बिहार की राजनीति की कमान अब युवा पीढ़ी के हाथों में है। तेजस्वी प्रसाद यादव, चिराग पासवान, संतोष सुमन, मुकेश सहनी और प्रशांत किशोर यानी 5 नेता ऐसे हैं, जिनका कद तेजी से बढ़ रहा है।
इन 5 नेताओं में तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और संतोष सुमन ऐसे नेता हैं, जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है। मुकेश सहनी और प्रशांत किशोर ने अपनी जमीन खुद से तैयार की है। ये सभी अलग-अलग क्षेत्र से राजनीति में आए हैं।
तेजस्वी यादव क्रिकेट छोड़ राजनीति में आए। चिराग पासवान फिल्मों की दुनिया छोड़ राजनीति में आए। संतोष सुमन गया के कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। मुकेश सहनी राजनीति में आने से पहले मुंबई में फिल्मों के सेट बनाते थे। प्रशांत किशोर राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनावी रणनीतिकार का काम करते रहे हैं।
ये पांचों नेता अपने-अपने तरीके से विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं। लक्ष्य बिहार की सत्ता हासिल करना या उसमें महत्वपूर्ण भागीदार बनना है। इन सभी में राजनीतिक रूप से सबसे ताकतवर कौन हैं, यह 2025 में जनता तय करेगी।
तेजस्वी यादव
लालू यादव कई बार ये साफ कर चुके हैं कि तेजस्वी ही उनकी राजनीतिक विरासत के असली वारिस हैं। तेजस्वी ने उनकी इस विरासत को संभाला भी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन वे सरकार नहीं बना सके।
उनके महागठबंधन की पार्टी कांग्रेस का परफॉर्मेंस काफी खराब रहा और तेजस्वी सीएम की कुर्सी पाने से चूक गए। 2014 और 2022 में वे नीतीश कुमार के साथ सरकार में रहे और डिप्टी सीएम बनाए गए।
2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन ने 9 सीटें हासिल कीं। इससे पहले 2019 में महागठबंधन एक किशनगंज की सीट जीत पाया था। कांग्रेस वहां से जीती थी। इस लिहाज से 2024 में महागठबंधन की जीत बड़ी थी।
तेजस्वी ने कुछ दिन पहले कार्यकर्ता संवाद यात्रा का पहला चरण पूरा किया है। उन्होंने विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर कार्यकर्ताओं से फीड बैक लिया और उनका मनोबल बढ़ाया। साथ ही कार्यकर्ताओं को जरूरी टास्क दिए।
वे जानते हैं कि सिर्फ सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से 2025 की लड़ाई नहीं जीत सकते, इसलिए चुनावी वायदे भी कर रहे हैं। जैसे कि मिथिलांचल की लड़ाई को जीतने के लिए मिथिलांचल डेवलपमेंट ऑथोरिटी बनाने का वायदा उन्होंने किया।
उन्होंने नए बिजली प्री-पेड मीटर पर सवाल उठाया और उसे बदलने का वादा किया। साथ ही हो रही भूमि सर्वे में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया। बिहार के लोगों को 200 यूनिट बिजली देने जैसे वायदे भी किए। तेजस्वी की सबसे बड़ी लड़ाई बीजेपी से है। लेकिन, उनके सामने प्रशांत किशोर, चिराग पासवान जैसे नेता भी चुनौती बन कर खड़े हैं।
यादवों का वोट बैंक बिहार में किसी एक जाति का सबसे बड़ा और ताकतवर वोट बैंक है। यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है और चुनौती यह कि बाकी जातियों को कैसे साथ-साथ एकजुट रखते हैं।
प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के चुनावी रणनीतिकार के रूप में चर्चा में रहे हैं। इन्होंने 8 साल संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ काम किया। 2012 में गुजरात में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए चुनाव अभियान चलाया, लेकिन 2014 में मोदी से अलग होकर नीतीश कुमार के साथ काम किया।
इसी साल उन्होंने सिटिजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (सीएजी) बनाया जो बाद में आई पैक बन गया। 2018 में वे जेडीयू में शामिल हो गए, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम के सवाल पर 2020 में जेडीयू ने उन्हें निष्कासित कर दिया। उन्होंने बीजेपी, जेडीयू, आम आदमी पार्टी, डीएमके जैसी पार्टियों के लिए काम किया।
प्रशांत ने जन सुराज संगठन बनाया है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन वे अपनी पार्टी की घोषणा करने वाले हैं। इससे पहले वे बिहार की पदयात्रा कर रहे हैं।
वे नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर काफी मुखर रहे हैं। आरजेडी प्रशांत किशोर के संगठन को बीजेपी की बी टीम कहती है। वहीं प्रशांत, तेजस्वी यादव के कम पढ़े लिखे होने को मुद्दा बनाते हैं।
