प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय राजनीति के वो पुरुष हैं, जिनके बारे में लगातार कहीं न कहीं उनकी बातों पर चर्चा होते ही रहती है. गुजरात में सीएम रहे तब भी वे सुर्खियों में बने रहे. लेकिन 11 सालों से प्रधानमंत्री बनने के बाद तो चर्चा में बने ही रहते हैं. उनके बारे में अक्सर ये बातें कही जाती है कि वे जिद्दी किस्म के इंसान हैं, और अपने कदम पीछे नहीं लेते हैं.
हाल में हुए कुछ फैसलों को देखें तो ये छवि कहीं न कहीं बदलती हुई दिख रही है. अब उनकी सरकार को यू-टर्न वाली सरकार की भी संज्ञा दी जा रही है. लेटरल एंट्री, किसान के 3 कानून और फिर NRC वाले मामलों पर स्टेप बैक ले लेना. इन सब मामलों में खामोशी और चुप्पी को कहीं न कहीं उनकी कमजोरी से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
लगातार तीन बार, एनडीए सरकार
हाल ही में बहुत से लोग कह रहे हैं और ध्यान दिला रहे हैं कि बीजेपी 2024 में 240 सीटें आई हैं. अब बीजेपी की अकेली बहुमत वाली सरकार नहीं, बल्कि एनडीए की सरकार है. यही कारण है कि मोदी के कुछ हालिया कदमों में बदलाव देखा गया है, लेकिन देखा जाए तो पीएम मोदी अपने तीन बार के कार्यकाल में सबसे मजबूत 2019 में संख्याबल के हिसाब से आये थे.
बावजूद इसके उन्होंने उसी कार्यकाल में किसान के लिए बिल लाकर जो कानून बनाया था, मजबूती के बावजूद उसको वापस ले लिया. जब मोदी सरकार को बहुमत होते हुए भी किसान कानून को वापस लेना पड़ा, तो ये थ्योरी साफतौर पर गलत साबित होती है कि कम नंबर की वजह से पीएम मोदी ने लेटरल एंट्री और अन्य कई मामलों में यू-टर्न ले रहे हैं. इस प्रकार की बातें तो एक ही उदाहरण से धराशायी हो जाती है.
बिल की वापसी में कमजोर की बातें नहीं
2019 में बहुमत के समय में मोदी ने किसान बिल को वापस ले लिया. अब लेटरल एंट्री को वापस ले लिया है. इसके साथ ही, हाल में सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी-एसटी में क्रीमीलेयर बनाने की बात पर जो व्याख्या की गई, उसमें अभी तक सरकार पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है. इन सब बातों का एक ही अर्थ है कि नरेंद्र मोदी की प्रॉयोरिटी में नेशन यानी का राष्ट्र फर्स्ट है.
देश के लोगों को याद करना चाहिए कि जब स्वर्गीय विपिन रावत अपने संबोधनों में कहते थे कि देश को ढाई मोर्चों पर लड़ाई लड़ने की जरूरत है तो दो फ्रंट तो समझ में आता था, लेकिन जो आधा फ्रंट था, वो देश के अंदर रहने वाले नकारात्मक तत्वों के लिए कहते थे. भारत में अशांति और गृह युद्ध जैसे हालात बनाने की कोशिश की जाती है, क्योंकि विपक्ष नकारात्मक कार्य करता है, जबकि नरेंद्र मोदी ऐसे कोई भी हाल देश में नहीं चाहते हैं.
भारत में लोकतंत्र जीवित
अगर हम भारत के आसपास के देशों की स्थितियों पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि उन देशों की लोकतंत्र का कैसा हाल हैं. बांग्लादेश में जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार थी, अब वो भी नहीं रही. ऐसा ही हाल कुछ भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ भी हुआ. अफगानिस्तान की स्थिति से सभी अवगत हैं. पाकिस्तान में कभी लोकतंत्र रहा ही नहीं, नेपाल में किस तरह का लोकतंत्र है, ये हम सब को पता है. ऐसी स्थिति में जब पूरा विश्व चाहें वो यूके हो चाहे, फ्रांस या ईरान हो हर जगह पर एक ही पैटर्न देखने को मिल रहा है.
सबसे पहले देश की आंतरिक स्थितियां खराब होती है, उसके बाद जनता सड़कों पर आ जाती है. जनता के ठीक पीछे- पीछे रीजिम चेंज आ जाता है. कुल मिलाकर कहा जाए तो लोकतंत्र को या तो खत्म कर दिया जाता है, या फिर उसको अपने मन के मुताबिक कोई शक्तियां बदल देती हैं. विश्व में इस प्रकार के माहौल में भारत में ना सिर्फ लोकतंत्र जीवित है, बल्कि विकास की दर पर काफी तेजी से प्रगति कर रहा है. जब विकास की दर 7.3 चल रहा हो, पूंजीगत व्यय 11.1 प्रतिशत तक बढ़ा हो, जीडीपी 3.4 कर रहा हो, एफडीआई 2014 से 2023 के दौरान 596 अरब अमेरिकी डालर का हो चुका हो, जबकि 2005 से 2014 तक के दौरान हुए एफडीआई का दोगुना हो, ऐसी स्थिति में नेशन फर्स्ट और लोकतंत्र को बचाने की भावना बचाने, उसको मजबूत करने और उसके मूल्यों की सम्मान करने की दृष्टि से देखें तो ये भारत में काफी बेहतर काम किया है.
