बजट का सीजन आते ही हर साल आम आदमी से लेकर बड़े उद्योगपतियों तक की उम्मीदें आसमान छूने लगती हैं. खासकर, देश के मिडिल क्लास की नजरें हमेशा इस पर टिकी रहती हैं. महंगाई और टैक्स के बोझ से दबे मिडिल क्लास को बजट से कुछ राहत की उम्मीद होती है. लेकिन क्या इस बार बजट में उन्हें कुछ खास मिलेगा? क्या सरकार उनकी चिंताओं को समझेगी और उनकी परेशानियों को कम करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाएगी?
यह सवाल इस बार ज्यादा अहम हो गया है, क्योंकि आम बजट ऐसे समय में पेश किया जा रहा है जब देश कमजोर आर्थिक वृद्धि, गिरते रुपये और वैश्विक अनिश्चितताओं से जूझ रहा है. ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि महंगाई और टैक्स के बीच पिस रहे मिडिल क्लास को बजट 2025 से क्या उम्मीदें हैं?
कब पेश होगा बजट
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को केंद्रीय बजट 2025 पेश करेंगी. यह वित्त मंत्री के तौर पर सीतारमण का 8वां बजट होगा. इस बजट पर कर दाता से लेकर किसान, महिलाएं, इंडस्ट्री सभी की नजरें टिकी हुई हैं. 2 दिन बाद पेश होने वाले बजट में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की जा सकती हैं. उम्मीद की जा रही है कि इस बार इनकम टैक्स में छूट की सीमा भी बढ़ाई जा सकती है. वहीं कई इंडस्ट्री को ज्यादा बजट आवंटित कर उन्हें बूस्ट दिया जा सकता है. इसके अलावा सरकार कई नई योजनाएं भी शुरू करने की घोषणा कर सकती है.
महंगाई, मिडिल क्लास के लिए सबसे बड़ी चिंता
महंगाई आज मिडिल क्लास के लिए सबसे बड़ी परेशानी बन चुकी है. पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने की चीजों तक, हर चीज की कीमतें आसमान छू रही हैं. पिछले कुछ सालों में खाद्य पदार्थों, तेल, गैस, और अन्य जरूरी सामानों की कीमतों में जो भारी वृद्धि हुई है, उसने मिडिल क्लास की जेब को बुरी तरह से प्रभावित किया है. और यह महंगाई सिर्फ एक बार की नहीं है, बल्कि लगातार बढ़ती जा रही है.
महंगाई की मार ने मिडिल क्लास के जीवन स्तर को भी प्रभावित किया है. जहां पहले लोग थोड़ा-बहुत बचत कर लेते थे, वहीं अब बहुत से परिवार अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में ही मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. वेतन में जितना भी इजाफा हुआ है, वह महंगाई के मुकाबले बहुत कम है, जिससे आम आदमी की जीवनशैली में गिरावट आई है.
बजट 2025 से मिडिल क्लास की उम्मीदें
– इनकम टैक्स में राहत: मिडिल क्लास के लिए सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि सरकार इनकम टैक्स स्लैब में कुछ बदलाव करेगी और टैक्स छूट की सीमा बढ़ाएगी. अभी तक जो टैक्स स्लैब हैं, वे बहुत ही संकीर्ण हैं और मिडिल क्लास को इस पर राहत की बहुत जरूरत है. अगर सरकार इनकम टैक्स स्लैब को थोड़ा और बढ़ाती है या फिर टैक्स छूट की सीमा को बढ़ाती है, तो यह निश्चित रूप से मिडिल क्लास के लिए बड़ी राहत होगी.
– महंगाई से राहत: महंगाई को नियंत्रण में लाना मिडिल क्लास के लिए सबसे जरूरी है. सरकार से यह उम्मीद की जा रही है कि वह ऐसी नीतियां अपनाएगी जिससे खाद्य वस्तुओं, पेट्रोलियम उत्पादों और अन्य जरूरी सामानों की कीमतों में कमी आए. इसके लिए सरकार को बेहतर सप्लाई चेन की व्यवस्था करनी होगी, ताकि कीमतों में स्थिरता बनी रहे और मिडिल क्लास को रोजमर्रा की जरूरतों को खरीदने में परेशानी का सामना न करना पड़े.
