बिहार में 23 अगस्त 2024 का दिन राजनीति के लिहाज से स्मरण करने योग्य रहेगा. इसके दो कारण हैं, पहला तो केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह पहली बार बिहार पहुंचे, दूसरा उन्होंने यह घोषणा की कि रामफल मंडल को शहीद का दर्जा दिया जाएगा. पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मौके पर कहा कि रामफल मंडल को इतिहास में बुलाने का काम किया गया है और ऐसे शहीदों को भाजपा याद करती है और करती रहेगी. जाहिर है बिहार की राजनीति में एकाएक रामफल मंडल चर्चा होने लगी है और इनको जानने समझने के लिए लोग गूगल सर्च कर रहे हैं. ऐसे में हम जानते हैं कि रामफल मंडल हैं और उन्हें भाजपा शहीद का दर्जा क्यों देना चाहती है?
इससे पहले हम यह जानते हैं कि भाजपा रामफल मंडल को आखिरकार इतनी शिद्दत से क्यों याद करने लगी है. रवि शंकर प्रसाद सिंह की बातों पर गौर करें तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि भाजपा पिछड़ों और अति पिछड़ों को आगे का काम बढ़ाने का काम करती है और लालू यादव, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करते हैं और यह लोग बस अपने परिवार के लिए राजनीति करते हैं. रामफल मंडल शहादत कार्यक्रम में शहादत कार्यक्रम में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि धानुक समाज के चरणों में हम प्रणाम करते हैं. इन नेताओं के बयानों से आपको कुछ-कुछ समझ आ रहा होगा. अब आगे की कहानी यह है कि रामफल मंडल धानुक समाज से आते हैं और यह बिहार के पिछड़े वर्ग में से एक है.
रामफल मंडल को शहीद का दर्जा देगी भाजपा
शिवराज सिंह ने इसी कार्यक्रम में घोषणा कर दी कि देश की आन बान शान पर कोई उंगली उठाई तो प्राण देकर भी उसका बदला लेना सनातन जानता है. धानुक समाज हमारे बचपन का झूला है और धानुक समाज को मैं प्रणाम करता हूं. मैं आपके कार्यकर्ताओं को भी प्रणाम करता हूं. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ देश की बात सोचते हैं और विरोधी दल इन पिछड़े वर्गों की बात नहीं करती आखिर पिछड़े वर्गों का सम्मान क्यों नहीं दिया, इनको सिर्फ भाजपा सम्मान देती है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि शहीद रामफल मंडल सम्मान समारोह के जरिए भाजपा बिहार विधानसभा 2025 की तैयारी कर रही है और पिछड़ी जाति के वोट को साधने की जुगत में है.
रामफल मंडल से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य
अब आइये जानते हैं कि रामफल मंडल कौन हैं और इन्हें भाजपा शहादत का दर्जा क्यों देना चाहती है. जानकार बताते हैं कि रामफल मंडल ने सीतामढ़ी के बाजपट्टी में 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभायी थी. दरअसल, अंग्रेजों सीतामढ़ी में गोलीकांड किया था जिसमें बच्चे, बूढ़े और महिलाएं मारे गए थे. विरोध में वीर सपूत रामफल मंडल ने गोलीकांड के जवाबदेह अंग्रेजी हुक्मरानों के तत्कालीन एसडीओ और अन्य दो सिपाही को गड़ासे से काटकर मार डाला था. इसके बाद रामफल मंडल गिरफ्तार कर लिये गए.
गिरफ्तार होने के बाद रामफल मंडल ने कहा था कि भारत की आजादी में मुझे फांसी भी मंजूर है और आप लोग मेरे परिवार को देखते रहिएगा. बाद में यह सच साबित हुआ और अंग्रेज सरकार ने रामफल मंडल को फांसी पर लटका दिया. रामफल मंडल ने युवावस्था में ही देश की स्वतंत्रता के लिये हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था. जानकारी के अनुसार, रविवार, 23 अगस्त 1943 की सुबह भागलपुर सेट्रल जेल में 19 वर्ष 17 दिन के अवस्था में उन्हें फांसी दे दी गई थी. लेकिन, उनको शहीद का दर्जा अब तक नहीं दिया गया है और भाजपा अब इसकी घोषणा कर रही है.
रामफल मंडल का नाम और भाजपा का फोकस
राजनीति के जानकार कहते हैं कि देश में पिछड़ा और अतिपिछड़ा समाज की आबादी सबसे अधिक है और यह करीब 52 प्रतिशत है. इसके साथ ही यह बिहार में लगभग 60 प्रतिशत है. खास बात यह कि इसका सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं हैं और भाजपा शिवराज सिंह चौहान को पूरे देश में अति पिछड़े नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहती है. 2025 में होने वाले बिहार विधान सभा चुनाव की तैयारियां सभी दलों ने शुरू कर दी हैं और इस क्रम में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों पर सभी राजनीतिक पार्टियां फोकस कर रही हैं. अब सवाल यह कि धानुक जाति पर भाजपा क्यों फोकस कर रही है.
बिहार जातिगत गणना में धानुक जाति की आबादी 2.14 प्रतिशत है. राज्य में इनकी संख्या 27 लाख 96 हजार 605 बताई गई है. बिहार के करीब एक दर्जन विधानसभा सीटों पर धानुक जाति की प्रभावशाली उपस्थिति है. राजनीति के जानकार बताते हैं कि धानुक समाज बिहार के सात लोकसभा क्षेत्र में निर्णायक स्थिति में है. इसमें अररिया, पूर्णिया, कटिहार, सुपौल, झंझारपुर, मुंगेर, बेगूसराय के अलावा खगड़िया संसदीय सीट पर सवा लाख से लेकर ढाई लाख तक की जनसंख्या है. कुल 243 में 60 से 65 विधानसभा क्षेत्र में धानुकों की आबादी मतदान के गणित से निर्णायक है. ऐसे में भाजपा इस जाति पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने की जुगत में लगी है.