इस बार नरेंद्र मोदी को तीसरी बार के कार्यकाल में अकेले 240 सीटें देकर जनता ने भारत की सबसे बड़ी पार्टी बनायी है. तीसरी बार एनडीए की सरकार बनी है. बहुमत में रहने के बावजूद एनडीए की सरकार चली और अब सीटें कम रहने पर भी एनडीए की सरकार चल रही है. ऐसे में कमजोर होने और यू-टर्न लेने जैसी बात कहां से आती है?
भाजपा से आरक्षण को नहीं है खतरा
सरकार में सबसे अधिक एससी समुदाय को लोगों को जगह दी गई है. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमीलेयर को लेकर बाध्य नहीं किया कि वो लागू ही हो जाएगा. बल्कि कोर्ट ने ये कहा कि इस प्रकार का किया जा सकता है. पीएम मोदी खुद लोगों को कम्युनिकेट कर लेते हैं. बावजूद इसके लोगों में ये भावना आ गई कि मोदी की सरकार के आने से आरक्षण पर खतरा है. दरअसल, विपक्ष की ओर से ये प्रोपेगेंडा फैलाया गया कि मोदी तानाशाह है, और वो सत्ता में वापसी करते हैं, तो आरक्षण को खत्म किया जाएगा. जबकि मोदी संविधान को और आरक्षण को बचाते हुए दिख रहे हैं.
लोकतंत्र संविधान में निहित है. शोषित और वंचित लोगों के लिए लगातार फैसले लेते चले जा रहे हैं. इस प्रकार के कदम से तो खुद-ब-खुद विपक्ष फेल्योर साबित होता हुआ दिख रहा है. सरकार का तो पैटर्न नहीं बदला है, जबकि विपक्ष का पैटर्न बदल गया है. पहले विपक्ष की ओर से कहा जाता था कि नरेंद्र मोदी तानाशाह हैं, और अब ये कहा जा रहा है कि वो कमजोर हैं.
दो बार के कार्यकाल वाले ही मोदी तीसरी बार सरकार में आए हैं. विपक्ष की ओर से कमजोर बताए जाने वाले पीएम मोदी 15 अगस्त के दिन पर 98 मिनट का भाषण देते हैं, जो कि अब तक का सबसे लंबा भाषण उनका ये है. यहां तो प्रतिपक्ष की ओर से बदलाव देखा जा रहा है. जो लोग मोदी के राजनीतिक व्यक्तित्व और राजनीतिक वजन का आकलन कर रहे हैं उनके स्टैंड में बदलाव देखा जा रहा है. आज वही विपक्ष नरेंद्र मोदी को कमजोर बता रहे हैं, जो पहले कभी तानाशाह की संज्ञा दे रहे थे.
चुनौतियों का सामना कर रहे हैं मोदी
नरेंद्र मोदी कुछ चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, इसको पूरा समाज समझ रहा है. जब सामान्य इंसान के जीवन में कई परेशानियां है, वो इससे परेशान हो जाता है, फिर जो 74 साल का व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा है, तो उसके समक्ष कितनी ज्यादा चुनौतियां होंगी. सोशल मीडिया को जन मीडिया की संज्ञा भी दी जाती है.
राज्य से निकलकर जब राष्ट्रीय स्तर पर मोदी आए तो सबसे अधिक सोशल मीडिया का सदुपयोग करने वाले सफल इंसान अभी तक वही हो पाएं हैं. सोशल मीडिया पर सबसे अधिक समर्थन नरेंद्र मोदी को ही मिलती है. सोशल मीडिया पर विरोधी आवाजें पहले से रहीं है और वो अभी भी कहीं न कहीं कायम है. विरोधी ताकतों को अब तानाशाह वाले मोदी को नरम मोदी दिखाई दे रहे हैं.
समर्थकों में भी नाराजगी
जहां तक मोदी के समर्थकों की बात है तो कुछ इस तरह की आवाजें समर्थकों से भी आ रही है. इसके पीछे नरेंद्र मोदी से उनके हार्डकोर समर्थक हैं. उनका कारण इस बात से समझा जा सकता है कि उन लोगों की कुछ निजी अपेक्षाएं हैं, और उन अपेक्षाओं के कारण ही वो ऐसा बोल रहे हैं. उनको ये लगता है कि मोदी सबका साथ, सबका विकास, सभी 141 करोड़ भारतीय, क्यों बोलते हैं, वो हिंदुओं को लेकर सॉफ्ट क्यों हैं?
हाल में बांग्लादेश के जो हालात हुए हैं, उस पर चढ़ाई क्यों नहीं करते हैं? दुनिया में प्रताड़ित हो रहे हिंदुओं के लिए रेड कारपेट बिछा कर घर वापसी क्यों नहीं कराते हैं? इस प्रकार की उनकी अपेक्षाएं है, जिस पर मोदी खुलकर नहीं बोल रहे हैं, जिसके कारण समर्थकों का गुस्सा फूट रहा है. दूसरी ओर कांग्रेस ने भी सोशल मीडिया का खूब उपयोग कर रही है, लेकिन वो देश के विरोधी ताकतों को मजबूत करने और विरोधी चीजों को बाहर लाने के लिए सिर्फ सोशल मीडिया का उपयोग कर रही है.