मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट से हिंदू पक्ष को बड़ी राहत मिली है. गुरुवार को सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद को लेकर दाखिल हिंदू पक्ष की याचिकाओं को पोषणीय माना है. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की आर्डर 7 रूल्स 11 की आपत्ति को खारिज कर दिया. जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाया है. इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने 31 मई को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था.
हाईकोर्ट के फैसले से ही यह तय हो गया है कि मथुरा के मंदिर मस्जिद विवाद में हिंदू पक्ष की याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं. हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष की आपत्ति खारिज होने के बाद हिंदू पक्ष की याचिकाओं पर आगे सुनवाई होगी. अयोध्या विवाद की तर्ज पर श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद की हाईकोर्ट में सुनवाई होगी.
हिंदू पक्ष बोला- नियमों के खिलाफ शाही ईदगाह कमेटी को जमीन दी गई
हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल 18 याचिकाओं को शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने हाईकोर्ट में ऑर्डर 7, रूल 11 के तहत चुनौती दी। शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने बहस के दौरान कहा- मथुरा कोर्ट में दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। मामला पूजा स्थल अधिनियम 1991 और वक्फ एक्ट के साथ लिमिटेशन एक्ट से बाधित है। इसलिए इस मामले में कोई भी याचिका न तो दाखिल की जा सकती है और न ही उसे सुना जा सकता है।
हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया- इस मामले पर न तो पूजा स्थल अधिनियम का कानून और न ही वक्फ बोर्ड कानून लागू होता है। शाही ईदगाह परिसर जिस जगह मौजूद है वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन है। समझौते के तहत मंदिर की जमीन को शाही ईदगाह कमेटी को दी गई है, जो नियमों के खिलाफ है।
अब पढ़िए हिंदू और मुस्लिम पक्ष के तर्क…
हिंदू पक्षकारों के तर्क
- ढाई एकड़ में बना शाही ईदगाह कोई मस्जिद नहीं है।
- ईदगाह में केवल साल भर में 2 बार नमाज पढ़ी जाती है।
- ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ का एरिया भगवान कृष्ण का गर्भगृह है।
- सियासी षड्यंत्र के तहत ईदगाह का निर्माण कराया गया था।
- प्रतिवादी के पास कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
- सीपीसी के आदेश-7, नियम-11 इस याचिका में लागू नहीं होता है।
- मंदिर तोड़कर मस्जिद का अवैध निर्माण किया गया है।
- जमीन का स्वामित्व कटरा केशव देव का है।
- बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति घोषित कर दी।
- भवन पुरातत्व विभाग से संरक्षित घोषित है।
- एएसआई ने नजूल भूमि माना है। इसे वक्फ संपत्ति नहीं कह सकते।
मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें
- समझौता 1968 का है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं। मुकदमा सुनवाई लायक नहीं।
- प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत मुकदमा आगे ले जाने के काबिल नहीं है।
- 15 अगस्त 1947 वाले नियम के तहत जो धार्मिक स्थल जैसा है वैसा रहे, उसकी प्रकृति नहीं बदल सकते।
- लिमिटेशन एक्ट, वक्फ अधिनियम के तहत इस मामले को देखा जाए।
- वक्फ ट्रिब्युनल में सुनवाई हो, यह सिविल कोर्ट में सुना जाने वाला मामला नहीं।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ था
30 मई को 5 घंटे तक सुनवाई चली। इस दौरान शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। वकीलों ने मांग की कि मथुरा कोर्ट में दाखिल वाद को खारिज किया जाए। मामला सुनवाई योग्य नहीं है। हिंदू पक्षकारों के वकीलों ने इसका विरोध किया।
हिंदू पक्ष ने कई याचिका पर बहस पूरी की थी
30 मई को हुई सुनवाई में हिंदू पक्ष ने अपनी बहस पूरी की थी। इसके बाद आज मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलील पेश की। अभी तक की सुनवाई में हिंदू पक्ष मामले को राम जन्मभूमि की तर्ज कर सुनवाई आगे बढ़ाने की मांग कर रहा है। जबकि मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि मामले में आगे की सुनवाई न हो। मुस्लिम पक्ष मुकदमे की पोषणीयता, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, लिमिटेशन एक्ट, वक्फ अधिनियम आदि बिंदुओं पर अपनी बात रखी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से पहले गुरुवार सुबह हिंदूवादी नेता श्रीकृष्ण जन्मस्थान पहुंचे। यहां उन्होंने मुख्य द्वार पर पहुंच कर भगवान श्रीकृष्ण की जय जयकार की। हिंदूवादी नेता दिनेश शर्मा ने जन्मस्थान के मेन गेट के सामने बैठकर भगवान से पक्ष में फैसला आन की प्रार्थना की।