अमेरिका में चीन से वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर 100 फीसदी इंपोर्ट लागू कर दी है. अमेरिका ही नहीं भारत सहित दुनिया के कई दूसरे देशों को अब लगने लगा है कि एक बार उनकी अर्थव्यवस्था को चीन फिर झटका देने की तैयारी में है. अपने सस्ते प्रोडक्ट्स से दुनियाभर के बाजार भरकर पहले वो ऐसा कर चुका है. अगर दोबारा वह दौर आता है तो भारत सहित दुनिया के कई देशों को फिर मैन्युफैक्चिरिंग में गिरावट, बेरोजगारी और फैक्टरियों में तालाबंदी जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है. यही कारण है कि अपने बाजारों को चीन से बचाने को अमेरिका सहित ई देशों ने कदम उठाने शुरू तो कर दिया है, लेकिन चीन के ‘शॉक 2.0’ से बचना इतना आसान भी नहीं है.
इस समय दुनियाभर में सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल, सेमीकंडक्टर आदि की डिमांड है. भारत में अक्षय ऊर्जा पर सरकार का खूब जोर है. भारत सेमीकंडक्टर हब बनने का सपना भी देख रहा है. एक चुनौती यह है कि चीन सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल, सेमीकंडक्टर आदि में अपना प्रभाव दूसरे देशों में बढ़ाना चाहता है. चीन ने भारत समेत कई देशों में इन प्रोडक्ट की खपत बढ़ा भी दी है. अगर खपत और बढ़ती है तो दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को फिर से हिला देगा. आयात के मामले में भारत अन्य देशों के मुकाबले चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है. साल 2005-06 में चीन से आयात 10.87 बिलियन था जो 2023-24 में बढकर 100 बिलियन डॉलर हो गया.
भारत को क्यों है ज्यादा चिंता?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल, सेमीकंडक्टर आदि सेक्टर में अपने पैर पसार रहा है. हाल ही में गुजरात में ग्लोबल रिन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन हुआ था. कुछ दिनों पहले नोएडा में सेमीकॉन इंडिया-2024 का आयोजन हुआ. जिसमें कई देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे. नोएडा में देश का पहला सेमीकंडक्टर पार्क बनाने की मंजूरी मिली है. भारत सेमीकंडक्टर में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है. लेकिन अग चीन अपने सस्ते सोलर पैनल, बैटरी, सेमीकंडक्टर आदि बनाकर दुनिया में बेचने लगा तो इस सेक्टर में हब बनने का भारत का सपना टूट सकता है. बेराजगारी का खतरा पैदा हो सकता है और भारत समेत पश्चिमी देशों की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता कम हो सकती है और उद्योग बंद हो सकते हैं.
साल 2000 में दुनिया ने झेला चाइनीज शॉक
साल 2000 में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) में शामिल होने बाद से चीन ने दुनियाभर में अपने सस्ते प्रोडक्ट का कब्जा जमाना शुरू किया था. इससे दुनियाभर की अर्थव्यवस्था हिल गई. साथ ही मैन्युफैक्चरिंग में भारत समेत दूसरे देशों में नौकरियां खत्म होने लगीं. चाइनीज सामान सस्ता होने की वजह से लोकल प्रोडक्ट्स उनका मुकाबला नहीं कर पाए और बहुत सी यूनिट्स पर ताला लग गया.