दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान में सोमवार (26 अगस्त) को अपने हिस्से वाले पंजाब के कम से कम 22 लोगों को मौत के घात उतार दिया गया. बलूचिस्तान प्रांत के मुसाखेल जिले में पहले पंजाब से आने-जाने वाले बस और ट्रकों को रोककर यात्रियों को उतारा गया और उनकी पहचान के बाद गोली मार दी.
पाकिस्तानी मीडिया ने मुसाखेल के असिस्टेंट कमिश्नर नजीब काकर के हवाले से बताया कि कथित तौर पर हथियारबंद लोगों ने पंजाब के लोगों को ही गोली मारी गई. साथ ही 10 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. एक उग्रवादी संगठन बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने कहा है कि मुसाखेल जिले में हुए हमलों के पीछे उसका हाथ है.
बलूचिस्तान में पंजाबियों के खिलाफ नफरत का यह पहला मामला नहीं है. इसी साल अप्रैल में बलूचिस्तान के नोशकी में भी नौ पंजाबी यात्रियों की आईडी चेक करने के बाद गोली मारी दी गई थी. पिछले साल अक्टूबर में भी केच जिले में छह पंजाबी मजदूरों की मार डाला था. 2015 में तुर्बत के पास एक श्रमिक शिविर पर हमले में 20 मजदूर मारे गए थे, ये सभी सिंध और पंजाब से थे. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बलूच उग्रवादी अपने ही देश के पंजाबी लोगों के खिलाफ क्यों हैं?
खून से सना पाकिस्तान!
अगस्त 2021 में अफगान तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से पाकिस्तान में हिंसक हमलों की संख्या बढ़ गई है. खास तौर से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में हमले बढ़े हैं. ये दोनों क्षेत्र अफगानिस्तान की सीमा से लगे हैं. पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज (PICSS) के अनुसार, सिर्फ साल 2023 में ही 650 से ज्यादा हमले हुए. इनमें से 23 फीसदी बलूचिस्तान में हुए, जिसमें 286 लोगों की मौतें हुईं.
‘बलूचिस्तान’ नाम का मूल आम तौर पर बलूच लोगों के नाम से माना जाता है. ये क्षेत्र तीन देशों के बीच विभाजित है: ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान. प्रशासनिक रूप से इसमें बलूचिस्तान का पाकिस्तानी प्रांत, ईरान का सीस्तान और बलूचेस्तान प्रांत, अफगानिस्तान के दक्षिणी क्षेत्र शामिल हैं. यह उत्तर में खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र, पूर्व में सिंध और पंजाब और पश्चिम में ईरानी क्षेत्रों से सीमाबद्ध है.
बलूचिस्तान: संसाधनों से भरपूर, लेकिन गरीबी में डूबा
पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान देश की कुल 24 करोड़ आबादी में से लगभग 15 मिलियन लोगों का घर यहां है. बलूचिस्तान में तेल, कोयला, सोना, तांबा और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है. लेकिन फिर भी यह प्रांत देश का सबसे गरीब क्षेत्र बना हुआ है.
बलूचिस्तान के संसाधन पाकिस्तान की केंद्र सरकार को काफी राजस्व देते हैं, जबकि प्रांत खुद आर्थिक कठिनाई में फंसा हुआ है. बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह भी है, जो 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजना सेंटर प्वाइंट है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पश्चिमी चीन और अरब सागर के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापार लिंक स्थापित करना है.
बलूचिस्तान में विद्रोह और दमन का इतिहास
पाकिस्तान बनने के बाद से ही बलूचिस्तान में कई बार विद्रोह हुए हैं और सरकार ने भी बलूच लोगों को बहुत सताया है. बलूच लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं. पहला विद्रोह 1948 में शुरू हुआ था. उस समय कलात नाम का एक छोटा राज्य था, जो बलूचिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे ताकतवर हिस्सा था. पाकिस्तान ने जबरदस्ती कलात को अपने में मिला लिया. इससे बलूच लोगों में बहुत गुस्सा आया और उन्होंने विद्रोह शुरू कर दिया था.