– हाउसिंग और EMI पर राहत: मिडिल क्लास की एक और बड़ी चिंता है उनका घर और इसके लिए चुकाए जाने वाले ऋण की ईएमआई. घर की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, और इस पर मिलने वाले लोन पर ब्याज दरें भी उच्च बनी हुई हैं. मिडिल क्लास परिवारों को इस पर भारी बोझ उठाना पड़ रहा है. सरकार से इस बार यह उम्मीद की जा रही है कि वह हाउसिंग लोन पर ब्याज दरों में कुछ राहत दे सकती है, जिससे घर खरीदना उनके लिए आसान हो सके.
– स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सुधार: मिडिल क्लास के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा भी बहुत बड़ी चिंता है. महंगी मेडिकल ट्रीटमेंट्स और प्राइवेट स्कूलों की फीस ने उन्हें बहुत अधिक वित्तीय दबाव में डाल रखा है. सरकार से यह उम्मीद की जा रही है कि वह स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाएगी, जैसे कि मेडिकल और शिक्षा खर्चों पर टैक्स छूट का दायरा बढ़ाना या फिर सब्सिडी देना.
– नौकरी और रोजगार के अवसर: मिडिल क्लास के लिए रोजगार के अवसर भी बड़ी चिंता का विषय हैं. कोविड-19 के बाद से रोजगार के हालात में सुधार नहीं हुआ है, और नौकरी की स्थिति अभी भी अनिश्चित है. सरकार से यह अपेक्षाएं हैं कि वह रोजगार सृजन के लिए कुछ ठोस योजनाएं पेश करेगी. इसके अलावा, छोटे उद्योगों और MSME सेक्टर को बढ़ावा देने से मिडिल क्लास के लिए रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं.
– कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था: मिडिल क्लास के बहुत से सदस्य शहरी क्षेत्रों में रहने के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े होते हैं. कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उपायों से इन परिवारों को भी लाभ हो सकता है. इस बार बजट से यह उम्मीद है कि सरकार कृषि क्षेत्र में सुधारों की दिशा में कदम उठाएगी, जिससे किसानों की आय बढ़ेगी और ग्रामीण इलाकों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.
बुजुर्ग कल्याण को प्राथमिकता देने की मांग
बजट पेश होने से पहले एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘द एजवेल फाउंडेशन’ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक पत्र लिखकर बुजुर्गों के कल्याण को प्राथमिकता देने की मांग की है. इस सरकारी संगठन ने सीतारमण को लिखे पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला कि साल 2050 तक भारत के लगभग 32 करोड़ से ज्यादा लोग 60 वर्ष से अधिक आयु के हो जाएंगे जो कि देश की आबादी का 20 प्रतिशत है.
ऐसे में एनजीओ ने पत्र में सुझाव दिया है कि इस बजट में 60 साल और इससे ज्यादा उम्र के लोगों के लिए मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल नीतियों के तहत चिकित्सा परामर्श और रोग निदान परीक्षणों को शामिल किया जाना चाहिए.
केंद्रीय बजट से रियल एस्टेट सेक्टर की उम्मीदें
रियल एस्टेट सेक्टर के भी कई अलग अलग हिस्से सरकार से महत्वपूर्ण सुधारों की उम्मीद कर रहे हैं. रियल एस्टेट उद्योग की स्थिति में सुधार के लिए विशेषज्ञों और उद्योग नेताओं ने कई सुझाव दिए हैं.