प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग की ताकत को खूब समझते हैं, इसलिए कहते हैं कि जिसकी जितनी आबादी उसको पार्टी में उतनी हिस्सेदारी देंगे।
पीके ने विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी से 40 महिलाओं और 40 मुसलमानों को टिकट देने की बात कही है। कई पूर्व IAS और कई चर्चित चेहरों को अपने संगठन में शामिल कर रहे हैं।
पटना में उन्होंने महिलाओं, मुसलमानों, युवाओं के साथ बड़े कार्यक्रम किया है। आरजेडी ने प्रशांत किशोर के बढ़ते विस्तार को देखते हुए अपने कार्यकर्ताओं को नसीहत भरा पत्र लिखा था। प्रशांत किशोर कह चुके हैं कि वे बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लडे़ंगे। उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया है कि उनकी सरकार बिहार में आएगी तो एक घंटे के अंदर शराबबंदी कानून खत्म कर देंगे। शराबबंदी हटाकर वे दलितों के साथ ही सोसाइटी के एलिट लोगों का मन जीतना चाहते हैं।
चिराग पासवान
बिहार के ताकतवर दलित नेता हैं। दलित वोट बैंक पर इनकी सबसे अधिक पकड़ मानी जाती है। चिराग पहले फिल्मों में काम करते थे। फिल्मी दुनिया छोड़कर उन्होंने राजनीति में एंट्री ली। उनके पिता रामविलास पासवान देश के बड़े दलित नेता थे। जीते जी रामविलास पासवान ने चिराग को राजनीति में सेट कर दिया था।
आगे खुद को पीएम नरेन्द्र मोदी का हनुमान बताते हुए उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ऐसा खेल किया कि उनकी पार्टी लोजपा सिर्फ एक मटिहानी की सीट पर चुनाव जीत पाई। उन्होंने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को 25 सीटों पर नुकसान पहुंचाया। ऐसा कहा जाता है कि बाद में उनकी पार्टी को तोड़ने में नीतीश कामयाब हुए।
इसके बाद लोजपा दो फांक में बंट गई, लेकिन चिराग पासवान एनडीए में न सिर्फ हाजीपुर लोकसभा की सीट हासिल करने में चाचा पशुपतिनाथ पारस पर भारी पड़े, बल्कि उनकी पार्टी लोजपा (रामविलास) पांच में पांच सीटों पर जीत हासिल की।
चिराग ने साबित किया कि नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलकर भी वे बड़ी ताकत पा सकते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट नाम से विजन डॉक्यूमेंट उन्होंने सामने लाया, जिसमें उन्होंने समान काम के बदले समान वेतन, युवा आयोग, सभी जिलों में फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने, महिलाओं को फ्री बस सेवा जैसे कई वायदे किए।
दिलचस्प यह कि एनडीए की सरकार में वे केन्द्रीय मंत्री हैं, लेकिन लैटरल इंट्री का विरोध उन्होंने किया। जाति जनगणना को जरूरी बता रहे हैं। वक्फ बोर्ड पर भी उनकी राय विपक्ष की तरह रही।
इसकी चर्चा तेज है कि चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले तो चुनाव नहीं लड़ेंगे या फिर कहीं अधिक सीटों के लिए दबाव की रणनीति तो नहीं करेंगे। उनकी रणनीति का खुलासा होना अभी बाकी है।
मुकेश सहनी
सन ऑफ मल्लाह नाम से अपनी अलग छवि कम दिनों में मुकेश सहनी ने बनाई। राजनीति में उन्हें पहचान मिलना इसलिए भी कठिन था कि उनके पास राजनीति की कोई विरासत या राजनीतिक पार्टी के साथ काम करने का नहीं है। वे बिहार के पांच युवा नेताओं में इस मायने में सबसे अलग हैं। उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई- विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी)। निषाद जाति को एसटी का आरक्षण देने की मांग वे करते रहे हैं। इसको लेकर कई रैलियां, सभाएं कर चुके हैं।
बिहार में निषाद जाति अतिपिछड़ी जाति में आती है। यही वजह है कि कभी बीजेपी ने, कभी नीतीश कुमार ने और कभी तेजस्वी यादव ने मुकेश सहनी को साथ रखा। 2013 में वे बिहार की राजनीति में नजर आए और 2014 में लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव वे बीजेपी का समर्थन करते दिखे। वे 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ चले गए, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के सवाल पर तेजस्वी यादव पर आरोप लगाया कि एक अतिपिछड़ा के बेटे को पीठ में खंजर भोंका गया।
2020 में वीआईपी के 3 विधायक जीते, लेकिन आगे चलकर तीनों विधायक राजू सिंह, सुवर्णा सिंह और मिश्री लाल यादव बीजेपी में चले गए। मुकेश सहनी 2021 में एमएलसी बनाए गए। बीजेपी नेता विनोद नारायण झा के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई जगह पर मुकेश सहनी को बीजेपी ने विधान परिषद डेढ़ साल के लिए भेजा। वे बिहार सरकार में मंत्री भी बनाए गए।
