तो बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए. मुकेश सहनी खुद अब तक कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं. हालांकि एनडीए ने साथ रहते सहनी को दो साल के लिए विधान परिषद का सदस्य बना कर मंत्री पद भी दे दिया था. पशुपति पारस और चिराग पासवान की तब एक ही पार्टी लोजपा थी. बाद में चाचा-भतीजा में पार्टी बंट गई. भतीजा की पार्टी लोजपा-आर ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा, जबकि पारस एनडीए में ही बने रहे. मोदी सरकार-2 में पारस को केंद्रीय मंत्री बनने का भी मौका मिला था.
एनडीए में हैं 5 पार्टियां
वर्ष 2020 के चुनाव में एनडीए में जेडीयू, भाजपा के अलावा मुकेश सहनी की वीआईपी और जीतन राम मांझी की पार्टी हम (से) शामिल थे. इस बार एनडीए का कुनबा भी बढ़ा है. भाजपा, जेडीयू और हम (से) के अलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम और चिराग पासवान की पार्टी लोजपा-आर एनडीए में हैं. लोजपा-आर और आरएलएम का भी कोई सदस्य विधानसभा में नहीं है. यानी महागठबंधन घटक दलों की संख्या के मामले में एनडीए से आगे है. खास बात यही है कि दोनों गठबंधनों में दो-दो दल ऐसे हैं, जिनका कोई विधायक नहीं है. खैर, माना जा रहा है कि मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच ही इस बार होना है. एनडीए को अपनी सत्ता बचाने की चुनौती है तो महागठबंधन को सत्ता झटकने की.
5 अन्य बिगाड़ेंगे खेल!
महागठबंधन और एनडीए के बीच चुनावी मुकाबला मानने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि मैदान में 5 अन्य खिलाड़ी भी होंगे, जिनको नजरअंदाज करना खतरे से खाली नहीं. इन 5 दलों में 4 का जन्म तो साल भर के अंदर ही हुआ है. असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के अलावा जेडीयू-भाजपा से अलग होकर बनी आरसीपी सिंह की पार्टी आप सबकी आवाज, प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज, भारतीय पुलिस सेवा से स्वैच्छिक अवकाश लेकर शिवदीप लांडे की बनाई हिन्द सेना और पान समाज के आईपी गुप्ता की भारतीय इंकलाब पार्टी एनडीए और महागठबंधन की राह में अवरोध पैदा कर सकती हैं. इनमें 2 की ताकत तो लोग देख भी चुके हैं.

नई नवेली पार्टियो में प्रशांत किशोर की चर्चा सबसे ज्यादा है.
सीमांचल में ओवैसी की पार्टी के 5 विधायक पिछली बार जीते थे. हालांकि इनमें 4 ने बाद में आरजेडी की सदस्यता ले ली. विधानसभा उपचुनाव में गोपलगंज की सीट पर आरजेडी की जीत को विफल करने में ओवैसी की पार्टी की भूमिका रही. विधानसभा और विधान परिषद के उपचुनाव में जन सुराज को 10 फीसद वोट मिले थे. अगर यही रफ्तार रही तो प्रशांत किशोर कम से कम 10 फीसद वोट तो काटेंगे ही. वैसे भी प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार से अधिक लोग सीएम के रूप में पसंद मानने लगे हैं. सीएम के रूप में प्रशांत 17 प्रतिशत लोगों की पसंद हैं, जो नीतीश कुमार से दो प्रतिशत अधिक है. प्रशांत किशोर, शिवदीप लांडे और आरसीपी सिंह भी कुछ वोट की चोट पहुंचा सकते हैं. दोनों गठबंधनों के लिए सर्वाधक सिरदर्द आईपी गुप्ता साबित हो सकते हैं, जिनकी पिछले दिनों पटना के गांधी मैदान की रैली में पान समाज की भीड़ ने सबको चौंका दिया था. आईपी गुप्ता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और बीते कई साल से वे कांग्रेस के साथ थे.
CM पद के कई दावेदार
बहरहाल, इस बार चुनावी जंग की रोचकता इसलिए भी बढ़ेगी, क्योंकि महागठबंधन में तेजस्वी यादव, एनडीए में नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी तो प्रत्यक्ष दावेदार दिखते हैं, चिराग पासवान का मन भी बिहार की राजनीति करने के लिए ललचा रहा है. यानी उनकी निगाह भी सीएम की कुर्सी पर है. प्रशांत किशोर भी सीएम बन कर बिहार में क्रांतिकारी बदलाव के दावे करते रहे हैं. बाकी किसी ने सीएम बनने की इच्छा तो जाहिर नहीं की है, लेकिन वे दूसरे दावेदारों की राह में रोड़ा तो जरूर अटकाएंगे.