सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. ईशा फाउंडेशन ने गुरुवार को मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. ईशा फाउंडेशन की दलीलों पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक्शन से राहत दे दी. ईशा फाउंडेशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस मद्रास हाईकोर्ट के निर्देश के अनुपालन में आगे कोई कार्रवाई न करे. पुलिस मद्रास हाईकोर्ट के निर्देशानुसार सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष वस्तु-स्थिति पर रिपोर्ट दाखिल करेगी.
ईशा फाउंडेशन की ओर से यह मामला सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन किया गया. ईशा फाउंडेशन की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि लगभग 500 पुलिस अधिकारियों ने फाउंडेशन के आश्रम पर छापेमारी की है और हर कोने की जांच कर रहे हैं. बेंच में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के समक्ष दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है. यह याचिका एक व्यक्ति ने दायर की थी, जिसने आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के परिसर के अंदर बंदी बनाकर रखा गया है. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका किसी ऐसे व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश करने के निर्देश की मांग करने के लिए दायर की जाती है जो लापता है या उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ने उन दो लड़कियों से ब्योरा जानना चाहा, जिनके पिता ने ईशा फाउंडेशन में अवैध रूप से बंधक बनाए जाने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उन दोनों लड़कियों के पिता बेटियों को जबरन केंद्र में रखने का आरोप लगाया है. बेंच में बैठे जज मामले के तथ्यों के बारे में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए दोनों महिलाओं की बात सुनी. उसके बाद निजी तौर पर बातचीत करने के लिए जज साहब अपने चेंबर में ले गए.
बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक, उन दोनों लड़कियों में से एक ने भरी अदालत में कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में हैं. एक लड़की ने कहा, ‘जज साहब, हम अपनी मर्जी से आश्रम में हैं. हम हाई कोर्ट में पेश हुए थे और बताया था कि हम अपनी मर्जी से यहां हैं. हमारे पिता की तरफ से यह उत्पीड़न पिछले 8 साल से चल रहा है.’ इसके बाद कोर्ट ने दोनों लड़कियों से चैंबर में बात की. बातचीत के बाद बेंच ने नोट किया कि दोनों महिलाओं ने दावा किया कि वे स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं.
अदालत ने दोनों व्यक्तियों से बातचीत की है. इस दौरान, दोनों ने बताया कि उन्होंने 24 और 27 साल की उम्र में आश्रम में प्रवेश लिया था. आदेश में कहा गया है, “हमने दोनों से बात की और उन्होंने कहा कि वे अपनी मर्ज़ी से यहां रह रहे हैं और आश्रम के बाहर आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं.”
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर को डॉ. एस कामराज की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया था. उसमें कामराज ने पुलिस को निर्देश देने का अनुरोध किया था कि वह उनकी दो बेटियों को अदालत के समक्ष पेश करे, जिनके बारे में उनका आरोप है कि उन्हें ईशा फाउंडेशन के अंदर बंदी बनाकर रखा गया है और उन्हें रिहा किया जाए. याचिकाकर्ता पिता कामराज तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर से रिटायर्ड प्रोफेसर हैं. उनकी दो बेटियां हैं और दोनों ने इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर डिग्री ली है. दोनों ही ईशा फाउंडेशन से जुड़ी थीं.
रिटायर्ड प्रोफेसर कामराज की शिकायत यह थी कि ईशा फाउंडेशन कुछ लोगों को गुमराह करके उनका धर्म परिवर्तन कर उन्हें ‘भिक्षु’ बना रहा है और उनके माता-पिता तथा रिश्तेदारों को उनसे मिलने भी नहीं दे रहा है. याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि फाउंडेशन कुछ लोगों का ब्रेनवॉश कर और उन्हें साधु बनाकर उनका शोषण कर रहा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर से शुरू होने वाले सप्ताह में की जाएगी.