यूपी चुनाव के समय 2024 के लोकसभा चुनाव में वे तेजस्वी यादव के साथ रहे। हेलिकॉप्टर पर साथ-साथ मछली खाते और केक काटते दिखे। इस सबके बावजूद गोपालगंज, मोतिहारी और झंझारपुर तीनों जगहों पर इनकी भारी अंतर से हार हुई। हाल में उनके पिता की नृशंस हत्या कर दी गई है।
संतोष सुमन
पिता पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से राजनीति विरासत मिली है। वे गया कॉलेज गया में पढ़ाते हैं। 2018 में लालू प्रसाद की कृपा से संतोष सुमन एमएलसी बनाए गए। नीतीश कुमार की कैबिनेट में 2020 में मंत्री बनाए गए। 2023 में दोबारा बिहार सरकार में मंत्री बनाए गए। लेकिन, इस्तीफा देते हुए कहा कि उन पर नीतीश कुमार का दबाव था कि अपनी पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर का विलय जेडीयू में कर दें, विलय नहीं करने पर इस्तीफा देना पड़ा।
उनकी जगह जेडीयू के रत्नेश सदा को मंत्री बनाया गया। जब नीतीश कुमार फिर से बीजेपी के साथ गए तो हम पार्टी से संतोष सुमन को दो विभागों का मंत्री बनाया गया। 2024 लोकसभा चुनाव में जीतन राम मांझी तीन बार लोकसभा चुनाव हारते हुए चौथी बार सांसद चुन लिए गए और केन्द्र में मंत्री भी बनाए गए।
हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन ही हैं। पिता को केन्द्र में और बेटे को बिहार में मंत्री पद मिलने के हम पार्टी की ताकत बढ़ रही है। 2020 में हम पार्टी से 4 विधायक जीते थे। हम पार्टी सदस्यता बढ़ाने के लिए बिहार के सभी जिलों में अभियान चला रही है।
मुकेश सहनी की रणनीति सफल नहीं हो पा रही, प्रशांत वोट कटवा होकर न रह जाएं-
विशेषग्य कहते हैं कि तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, मुकेश सहनी, प्रशांत किशोर, संतोष सुमन अपनी-अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं। ये सभी नेता अपनी-अपनी रणनीति बना रहे हैं। ये कितने सफल होंगे यह तो वक्त बताएगा, लेकिन अब तक की राजनीति के हिसाब से चिराग पासवान की रणनीति सबसे सफल रही है। पिछले 10 वर्षों से वे अपनी रणनीति में सफल रहे हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में वे भाजपा की बी टीम के रूप में चुनाव लड़े थे, इसलिए सफल नहीं हो पाए थे। तेजस्वी यादव की रणनीति 2015 और 2020 में सफल हुई। लेकिन, उनको यह सफलता चिराग पासवान की वजह से मिली थी। नहीं तो सफलता नहीं मिल पाती।
2025 के चुनाव में तेजस्वी यादव की रणनीति तभी सफल हो सकती है, जब अपने वर्तमान वोट बैंक में अन्य वोट बैंक को भी वे जोड़ पाएंगे। मुकेश सहनी की रणनीति अभी तक सफल नहीं हो पा रही है। भाजपा के साथ जाकर वे एक बार सफल हुए, लेकिन फिर बैक हो गए।
संतोष सुमन बिना चुनाव जीते सफल हो रहे हैं और मंत्री बनते आ रहे हैं। प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार माने जाते हैं, वे पैसा लेकर काम करते हैं। अभी तक वे दूसरे के लिए रणनीति बनाते थे, इस बार वे खुद पार्टी बनाकर चुनाव में जा रहे हैं। तरह-तरह की रणनीति बना रहे हैं। वे कितना सफल होंगे समय बताएगा।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि संतोष सुमन, चिराग पासवान, तेजस्वी यादव राजनेताओं के बेटे हैं। इन तीनों को विरासत में पिता से राजनीति मिली है। मुकेश सहनी ने राजनीति जीरो से शुरू की। सहनी का वोट बैंक इनके पास है। यही वजह कि सहनी को इंडिया गठबंधन हो या एनडीए अपने साथ रखना चाहता है।
जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर किस तरह की चाणक्य बुद्धि रखते हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। जिस-जिस को उन्होंने छुआ मुख्यमंत्री बनाया। ऐसे दौर में जब नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से समाप्ति की तरफ बढ़ रहे थे, तब उन्होंने ‘बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है’ का नारा दिया था। नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से जीवित हो गए। बिहार में प्रशांत किशोर ने पूरी ताकत झोंक दी है। जिस तरह राहुल गांधी ने पदयात्रा से अपनी छवि पूरी तरह से बदल ली, उसी तरह से प्रशांत किशोर ने भी पदयात्रा करके डेढ़ साल में बिहार में अपनी पहचान बना ली।