कलात के ‘खान’ लंबे समय से एक आजाद बलूच राज्य की वकालत कर रहे थे. लेकिन 27 मार्च 1948 को खान ने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जब पाकिस्तानी सेना ने बलूच में घुसकर उन्हें मजबूर किया. इसके बाद जल्द ही विलय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
इसी साल जुलाई तक पहला विद्रोह प्रिंस अब्दुल करीम और खान के भाई ने शुरू किया था. इसके बाद 1958-59, 1962-63 और 1973-1977 में विद्रोह हुआ. पांचवां विद्रोह वर्तमान में 2003 से चल रहा है. ये खूनी विद्रोह शायद बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के अलावा पाकिस्तानी संप्रभुता के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं.
फिर बलूचिस्तान में पंजाबियों को क्यों बनाया जा रहा निशाना?
पाकिस्तान को सिर्फ धर्म के आधार पर अलग देश बनाया गया था. लेकिन देश के अंदर अलग-अलग जातीय समूहों के बीच हमेशा से ही विवाद रहा है. इसी वजह से 1971 में पूर्वी पाकिस्तान अलग हो गया था और बलूचिस्तान आज भी जल रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, असल में जब से पाकिस्तान बना तब से ही बलूच लोग अपने को अलग समझते हैं. उनकी अपनी अलग भाषा है, संस्कृति है, इतिहास है. ये सब मिलकर उनको लगता है कि वो एक अलग कौम हैं. बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यहां के लोग बहुत गरीब हैं. बलूचिस्तान में बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन हैं, लेकिन इनका फायदा ज्यादातर पंजाबियों को मिलता है. बलूच लोग इस बात से नाराज रहते हैं.
पाकिस्तान के बनने के बाद से ही पंजाब प्रांत का राजनीति में बहुत दबदबा रहा है. पंजाबी लोग देश के अधिकांश सरकारी कामों को संभालते हैं. यहां तक कि पाकिस्तान की क्रिकेट टीम में भी ज्यादातर पंजाबी खिलाड़ी ही होते हैं.
बलूचिस्तान के लोगों को नजरअंदाज करती है पाकिस्तान सरकार!
बलूच लोगों को लगता है कि उनकी राजनीतिक ताकत छीन ली गई है. वो कहते हैं कि पंजाबी लोग, जो पाकिस्तान पर राज करते हैं, बलूचिस्तान की सारी दौलत अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. जैसे यहां चीन की मदद से बना एक ग्वादर बंदरगाह है. इसे बनाने में अरबों डॉलर खर्च हुए, मगर वहां के लोगों को कोई फायदा नहीं मिला. पढ़े-लिखे बलूच नौजवान बेरोजगार घूम रहे हैं. पर जब काम करने की बारी आई, तो पंजाब-सिंध के इंजीनियर्स और चीन के एक्सपर्ट्स को बुलाया गया.
बलूच लोगों को लगा कि उनके ही घर में दूसरे लोग आकर कमा रहे हैं और वो बस देखते रह गए. ऐसे में उन्हें लगता है कि उनके साथ धोखा हो रहा है. उनकी जमीन की दौलत तो दूसरे लोग खा रहे हैं और वो खाली हाथ रह गए हैं. उनके मन में खास तौर से इसी बात का गुस्सा है.
मजदूरों को मारने की क्या है वजह?
वॉशिंगटन डीसी में रहने वाले बलूचिस्तान के जानकार मलिक सिराज अकबर ने अल जजीरा को बताया, बलूच उग्रवादी अक्सर कुछ खास समूहों को भी निशाना बनाते हैं. इनमें सुरक्षा बल, पंजाबी मजदूर और विकास परियोजनाओं में काम करने वाले लोग शामिल होते हैं. उनका मकसद इन समूहों को बलूचिस्तान में काम करने से रोकना है.
मलिक सिराज अकबर ने आगे कहा, “बलूच उग्रवादी सोने, खनिजों और कोयले की खोज के खिलाफ हैं. उन्हें लगता है कि यह बलूचिस्तान के संसाधनों का शोषण है. वे अक्सर कोयला लेकर जाने वाले ट्रकों की तस्वीरें दिखाते हैं. इससे लोगों को लगता है कि बलूचिस्तान के संसाधनों का फायदा सिर्फ दूसरे लोगों को मिल रहा है, स्थानीय लोगों को नहीं. इस तरह की बातें लोगों को अलगाववाद का समर्थन करने में मदद करती हैं.”