1. होम लोन रिपेमेंट पर टैक्स डिडक्शन में वृद्धि- आजकल, होम लोन लेने पर आपको दो तरह के टैक्स डिडक्शन मिलते हैं. एक तो होम लोन की मूल राशि (प्रिंसिपल) पर जो सेक्शन 80C के तहत मिलता है, और दूसरा, लोन पर जो ब्याज चुकाते हैं, उसके लिए 2 लाख रुपये तक की डिडक्शन सेक्शन 24(b) से मिलती है. हालांकि, सेक्शन 80C में बहुत सारे और भी निवेश विकल्प हैं जैसे छोटे बचत स्कीम, बीमा पॉलिसी और पेंशन योजनाएं, जिससे बहुत से लोग अपनी होम लोन की पूरी मूल राशि पर टैक्स डिडक्शन नहीं ले पाते. इसी तरह, सेक्शन 24(b) में जो 2 लाख रुपये की सीमा है, वह भी कई बार अपर्याप्त होती है, खासकर जब लोन की शुरुआती किस्तें ज्यादा होती हैं.
इसलिए रियल एस्टेट सेक्टर की यह मांग है कि होम लोन पर टैक्स डिडक्शन के लिए एक अलग सेक्शन बनाया जाए, जिसमें प्रिंसिपल और ब्याज दोनों मिलाकर 5 लाख रुपये तक की डिडक्शन मिल सके. इससे उन लोगों को राहत मिलेगी, जो होम लोन चुकता कर रहे हैं और यह कदम होम बायर्स के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है. ऐसे में, यह बदलाव रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए सकारात्मक असर डाल सकता है और मांग को बढ़ावा मिल सकता है.
2. हाउस प्रॉपर्टी लॉस के सेट- आजकल अगर आपके पास कोई हाउस प्रॉपर्टी है और उससे आपको नुकसान होता है, तो आप उसे अपनी दूसरी आय (जैसे सैलरी या बिजनेस) से सेट-ऑफ कर सकते हैं, यानी नुकसान को अपनी आय में से घटा सकते हैं ताकि टैक्स कम हो सके. लेकिन अब यह सेट-ऑफ केवल 2 लाख रुपये तक ही किया जा सकता है. पहले यह सीमा ज्यादा थी, लेकिन 2017 में इसे 2 लाख रुपये तक सीमित कर दिया गया था. इसका मकसद था कि लोग दूसरी प्रॉपर्टी पर मिलने वाले ब्याज पर ज्यादा कटौती न करें.
समस्या यह है कि यह नियम सिर्फ व्यक्तिगत घरों तक ही नहीं, बल्कि कमर्शियल प्रॉपर्टीज (जो बिजनेस के लिए इस्तेमाल होती हैं) पर भी लागू हो रहा है. रियल एस्टेट सेक्टर में अक्सर बड़े नुकसान होते हैं, खासकर जब नए प्रॉपर्टीज बन रही होती हैं या किराए पर दी जाती हैं. इस स्थिति में, रियल एस्टेट उद्योग की मांग है कि यह 2 लाख रुपये की सीमा पूरी तरह से हटा दी जाए, या कम से कम इसे कमर्शियल प्रॉपर्टीज के लिए लागू न किया जाए. इस बदलाव से डेवलपर्स और रियल एस्टेट सेक्टर को काफी राहत मिल सकती है.
3. दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के लिए धारा 54, 54B, 54D और 54F में बदलाव- 2017 में वित्तीय वर्ष के लिए संपत्ति की होल्डिंग अवधि को 36 महीने से घटाकर 24 महीने कर दिया गया था, ताकि रियल एस्टेट सेक्टर को बढ़ावा मिल सके. लेकिन अभी भी कुछ धाराएं जैसे कि धारा 54, 54B, 54D और 54F में संपत्ति के लिए 3 साल की होल्डिंग अवधि की आवश्यकता होती है, ताकि पूंजीगत लाभ पर छूट मिल सके.
रियल एस्टेट सेक्टर के लिए यह जरूरी हो गया है कि इन धाराओं में संशोधन किया जाए और संपत्ति की होल्डिंग अवधि को 3 से घटाकर 2 साल कर दिया जाए, जैसा कि अन्य संपत्तियों के लिए किया गया है. इससे निवेशकों के लिए रियल एस्टेट में निवेश को और आकर्षक बनाया जा सकेगा.