अगर इन दिनों आप बिहार घूमने जाएंगे तो आपको गांवों में पानी और सड़कों पर परिवार नजर आएगा, जो पटरियों पर तिरपाल लगाकर अपने लोगों के साथ रह रहे होंगे और ये तस्वीर हर साल आती है. क्योंकि बाढ़ हर साल आती है, जिसके चलते लाखों लोग बेघर होते हैं और खानाबदोश की तरह जिंदगी जी रहे होते हैं. हर साल आने वाला बाढ़ कुछ ना कुछ लेकर जरूर जाता है और अपने पीछे छोड़ जाता है निराशा और दुख. दुख इस बात की कि कुछ परिवार अपनों को खो देते हैं तो कुछ परिवार अपने आशियाने को. लेकिन घबराना क्यों है, ये तो हर साल की बात है. बिहार में बाढ़ की समस्या कोई साल, दो साल या पांच साल से नहीं है, बल्कि वर्षों से है. हर साल बाढ़ आती है और लोग अपना घर छोड़कर किसी अस्थाई जगह पर आशियाना बनाते हैं और जैसे-तैसे गुजर-बसर करते हैं. हेलिकॉप्टरों के जरिए आसमान से जरूरतों के सामान गिराए जाते हैं. इस तरह की दयनीय जिंदगी जीने के लिए लाखों लोग हर साल मजबूर होते हैं. लेकिन इसका उपाय सरकार ढूंढ नहीं पा रही है. इनके इस तरह की जीवन पर यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है कि ये जख्म पुराना है, तुम दवा अब नयी दो…
हर साल बाढ़ से करना पड़ता है दो-दो हाथ
बिहार में हर साल बाढ़ आती है, हर साल मुख्यमंत्री हेलिकॉप्टर से हवाई सर्वे करते हैं और फिर समस्या जस की तस बनी रहती है. बिहार के लोगों पर प्राकृतिक रूप से दोहरी मार है. पहले भारी बारिश के चलते आसपास की नदियां भर जाती हैं तो बाढ़ आता है या फिर नेपाल से पानी छोड़ा जाता है तो बाढ़ आता है. इन दोनों परिस्थितियों में गरीबों को बेघर होना पड़ता है और एक खानाबदोश जिंदगी जीनी पड़ती है. ऐसा नहीं है कि बिहार के लिए केंद्र की तरफ से राहत पैकेज नहीं मिलता है. हाल ही में मोदी सरकार ने बिहार को 656 करोड़ रुपये का बाढ़ राहत पैकेज दिया है. लेकिन हम और आप उन अधिकारियों से क्या ही उम्मीद कर सकते हैं, जो खेतों के बीचोबीच पुल बनाकर छोड़ देते हैं या फिर करोड़ों की लागत से पुल तैयार करते हैं और वो भरभराकर गिर जाते हैं.
इन नदियों के चलते आता है बाढ़
सीतामढ़ी, दरभंगा, सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और मुजफ्फरपुर हर साल बाढ़ की त्रासदी को झेलता है. गंडक, कोसी, बागमती और महानंदा सहित अन्य नदियों में जैसे ही जलस्तर बढ़ता है. वैसे ही इलाकों में बाढ़ का संकट गहराने लगता है. पूर्णिया में बाढ़ के कहर से करीब 40 पंचायत के एक लाख से अधिक लोग परेशान हैं. खासकर अमौर प्रखंड और रुपौली प्रखंड में बाढ़ की विभीषिका अभी भी देखने को मिल रही है. एक तरफ जहां महानंदा और कनकई नदी का जलस्तर घटा है तो वही परमान और बकरा नदी का जलस्तर बढ़ गया है. जिस कारण अमौर प्रखंड के 30 पंचायत में और कोसी नदी से रुपौली प्रखंड के 10 पंचायतो में बाढ़ भयावह रूप ले चुकी है.

बाढ़ के चलते चूल्हा तक हो गया ठप
अमौर के बिशनपुर , बरबट्टा , अधांग, तियरपाडा, पोठिया गंगेली , पठान टोली , नगरा टोला समेत कई पंचायतो में लोगों के घरों में पानी है. बिशनपुर पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि विवेकानंद झा समेत दर्जनों बाढ़ पीड़ितों ने कहा कि बाढ़ से लोग बेहाल हैं. लोग घर में चौकी पर चौकी डालकर या ऊंचे स्थलों पर अपने बच्चों और बुजुर्गों को लेकर शरण लिए हुए हैं. चूल्हा में पानी घुस जाने के कारण चूल्हा चौका ठप है.
शिवहर जिले के तरियानी छपरा में बागमती नदी पर बना तटबंध टूटने से पूरे तरियानी छपरा के सभी 16 वार्ड में पानी से हाहाकार मचा हुआ है. लोग को काफ़ी परेशानी उत्पन्न हो गई है. अधिकाश लोग बागमती नदी के तटबंध पर पॉलीथी न में रहने के मजबूर है एक ही पॉलीथीन मे बच्चे, जानवर और आदमी रहने को मजबूर है, खासकर छोटे बच्चे की हालात काफी खराब है. वहीं पूर्व विधायक सुनीता सिंह चौहान और जेडीयू के प्रदेश महासचिव राणा रंधीर सिंह चौहान पीड़ितो के बिच राहत सामग्री का वितरण किया.
सीतामढ़ी में बाढ़ से आई त्रासदी
सीतामढ़ी में बाढ़ से आई त्रासदी के बाद 2 प्रखंडों की बड़ी आबादी पूरी तरह प्रभावित है. हजारों परिवार विस्थापित हो गए. इन सब के बीच जिला प्रशासन अब पूरी तरह ऐक्शन मोड में दिखाई दे रहा है. सीतामढ़ी डीएम रिची पांडे प्रशासनिक अधिकारियों के साथ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और बाढ़ पीड़ितों से रूबरू होते हुए हालात की जानकारी ली. जिला प्रशासन की ओर से सीतामढ़ी के बाढ़ प्रभावित इलाकों में कुल 29 जगहों पर कम्युनिटी किचन चलाया जा रहा है. वहीं बाढ़ से दो प्रखंड के कुल 36 पंचायत प्रभावित है.
शेखपुरा में संकट गहराया
शेखपुरा जिले के घाट कुसुंभा प्रखंड अंतर्गत हरूहर नदी में पानी कम हो रहा है. लेकिन प्रभावित लोगो की मुसीबत कमने का नाम ले रहा है. नदी की पानी से एक हजार से भी ज्यादा एकड़ खेत में लगा धान बर्बाद होने लगा है. हालांकि जिला प्रशासन द्वारा फसल क्षतिपूर्ति मुआवजा को लेकर सर्वे किया जा रहा है. लेकिन टाल क्षेत्र का किसान ज्यादा कर पट्टा पर खेती करते हैं, जिनके पास खेत का कोई कागजात नही है,जिसके कारण लाभ नहीं मिलने की चिंता किसान को सता रही है.