जेडीयू की सहयोगी भाजपा बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार के सामने अपने किसी नेता को सीएम बनाने की दावेदारी नहीं कर सकी. नीतीश को अपने जाल में फंसा कर भी लालू यादव सीएम की कुर्सी अपने बेटे तेजस्वी यादव को नहीं दिला पाए. अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में नीतीश कुमार कभी नहीं रहे, पर सीएम बनते रहे. अब तो नीतीश का जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी विधानसभा में बन गया है. फिर भी नीतीश ने घिसट-घिसट कर 2005 में दूसरी बार सीएम की कुर्सी पकड़ी तो अमृत काल में भी उसे छोड़ने को तैयार नहीं. आगे भी कुर्सी खाली होने का कोई संकेत उनकी ओर से नहीं है. क्यों सीएम की कुर्सी नीतीश कुमार को इतनी प्यारी है!
नीतीश कुमार को बिगड़ा खेल बनाने में महारथ हासिल है
नीतीश कुमार को जेडीयू वाले राजनीति का चाणक्य बताने लगे हैं. हाल ही इस आशय का एक पोस्टर जेडीयू दफ्तर के बाहर चिपकाया गया था. पोस्टरों और बयानों में तो जेडीयू के लोग उन्हें पीएम मैटेरियल भी बताते रहे हैं. दरअसल नीतीश कुमार जिस तरह प्रतिकूल स्थिति को भी अनुकूल बनाते रहे हैं, वह उनकी चाणक्य बुद्धि का ही कमाल हो सकता है. जेडीयू जब 2020 के विधानसभा चुनाव में 43 सीटों के साथ तीसरे दर्जे की पार्टी बन गया तो लोग कयास लगाने लगे कि नीतीश के दिन अब लद गए हैं. चुनाव विशेषज्ञ तो यह भी कहने लगे कि नीतीश तो डूबेंगे ही, साथ में भाजपा की नैया भी डुबो देंगे. पर, नीतीश ने लोकसभा चुनाव में तमाम कयासों पर पानी फेर दिया.
नीतीश कुमार क्यों बने रहना चाहते हैं बिहार के मुख्यमंत्री
नीतीश और लालू-राबड़ी राज का फर्क बिहार में साफ दिखता है. सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और रोजगार की दिशा में नीतीश ने काफी काम किया है. नीतीश का सुशासन भी बिहार के लोगों ने महसूस किया है. 2005-2010 की अवधि में कुख्यात क्रिमिनल जेल गए. छोटे अपराधियों ने ठिकाने बदल लिए. शाम ढले सड़कों का सूनापन खत्म हो गया. वर्षों बाद लोगों ने नीतीश के पहले कार्यकाल में यह देखा और उन्हें सुशासन बाबू का संबोधन दे दिया. ढांचागत सुविधाओं में बढ़ोतरी देख लोगों ने विकास पुरुष भी नीतीश को कहा. शायद ही कोई क्षेत्र बचा हो, जहां नीतीश का काम नहीं दिखता होगा. अब ऐसा कौन-सा काम बचा है, जिसके लिए नीतीश 20 साल बाद भी सीएम की कुर्सी का मोह नहीं छोड़ रहे.
कौन-सा काम अधूरा है, जिसे नीतीश पूरा करना चाहते हैं
नीतीश कुमार ने लालू यादव की तरह राजनीति में परिवारवाद से अब तक परहेज किया है. आगे भी इसकी संभावना नहीं दिखती. अकूत धन-संपत्ति अर्जित करने की उनकी मंशा भी नजर आती. अब तक इस दिशा में उनके प्रयास भी नहीं दिखते. अपने समकालीन लालू यादव की तरह उन पर संपत्ति अर्जित करने का आरोप भी नहीं है. ऐसे में यह सवाल सटीक है कि चौथेपन में पहुंचने के बावजूद वे सीएम क्यों बने रहना चाहते हैं. उनके 20 साल के कार्यकाल में कौन काम बचा है, जिसे वे पूरा करना चाहते हैं. कहीं उनके मन में नवीन पटनायक और ज्योति बसु का रिकॉर्ड तोड़ने का ख्याल तो नहीं! ज्योति बसु 1977 से 2000 तक पश्चिम बंगाल के सीएम रहे. नवीन पटनायक ओड़िशा में 2000 से 2024 तक सीएम रहे. नीतीश अगर अगले टर्म में भी सीएम बनते हैं तो वे भी सर्वाधिक समय तक सीएम रहने वालों में शुमार हो जाएंगे.
