वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज यानी 31 जनवरी को इकोनॉमिक सर्वे पेश किया। इसके अनुसार FY26 यानी, 1 अप्रैल 2025 से 31 मार्च 2026 में GDP ग्रोथ 6.3% से 6.8% रहने का अनुमान है। वहीं 2024-25 के लिए GST कलेक्शन 11% बढ़कर 10.62 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है।
इकोनॉमिक सर्वे बजट से एक दिन पहले पेश किया जाता है। इसमें सरकार इस वित्त वर्ष यानी 2024-25 में देश की GDP का अनुमान और महंगाई समेत कई जानकारियां होती है। ठीक हमारे घर की डायरी की तरह ही होता है इकोनॉमिक सर्वे। इससे पता चलता है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की हालत कैसी है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुमान के मुताबिक, कमजोर विनिर्माण और निवेश के कारण चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी 6.4 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो 4 साल का सबसे निचला स्तर है। यह पिछले साल के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमानित 6.5-7 प्रतिशत और भारतीय रिजर्व बैंक के 6.6 प्रतिशत के अनुमान से कम है। सर्वेक्षण के मुताबिक, जारी संघर्षों और तनावों के कारण भू-राजनीतिक जोखिम उच्च बने हुए हैं, जो वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण के लिए महत्वपूर्ण जोखिम पैदा कर रहे हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण कृषि और औद्योगिक उत्पादन, बुनियादी ढांचे, रोजगार, मुद्रा आपूर्ति, कीमतें, आयात, निर्यात और विदेशी मुद्रा भंडार आदि पर प्रकाश डालते हैं। साथ ही अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों और सरकार की राजकोषीय रणनीति पर उनके प्रभाव को दर्शाते हैं।
सबसे पहला आर्थिक सर्वेक्षण
पीटीआई के मुताबिक, पहला आर्थिक सर्वेक्षण 1950-51 में अस्तित्व में आया था, जब यह बजट दस्तावेजों का हिस्सा हुआ करता था। 1960 के दशक में इसे केंद्रीय बजट से अलग कर दिया गया था और बजट पेश होने से एक दिन पहले पेश किया गया था। वित्त मंत्री द्वारा 2025-26 का केंद्रीय बजट शनिवार को पेश किया जाएगा। सर्वेक्षण में अगले वित्त वर्ष के लिए दृष्टिकोण प्रदान करने के अलावा अर्थव्यवस्था और विभिन्न क्षेत्रों में विकास की रूपरेखा दी गई है। अक्सर सर्वेक्षण गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, शिक्षा, बुनियादी ढांचे के विकास और वित्तीय क्षेत्र से संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए नए और अनोखे विचार लेकर आते हैं।
इकोनॉमिक सर्वे क्या होता है? हम उस देश में रहते हैं, जहां मिडिल क्लास लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। हमारे यहां ज्यादातर घरों में एक डायरी बनाई जाती है। इस डायरी में पूरा हिसाब-किताब रखते हैं। साल खत्म होने के बाद जब हम देखते हैं तो पता चलता है कि हमारा घर कैसा चला? हमने कहां खर्च किया? कितना कमाया? कितना बचाया? इसके आधार पर फिर हम तय करते हैं कि हमें आने वाले साल में किस तरह खर्च करना है? बचत कितनी करनी है? हमारी हालत कैसी रहेगी?
ठीक हमारे घर की डायरी की तरह ही होता है इकोनॉमिक सर्वे। इससे पता चलता है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की हालत कैसी है? इकोनॉमिक सर्वे में बीते साल का हिसाब-किताब और आने वाले साल के लिए सुझाव, चुनौतियां और समाधान का जिक्र रहता है। इकोनॉमिक सर्वे को बजट से एक दिन पहले पेश किया जाता है।
इकोनॉमिक सर्वे कौन तैयार करता है? वित्त मंत्रालय के अंडर एक डिपार्टमेंट है इकोनॉमिक अफेयर्स। इसके अंडर एक इकोनॉमिक डिवीजन है। यही इकोनॉमिक डिवीजन चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर यानी CEA की देख-रेख में इकोनॉमिक सर्वे तैयार करती है। इस वक्त CEA डॉ. वी अनंत नागेश्वरन हैं।
इकोनॉमिक सर्वे क्यों जरूरी होता है? ये कई मायनों में जरूरी होता है। इकोनॉमिक सर्वे एक तरह से हमारी अर्थव्यवस्था के लिए डायरेक्शन की तरह काम करता है, क्योंकि इसी से पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था कैसी चल रही है और इसमें सुधार के लिए हमें क्या करने की जरूरत है।
क्या सरकार के लिए इसे पेश करना जरूरी है? सरकार सर्वे को पेश करने और इसमें दिए गए सुझावों या सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। अगर सरकार चाहे तो इसमें दिए सारे सुझावों को खारिज कर सकती है। फिर भी इसकी अहमियत है क्योंकि इससे बीते साल की अर्थव्यवस्था का लेखा-जोखा पता चलता है।
1950-51 में पेश हुआ था पहला इकोनॉमिक सर्वे भारत का पहला इकोनॉमिक सर्वे 1950-51 में केंद्रीय बजट के एक भाग के रूप में पेश किया गया था। हालांकि, 1964 के बाद से, सर्वे को केंद्रीय बजट से अलग कर दिया गया। तब से, बजट पेश करने से ठीक एक दिन पहले इकोनॉमिक सर्वे जारी किया जाता है।