नीतीश के लिए BJP ने 2020 में सीएम का छोड़ना पड़ा
नीतीश कुमार की चाणक्य बुद्धि कहें या उनकी ताकत मानें, 2020 में भाजपा बिहार विधानसभा में 74 विधायकों के साथ एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. जेडीयू 43 सीटें पाकर एनडीए में दूसरे नंबर पर रहा. फिर भी भाजपा को मान मनौव्वल कर नीतीश कुमार को ही सीएम बनाना पड़ा. 2022 में नीतीश जिस महागठबंधन के साथ गए, उसमें आरजेडी के विधायकों की संख्या सर्वाधिक 75 थी. ओवैसी के चार विधायक भी बाद में आरजेडी में शामिल हो गए थे. इसके बावजूद आरजेडी ने सीएम पद की दावेदारी भाजपा की तरह ही छोड़ दी. इसकी वजह सिर्फ यही थी कि कम संख्या के बावजूद सरकार बनाने की चाबी नीतीश के पास थी.
ताकते ही रह गए तेजस्वी यादव, नीतीश ने नहीं छोड़ी गद्दी
लालू यादव ने 2022 में नीतीश कुमार को अपने जाल में फंसा लिया. लालू की मंशा थी कि नीतीश को उकसा कर राष्ट्रीय राजनीति में ढकेल दिया जाए. ऐसा होने पर बिहार की गद्दी खाली हो जाएगी. फिर उन्हें अपने बेटे तेजस्वी यादव को सीएम बनाने में कोई बाधा नहीं रहेगी. नीतीश शुरू में भले लालू की चाल नहीं समझ पाए हों, लेकिन जल्दी ही उनकी मंशा बाद में भांप गए. पहले तो उन्होंने 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ने की घोषणा कर समय ले लिया. बाद में इंडिया ब्लाक से रिश्ता ही तोड़ लिया. लालू कुछ समझ पाते, उसके पहले ही नीतीश ने भाजपा से हाथ मिला लिया. इस तरह तेजस्वी ताकते रह गए. सामने दिख रही सीएम की कुर्सी खिसक गई.
नीतीश के मन में क्या है, आज तक कोई समझ नहीं पाया
नीतीश कुमार क्या सोचते हैं या आगे क्या करेंगे, यह आज तक कोई नहीं समझ पाया. जेडीयू के जो नेता वर्षों से उनके करीब रहे हैं, उन्हें भी नीतीश कुमार की अगली चाल का अनुमान नहीं होता. शायद यही वजह थी कि लालू प्रसाद यादव ने एक बार संसद में कह दिया था कि सबके दांत मुंह में होते हैं, लेकिन नीतीश के दांत उनकी आंत में हैं. शब्दावली जो रही हो, पर लालू के कहने का भाव यही था. 2005 के पहले से नीतीश भाजपा के करीब रहे, लेकिन नरेंद्र मोदी को भाजपा ने जैसे ही पीएम फेस घोषित किया, उन्होंने 2013 में भाजपा से कुट्टी कर ली. 2015 में लालू के साथ चले गए. 2017 में भाजपा के साथ आ गए. इस तरह की आवाजाही उन्होंने 2022 और 2024 में भी की. आगे उन्हें कुछ सोचने की जरूरत इसलिए भी नहीं दिखाई देती है कि भाजपा को उन्हें अगली बार भी सीएम बनाने में कोई आपत्ति नहीं है. पर, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि वे बढ़ती उम्र और अस्वस्थता के बावजूद किस लोभ या मकसद से सीएम बने रहना चाहते हैं.